मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच हुई शिखर बैठक में तीन मसले महत्वपूर्ण रहे। पहला मसला सामरिक संबंधों का रहा। दूसरा मसला विस्तारवाद के विरोध का रहा और तीसरा मसला भारत में जापानी निवेशकों को आकर्षित करने का रहा। प्रधानमंत्री कार्यालय में जापानी निवेशकों के लिए एक अलग से कमिटी गठित करने का फैसला भी हुआ।
विस्तारवाद के खिलाफ नरेन्द्र मोदी का बयान जापानियों के दिल को छूने वाला था। इससे चीन गफलत में पड़ गया, क्योंकि इशारा उसी की ओर था। चीन भारत की जमीन पर ही नहीं, जापान की जमीन पर भी दावा करता फिरता है। चीन के राष्ट्रपति भी भारत आने वाले हैं। वहां के एक थिंकटैंक का कहना है कि जापान भारत और चीन के बीच सामरिक संबंधों के बीच मंे आ रहा है।
नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि जापान भारत में सिर्फ मोटर गाड़ी बनाने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भी हिस्सेदारी करे। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में भी नरेन्द्र मोदी जापानी निवेश भारत में आकर्षित करना चाहते हैं। मोदी सरकार ने रक्षा उत्पादनों के क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी कर दिया है। भारत ने जापान से एक समझौता किया है जिसके तहत वह जापान भारत में यूएस-2 विमानों का उत्पादन करेगा। इसके अलावा भारत जापान से ऐम्फिलन विमानों का आयात भी करेगा। ये विमान समुद्र की सतह से उड़ान भर कर समुद्र की सतह पर उतरने की क्षमता रखते हैं। वाराणसी को एक स्मार्ट सिटी के रूप मंे विकसित करने में जापान का सहयोग पाने में भी मोदी सफल हो गए हैं।
प्रधानमंत्री शिंजा आबे ने आगामी 5 सालों में भारत में 35 अरब डाॅलर के निवेश का लक्ष्य रखा है। इस बीच जापान का भारत में निवेश दूना हो जाएगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ’’मेक इन इंडिया’’ का नारा दिया है, जिसके तहत वह दुनिया भर के लोगों को कह रहे हैं कि वे भारत में आकर मैन्युफैक्चर करें। उन्होंने जापानी निवेशकों को कहा कि भारत में उनका स्वागत रेड टेप से नहीं, बल्कि रेड कार्पेट से किया जाएगा।
जापान ने भारत को अपनी ओर आकर्षित करने का अभियान चीन द्वारा इस क्षेत्र में अपनी दादागीरी करने के प्रयासों के बाद शुरु हुआ। पिछले साल नवंबर दिसंबर महीने में जापान के राजा और रानी भारत आए थे। वे 5 दशकों के बाद भारत आए थे। इससे पता चल रहा था कि जापान का झुकाव भारत की ओर हो रहा है। वह यात्रा इसलिए आश्चर्यजनक थी, क्योंकि राजा और रानी आमतौर पर विदेशों की यात्रा राजकीय कामों से नहीं करते हैं। इसका कारण उन दोनों का अधिक उम्र के कारण खराब स्वास्थ्य है। राजा राजी की उस यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को नया आयाम मिलने का माहौल तैयार होने लगा था।
चीन में भी जापान का निवेश बढ़ रहा था, लेकिन 2013 में एकाएक जापानी निवेश काफी कम हो गए। इसके कारण जापान को लग रहा है कि चीन पर निवेश के लिए ज्यादा निर्भरता जोखिम भरा काम है। इसलिए वह वैकल्पिक जगहों की तलाश में है और भारत उसके लिए तैयार भी दिख रहा है। (संवाद)
भारत
प्रधानमंत्री की जापान यात्रा
भारत को मिली भारी सफलता
सुब्रत मजूमदार - 2014-09-04 13:42
गुजरात के मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी की कोशिश अपने प्रदेश में जापानी निवेश आकर्षित करने की होती थी। वे 2007 और 2012 में जापान गए भी थे। प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जापान यात्रा में उन्होंने भारत जापान संबंधों का एक नया अध्याय लिखने की कोशिश की। उन्होंने सामरिक आर्थिक संबंधों से आगे बढ़कर जापान के साथ ग्लोबल पार्टनरशिप स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत और जापान एशिया के दो सबसे पुराने लोकतंत्र हैं और महादेश की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की दुनिया का भविष्य एशियाई देशों से ही निर्धारित होगा और भारत व जापान का द्विपक्षीय संबंध 21वीं सदी दुनिया के विकास का इंजन बनेगा।