2014 में भी भगदड़ जारी है, लेकिन इसकी दिशा बदल गई है। अब लोग भारतीय जनता पार्टी की ओर भाग रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल की विपक्षी पार्टियो के लोग ही शामिल नहीं हैं, बल्कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के लोग भी भारतीय जनता पार्टी की ओर जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार सफलता के बाद से ही ऐसा हो रहा है।

2011 की तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के पारस दत्त सहित दो प्रांत स्तरीय नेता ममता बनर्जी की पार्टी में शामिल हो गए थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी के घोर समर्थक भी यह अनुमान नहीं लगा पाए थे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इतनी बड़ी जीत हासिल करेगी। उसके पहले हुए चुनावों में भाजपा ने सिर्फ एक बार 10 फीसदी से ज्यादा मत हासिल किए थे, वरना आमतौर पर उसे मिलने वाले मतों का प्रतिशत 5 से 6 फीसदी तक ही सीमित रहा था। पर 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 17 फीसदी मत मिले।

भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के अपने अपने तर्क हैं। वाम मोर्चा से जो लोग भाजपा में जा रहे हैं उनका तर्क है कि उनका जीना हराम हो गया है। सत्तारूढ़ तृणमूल के कार्यकत्र्ता और सरकार की पुलिस उन्हें कोई राजनैतिक गतिविधियों मंे शामिल नहीं होने देते। उनके खिलाफ झूठे मुकदमे ठोंक दिए गए हैं। उनके सामने गिरफ्तारी का खतरा पैदा हो गया है। उनकी जान पर भी खतरा पैदा हो गया है, क्योकि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ता और पुलिस उनकी जान के पीछे पड़े हुए हैं और वाम मोर्चा के नेताओं की हत्या हो रही है। इन्हीं सबको कारण बताते हुए वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि इस पार्टी में जाकर वे अपनी रक्षा कर सकेंगे, क्योंकि उसकी केन्द्र में सरकार है।

विपक्षी पार्टियों ने ममता बनर्जी और सरकार को अनेक पत्र लिखकर इन मसलों पर बातचीत करने की मांग की और कहा कि इन मसलों का हल निकाला जाना चाहिए। पर ममता बनर्जी और उनकी सरकार ने उन पत्रों पर कोई कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई करना तो दूर उन पत्रों का जवाब तक भी नहीं दिया गया।

सबसे ज्यादा नुकसान सीपीएम को हुआ है। उनके एक नेता का कहना है कि अबतक उनकी पार्टी के 50 से भी ज्यादा लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। उन हत्याओं में शायद ही कोई गिरफ्तारी हुई हो। इसके कारण सीपीएम से तृणमूल कांग्रेस की ओर भी लोगों का पलायन हो रहा है। सीपीएम का एक विधायक भी तृणमूल कांग्रेस में पिछले दिनों शामिल हो गया। वह विधायक महिला हैं। उनका कहना है कि उनके खिलाफ एक तरह का सामाजिक बहिष्कार की स्थिति पैदा कर दी गई थी। वह घर से भी नहीं निकल सकती थी। वह कुछ कुछ भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की ओर से उनके खिलाफ काफी दबाव बना हुआ था। पुलिस भी उनकी सहायता के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए उन्होंने तृणमूल में शामिल हो जाना ही बेहतर समझा।

असुरक्षा और भय तो पार्टी छोड़ने का एक कारण है ही, लोग लोभ से भी पार्टी छोड़ रहे हैं और जहां सत्ता है, वहां अपनी जगह तलाश रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस इस तरह के दलबदलुओं के आकर्षण का लोकसभा चुनाव के पहले एकमात्र केन्द्र थी, लेकिन अब लोग भाजपा में भी जाने लगे हैं। इसके कारण तृणमूल कांगेस की बेचैनी बढ़ने लगी है। (संवाद)