वैसे अभी तक भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल नहीं हो सका है। 70 सदस्यीय विधानसभा की 3 सीटें खाली हैं और एक विधायक स्पीकर के रूप में मतदान नहीं कर सकते। इस तरह से विधानसभा की प्रभावी संख्या 66 है और बहुमत के लिए 34 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी।
इस समय भारतीय जनता पार्टी के पास 28 विधायक हैं। अकाली दल का एक अन्य विधायक उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हैं। उनको मिलाकर विधायकों की संख्या 29 हो जाती है। एक निर्दलीय विधायक भी हैं, जो भाजपा को समर्थन करने की बात कर चुके हैं। आम आदमी पार्टी के विधायक बिनोद कुमार बिन्नी को भी भाजपा सरकार के समर्थन करने में कोई परेशानी नहीं है। इस तरह स्पष्ट रूप से भाजपा के पास 31 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, पर बहुमत से यह तीन कम है।

शेष तीन विधायकों का समर्थन हासिल करना भाजपा के लिए कठिन साबित हो रहा है। आम आदमी पार्टी के कुछ विधायक उसके साथ आ सकते हैं, पर दल बदल विरोधी कानून कठिनाई खड़ा कर रहा है। इस कानून के अनुसार दल में विभाजन के लिए कुल विधायकों की संख्या का दो तिहाई होना चाहिए। आम आदमी पार्टी के विधायकों की संख्या 27 है, इसलिए उसके विभाजन के लिए 18 विधायक चाहिए। उतनी बड़ी संख्या में आम आदमी पार्टी के विधायक टूटने को तैयार नहीं हैं।

कंग्रेस के विभाजन की भी बात सामने आई थी। कांग्रेस के कुल 8 विधायक हैं और टूट के लिए 6 विधायको की जरूरत पड़ेगी। उन 8 विधायकों मंे 4 तो मुस्लिम विधायक ही हैं, जिनके लिए भाजपा के साथ हाथ मिलाना राजनैतिक रूप में नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि मुस्लिम भाजपा को पसंद नहीं करते। बहरहाल उनके टूटने की अफवाह उड़कर हवा में मिल चुकी है।

अब लग रहा है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उपराज्यपाल भाजपा की अल्पमत सरकार का गठन कराने जा रहे हैं, जिसे विधानसभा में बहुत साबित करने के लिए कहा जाएगा। उसके लिए एक अवधि भी उसे दी जाएगी।

बहुत संभावना है कि सरकार बनाने के बाद भाजपा समर्थन जुटाने का खेल शुरू करेगी। यदि कुछ विधायक समर्थन दिए बिना भी विधानसभ से अनुपस्थित हो जाते हैं, तो सरकार 31 विधायकों के दम पर भी विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर सकती है। लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के मन में कुछ ऐसा ही चल रहा है।

मोदी सरकार के गठन के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी के विधायक सरकार बनाने का दबाव पार्टी पर डाल रहे हैं। लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने या बहुमत साबित करने के पक्ष में नहीं थे। पार्टी का आलाकमान भी इसके पक्ष में नहीं था, लेकिन भाजपा के विधायक विधानसभा का दुबारा चुनाव नहीं चाहते। वे लगातार पार्टी पर सरकार बनाने के लिए दबाव बना रहे थे।

कुछ राज्यों के उपचुनावों मे पार्टी को मिली पराजय के बाद भाजपा के केन्द्रीय नेताओं को भी लग रहा है कि चुनाव का सामना करना जोखिम भरा काम हो सकता है, इसलिए वे भी अब दिल्ली में अपनी पार्टी की सरकार के गठन पर तैयार होते दिख रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की सहमति अभी भी बाकी है। जैसे ही वहां से हरी झंडी मिलेगी, भाजपा की सरकार का शपथग्रहण हो जाएगा और उसके बाद बहुमत साबित करने की कवायद भी शुरू हो जाएगी। (संवाद)