प्रधानमंत्री मोदी द्वारा योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा कोई अप्रत्याशित नहीं थी। इसकी उम्मीद पहले से ही की जा रही थी, पर वे योजना आयोग के विकल्प का कोई खाका नहीं पेश कर पाएंगे, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। उन्होंने कहा है कि योजना आयोग का विकल्प तैयार किया जाएगा, लेकिन वह विकल्प क्या होगा, इसके बारे मंे उन्होंने साफ साफ नहीं बताया। उल्टे उन्होंने देश के लोगों से ही यह सलाह देने को कहा है कि वे योजना आयोग का विकल्प सरकार को बताएं।
अच्छा होता कि योजना आयोग की समाप्ति की घोषणा के पहले ही उसके विकल्प की रूपरेखा पूरी तरह तैयार कर ली जाती और योजना आयोग की समाप्ति के साथ उसे रूप भी दे दिया जाता। लेकिन वैसा हुआ नहीं है। इसके कारण नया निकाय बनने तक योजना आयोग क्या करेगा, इस पर सवाल खड़ा हो गया है।
संसद मार्ग में योजना आयोग का भवन दशकों से शक्ति का एक बड़ा केन्द्र रहा है। सोवियत माॅडल से प्रभावति होकर जवाहरलाल नेहरू ने इस आयोग का गठन किया था। योजनाबद्ध विकास के लिए योजना आयोग का इस्तेमाल किया जा रहा था। इसे बहुत शक्ति प्राप्त था और सभी प्रधानमंत्रियों ने इसका पूरा समर्थन किया था। इसकी मुख्य जिम्मेदारी योजना की प्राथमिकताओं को तय करना था और योजनाओं के लिए संसाधन का आकलन करना और उसे आबंटित करना भी था। आयोग देश की पंचवर्षीय योजना, सालाना योजना और राज्यों की योजनाओं को तैयार करता है। यह राष्ट्रीय विकास परिषद के अभिभावकत्व में काम करता है। इस परिषद के सदस्य सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी होते हैं।
1951 में पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत हुई थी। बीच में योजना अवकाश के भी कुछ साल रहे और इस समय 12वीं पंचवर्षीय योजना की कालावधि चल रही है। पहली आठ पंचवर्षीय योजनाओं तक सार्वजनिक सेक्टर को महत्व दिया गया, लेकिन 9वीं पंचवर्षीय योजना के साथ सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व कम हो गया।
योजना आयोग को समाप्त करने के पक्ष में अनेक तर्क हैं। सच कहा जाय, तो यह आयोग अब अप्रासंगिक सा हो गया है। प्रधानमंत्री ने सही कहा कि अंदरूनी और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां बदलने के साथ ही इसकी आवश्यकता अब समाप्त हो गई है। पिछले 5 दशकों में बहुत बदलाव आए हैं और योजना की प्राथमिकता भी बदल गई है।
भारत अब अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ चुका है। उसका निजीकरण और उदारीकरण की आर्थिक नीतियों को अपना लिया है। इसके कारण अब योजना आयोग जैसे किसी निकाय की जरूरत ही नहीं रह गई है।
योजना आयोग खुद एक सफेद हाथी में रूप में तब्दील हो चुका है। इसके पास स्टाफ बहुत ज्यादा है और काम बहुत कम रह गया है, क्योंकि अब योजना की जगह हमने बाजार और सार्वजनिक क्षेत्र की जगह निजी क्षेत्र को तरजीह देना शुरू कर दिया है।
नरेन्द्र मोदी इसकी जगह एक वैकल्पिक निकाय की बात कर रहे हैं, जिसमें राज्य सरकारों की चिंताओं का भी ख्याल रखा जाय। पिछले कुछ सालों से योजना आयोग का राज्य सरकारों से तनाव चला करता था। योजना कोष आबंटित करने के लिए योजना आयोग के उपाध्यक्ष जबतक राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाया करते थे। राज्य के मुख्यमंत्रियों को अहसास होता था कि योजना आयोग उनके राज्यों की विकास प्राथमिकताओं को महत्व नहीं देता और अपनी प्राथमिकताएं उन पर थोपता है। जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो योजना आयोग के साथ उनके तनाव की खबरें भी आया करती थीं।
योजना आयोग का राज्य सरकारों के साथ ही नहीं, बल्कि केन्द्र के वित्त मंत्रालय के साथ भी खटपट होती रहती थी। कोष उपलब्ध कराना वित्त मंत्रालय का काम है और योजना आयोग कोष की उपलब्धता का ध्यान कम और खर्च पर ध्यान ज्यादा रखा करता है। वित्त मंत्रालय ही नहीं केन्द्र सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों के साथ योजना आयोग की खटपट होती रहती है। विकास का कोई भी काम योजना आयोग की सहमति के बिना आगे नहीं बढ सकता। इस तरह सभी मंत्रालयों के ऊपर एक सुपर मंत्रालय की तरह योजना आयोग काम करता रहा है। इसलिए इसके समाप्त किए जाने के निर्णय को गलत नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी जगह कौन सा और कैसा निकाय लेगा, इसके बारे में में पहले से स्पष्टता होनी चाहिए थी। (संवाद)
भारत
मुक्त अर्थव्यवस्था में योजना
मोदी को नये निकाय के बारे में स्पष्ट आइडिया होना चाहिए
कल्याणी शंकर - 2014-08-22 12:21
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा कर दी है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण देते हुए मोदी ने योजना आयोग के भविष्य को लेकर लगाए जा से रहे सारे कयासों को समाप्त कर दिया।