पिछले सप्ताह ममता बनर्जी ने यह कहकर सबको चैंका दिया कि वह भारतीय जनता पार्टी के विस्तार को रोकने के लिए वाम मोर्चा और कांग्रेस सहित सभी पार्टियों के साथ आने के लिए तैयार है। इसके ममता बनर्जी के विरोधी ही नहीं, बल्कि समर्थक भी हैरत में पड़ गए।

वाम मोर्चा भी ममता बनर्जी की उस अपील पर हैरत में है। इसका कारण है कि ममता वाम मोर्चा को अंदर से नफरत करती है और इसके ठोस कारण भी हैं। वाम दलों ने ममता बनर्जी को अपमानित करने के लिए जो कुछ भी हो सकता था किया था। उनके गुंडों ने तो ममता की हत्या की भी कोशिशें की थीं और कई बार वह मरते मरते बची हैं।

यह तो स्पष्ट था कि यदि ममता सत्ता में आईं, तो वह वाम मोर्चा से बदला लेंगी। यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी से वाम दलों के साथ बहुत ही खराब व्यवहार किया है। 2011 में वाम दलों को 41 फीसदी मत मिले थे और पिछले लोकसभा के चुनाव में भी उन्हें 29 फीसदी मत मिले। पर ममता बनर्जी उनके साथ ऐसा व्यवहार कर रही थीं, मानों उनका पश्चिम बंगाल में अस्तित्व ही नहीं है। किसी भी सरकारी आयोजन में उनके नेताओं को नहीं बुलाया जाता है। जिन इलाकों मेे वामदलों के जीते हुए प्रतिनिधि हैं, वहां भी सड़क बगैरह के उद्घाटन में उन्हें नहीं बुलाया जाता।

तृणमूल कांग्रेस के नेता वाम दलों और उनके नेताओं को गालियां देते नहीं थकते। कोई कहता है कि वाम दल के लाग कृष्ठरोगी हैं और उनसे दूर ही रहना चाहिए, तो कोई कहता है कि वे कोबरा सांप हैं और देखते ही उनकी हत्या कर दी जानी चाहिए। तृणमूल के नेता अपने कार्यकत्र्ताओं को यह कहते हुए सुने जा सकते हैं कि विरोधियों के घरों को जला डालो। उनका निशाना वाम दल ही नहीं, बल्कि भाजपा और कांग्रेस के नेता और कार्यकत्र्ता भी बन रहे हैं।

पूरे पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल के कार्यकत्र्ताओं द्वारा अपने विरोधियों को सताने का काम चल रहा है। उनके खिलाफ तरह तरह की हिंसा की जा रही है। पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। वह तृणमूल कांग्रेस के गुंडों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। पुलिस महकमा खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ही पास है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल में राजनैतिक पार्टियों के बीच के बीच के संबंध उतने खराब कभी भी नहीं थे, जितने खराब आज हैं। इसलिए सबलोग हैरत मे हैं कि आखिर ममता बनर्जी ने सभी गैरभाजपा पार्टियों को एक होने की बात कही तो क्यों कही। कांग्रेस भी ममता के इस कदम की थाह ले रही है।

इसका जवाब आसान है। दरअसल ममता बनर्जी जब भी संकट में होती हैं, तो अपने विरोधियों का साथ चाहने लगती हैं। 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के समय भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया था। तब वह प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति के रूप में उम्मीदवारी का विरोध कर रही थीं, लेकिन कांग्रेस उनकी आपत्तियों को दरकिनार कर उन्हें उम्मीदवार बना रही थी। उस समय ममता बनर्जी ने वाम दलों से भी बातचीत चलाना शुरू कर दिया था, ताकि प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनने से रोका जा सके।

पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी सफलता मिली है और वह पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में है। सफलता तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को भी मिली है। लेकिन वह भारतीय जनता पार्टी से डरी दिख रही है। इसका कारण यह है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा को भले ही दो सीटें मिली हों, उसका मत प्रतिशत 17 हो गया है। यही नहीं, चुनाव के बाद तृणमूल सहित तमाम पार्टियों के कार्यकत्र्ता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इसके कारण ममता बनर्जी घबरा गई हैं। (संवाद)