इस समय यहां की स्थिति बहुत विचित्र बनी हुई है। आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर विधानसभा भंग करने का आदेश पारित करने को कहा था, लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने खुद उपराज्यपाल से कहा कि वे अभी विधानसभा भंग नहीं करें और उन्हें सरकार गठन की संभावनाओं की तलाश के लिए समय दें।
दरअसल केजरीवाल को लग रहा था कि भारी हार का सामना करने के बाद कांग्रेस को उनके प्रति रवैया नरम हो जाएगा। उन्हें लगा था कि चुनाव के बाद भाजपा सरकार के गठन की संभावना को संभव नहीं होने देने के लिए कांग्रेस उनके नेतृत्व में सरकार गठन का समर्थन करेगी। श्री केजरीवाल ने गुपचुप तरीके से कांग्रेसी नेताओं से बात भी चलाई, लेकिन कांग्रेस के नेताओं को केजरीवाल सरकार का गठन पसंद नहीं था। उलटे कांग्रेस के विधायक कहने लगे कि केजरीवाल को चाहिए कि वह एक कांग्रेसी को मुख्यमंत्री बनाने में मदद दें।
आज की स्थिति में यदि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आपस में मिलकर सरकार बनाते हैं, तो वह सरकार विधानसभा में अपना बहुमत हासिल कर लेगी। आम आदमी पार्टी के पास 27 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 8। दोनों विधायकों की कुल संख्या हो जाती है 35। भाजपा के तीन विधायक लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं और उनके इस्तीफे के कारण सदन के विधायकों की प्रभावी संख्या रह गई है 67। 35 सदस्यों के साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी वाली सरकार बहुमत की सरकार होती है।
लेकिन कांग्रेस को केजरीवाल पसंद नहीं। इसलिए आम आदमी पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में सफल नहंीं हो सकी और उसने विधानसभा भंग कर नए चुनाव की मांग तेज कर दी है।
उधर भारतीय जनता पार्टी के विधायक चुनाव नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि आम आदमी पार्टी या कांग्रेस विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई जाय। लेकिन दल बदल विरोधी कानून उनके लिए बाधा बन रहा है।
दल बदल कानून के तहत किसी विधायक दल में टूट के लिए दो तिहाई विधायकों का होना जरूरी है। इसलिए यदि आम आदमी पार्टी का विभाजन कर सरकार बनानी हो, तो कम से कम उनके 18 विधायक होने चाहिए। यह संख्या बहुत ज्यादा है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार पाला बदलने को तैयार आम आदमी पार्टी के विधायकों की संख्या 11 से 12 तक ही पहुंच पाती है।
आम आदमी पार्टी के बाद भाजपा के दिल्ली के नेताआंे का ध्यान कांग्रेस की ओर भी गया। उसके 8 विधायक हैं और उनमें विभाजन के लिए कम से कम 6 विधायक चाहिए। उधर चर्चा थी कि कांग्रेस के 6 विधायक पार्टी तोड़ने के लिए तैयार हो गए हैं और वे टूटकर भाजपा सरकार में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस के 8 विधायकों मंे 4 मुस्लिम हैं और एक औसत मुस्लिम के भाजपा विरोधी होने के कारण मुस्लिम विधायकों का भाजपा से जुड़ना आसान काम नहीं है।
कांग्रेस विधायकों को डर है कि यदि चुनाव हुए तो वे हार भी सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी मुख्य मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में ही था। विधानसभा चुनावों मंे तो मुसलमानों ने कांग्रेस का साथ दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में वे आम आदमी पार्टी के साथ दिखाई पड़ रहे थे। कांग्रेसी विधायकों को डर है कि इस बार उनके क्षेत्रो ंमें भी मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच हो सकता है और वे चुनाव के पहले ही अपने आपको पराजित समझ रहे हैं।
यही कारण है कि कांग्रेस के मुस्लिम विधायक भी आम मुसलमानों की नाराजगी के खतरे के बावजूद सरकार का गठन चाहते हैं, भले ही वह भाजपा की ही क्यों न हो। पर समस्या यह है कि नरेन्द्र मोदी आम आदमी पार्टी या कांग्रेस को तोड़कर दिल्ली में भाजपा की सरकार नहीं चाहते है। इसके कारण ही दिल्ली का मामला अटका हुआ है।
स्ुप्रीम कोर्ट द्वारा एक महीने की समय सीमा तय करने और राष्ट्रपति शासन की 6 महीने की अवधि नजदीक आने के साथ ही अब फैसले की घड़ी नजदीक आ गई है। (संवाद)
भारत
दिल्ली की निलंबित विधानसभा
अब उपराज्यपाल को लेना होगा फैसला
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-08-07 13:27
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में सरकार के गठन या विधान सभा को भंग करने के लिए उपराज्यपाल को एक महीने का समय दिए जाने के बाद अब उन्हें जल्द ही निर्णय लेना होगा कि नया चुनाव करवाया जाय या किसी सरकार को शपथ दिलाई जाय। वैसे भी राष्ट्रपति शासन के 6 महीने इस अगस्त में पूरे हो जाएंगे और यदि इस बीच सरकार नहीं बनी, तो फिर विधानसभा भंग करने का दबाव उपराज्यपाल और केन्द्र सरकार पर बढ़ने वाला था।