18 विधानसभाओं के उपचुनाव हुए। उनमें 10 तो बिहार के ही थे। उन 18 सीटों में भाजपा को मात्र 7 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी और उसके सहयोगी अकाली दल को एक सीट मिली। दूसरी और कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस ने खुद कर्नाटक की बेल्लारी और पंजाब की पटियाला सीट पर जीत हासिल की। वह मध्यप्रदेश में भी इसने भाजपा से एक सीट छीनी।
खासकर बिहार उपचुनाव के नतीजे भाजपा को मायूस करने वाले हैं। भाजपा के दो विरोधियों नीतीश कुमार और लालू यादव ने वहां हाथ मिलाए थे। कांग्रेस के साथ भी उनका गठबंधन था। उस गठबंधन ने 10 सीटों मे से 6 पर जीत हासिल की और भाजपा को मात्र 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। बिहार में भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने का सपना देख रही है। 21 अगस्त के उन उपचुनावों के आइने में देखा जाना था कि भाजपा का वह सपना पूरा हो सकता है कि नहीं। नतीजों ने भाजपा को निराश ही किया है। लालू और नीतीश के गठबंधन को जनता स्वीकार करती है या नहीं, यह भी देखा जाना था। देखा गया कि जनता ने उसे स्वीकार कर लिया है।
उत्तराखंड के चुनावों में भाजपा को लगा झटका तो और भी गहरा है। लोकसभा चुनावों में सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई थी, लेकिन उसके बाद हुए तीन उपचुनावों में भाजपा की करारी हार हुई। तीनों सीटें कांग्रेस के पास चली गईं। जिला परिषदों के चेयरमैन के भी चुनाव हुए। 11 चेयरमैन में से 9 कांग्रेस के पास चले गए। भारतीय जनता पार्टी के उतने वोट नहीं मिले, जितने उसे लोकसभा चुनाव में मिल थे। अब सवाल उठता है कि वैसा हुआ क्यों?
भारतीय जनता पार्टी को इन उपचुनावों से सबक लेने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में भी उपचुनाव होने वाले हैं। वहां 12 विधानसभा सीटो पर उपचुनाव हो रहे हैं। भाजपा की चिंता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि उनमें से 11 सीटों पर तो उन्हीं के विधायक थे और 12वीं सीट पर उसके सहयोगी अपना दल की नेता विधायक थी। जाहिर है भाजपा के सामने सभी 12 सीटों पर जीत हासिल करने की चुनौती है। एक सीट पर भी मिली हार उत्तर प्रदेश में उसकी हार मानी जाएगी।
भाजपा नेताओं का कहना है कि उपचुनावों के नतीजों को लोकसभा और विधानसभाओ के आम चुनावों के धरातल पर रखकर नहीं देखा जा सकता। इसमें कुछ सच्चाई भी है। बिहार और कर्नाटक के भाजपा नेता वहां की हारों का ठीकरा स्थानीय फैक्टर पर डाल रहे हैं। उनका कहना है उन नतीजों का मोदी की लोकप्रियता से कुछ भी लेना देना नहीं है।
इन उपचुनावों के नतीजे राजनैतिक वर्ग को कुछ साफ साफ संकेत देते हैं, जिनकी अनदेखी उन्हें नहीं करनी चाहिए। पहला संकेत तो यही है कि भारी जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेता लापरवाह हो गए थे और उन्हें लग रहा था कि मतदाताओं के पास उन्हें समर्थन करने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में भाजपा को शानदार सफलता मिली थी। लगता है उसका कारण यह है कि लोग कांग्रेस को हराना चाहते थे। अब कांग्रेस हार चुकी है और मतदाताओं का लक्ष्य पूरा हो चुका है। इसलिए अब उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना काम पूरा कर दिया।
दूसरा संकेत यह है कि एक पार्टी बहुमत की वापसी का जो राग अलापा जा रहा था, वह शायद पूरा होने वाला नहीं है और अभी भी गठबंधन राजनीति के समाप्त होने के आसार समाप्त नहीं हुए हैं। जनता दल(यू) और राष्ट्रीय जनता दल को बिहार में मिली सफलता का मतलब यही है कि लोग अभी भी गठबंधन की राजनीति से नहीं ऊबे हैं। (संवाद)
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उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए चिंताजनक
कुछ विधानसभाओं के आमचुनावों की चुनौतियां बढ़ीं
कल्याणी शंकर - 2014-08-29 13:01
नरेन्द्र मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने के एक सप्ताह पहले कुछ उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को झटके खाने पड़े हैं। लोकसभा में इसे शानदार सफलता मिली थी और अब उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि विधानसभाओं के उपचुनाव स्थानीय फैक्टरों से प्रभावित होते हैं, लेकिन इप नतीजों ने भाजपा के अंदर पल रहे फील गुड फैक्टर को पंक्चर कर दिया है। इसके कारण भाजपा विरोधी पार्टियों में आशा का नवसंचार हुआ है।