अन्य क्षेत्रों में मोदी की आलोचना हो सकती है, लेकिन विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी को पूरी सफलता मिली है। जो लोग समझते थे कि नरेन्द्र मोदी विदेश नीति पर क्या कर लेंगे, वे गलत साबित हुए हैं, क्योंकि उन्होंने विदेश नीति के मोर्चे पर वह कर डाला है, जिसकी उम्मीद लोग कर ही नहीं रहे थे।
नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति की पहल को समझने के लिए उनके मुख्यमंत्री के दिनों को समझना होगा। जब वे मुख्यमंत्री थे, तो पश्चिमी देशों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था और जिन देशों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया था, उन देशों को उन्होनंे प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले याद किया है। उनकी विदेश नीति के दो मूल बिन्दु हैं। पहला बिन्दु तो अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते रखने का है और दूसरा बिन्दु बहुपक्षीय राजनय में भारत के हित पर फोकस करना है। उन्होंने इस छवि को समाप्त करने की कोशिश की कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ बड़े भाई की तरह पेश आना चाहता है और अपने वायदों को पूरा करना नहीं जानता।
सबसे पहले तो उन्होंने सार्क देशों के राज्य और सरकार प्रमुखों को अपने शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित करके आश्चर्यचकित कर दिया। पड़ोसी देशा के साथ पहलकदमी का यह उनका पहला प्रयास था, जिसकी अन्य क्षेत्र के देशों में भी सराहना हुई। उन्होंने अपनी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को नेपाल और बांग्लादेश भेजा। तीस्ता पानी के बंटवारे पर दोनों देशों के बीच कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, फिर भी सुषमा स्वराज को बांग्लादेश भेजकर उन्होंने एक अच्छी शुरुआत की। तमिलनाडु के विरोध को देखते हुए वे श्रीलंका के मसले पर बहुत की फूकफूक कर कदम रख रहे हैं। इस साल के अंतिम महीनों में जब सार्क नेताओं के सम्मेलन मे काठमांडु में उनकी मुलाकात पड़ोसी देशों के नेताओं के साथ होगी, तो उनकी पड़ोस नीति नया आयाम हासिल करेगी।
दूसरा संदेश उन्होंने यह दिया है कि भारत के साथ कोई जोर जबर्दस्ती नहीं कर सकता। शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कुछ अलग अलग से ही लग रहे थे। जब अकेले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई, तो सचिव स्तरीय बातचीत शुरू करने पर दोनों में सहमति बनी। लेकिन सीमा पर लगातार हो रही फायरिंग और पाकिस्तानी राजदूत का कश्मीर के हुरियत नेताओं से मिलना भारत को अच्छा नहीं लगा। उसके कारण नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के साथ होने वाले सचिव स्तरीय बातचीत से भारत को वापस खींच लिया। भारतीय सेना के अधिकारी पाकिस्तान के खिलाफ लगातार चेतावनी जारी कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के नजदीकी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने घोषणा की कि यदि पाकिस्तान की ओर से फायरिंग नहीं रूकी, तो भारत उसे उचित जवाब देगा। अब नवाज शरीफ खुद पाकिस्तान में अपनी सरकार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मोदी ने पहली यात्रा के लिए भूटान को चुना और यह संदेश दिया कि जो सभी परिस्थितियों मंे उनके देश के साथ होता है, उनका देश भी उनके साथ सबसे पहले दिखाई देगा। ऐसा करके उन्होंने अपने पड़ोसी देशों को अच्छा संदेश दिया। नरेन्द्र मोदी की सरकार ही नहीं, बल्कि उनके पहले की सरकारों के संबंध भी भूटान से अच्छे रहे थे। नेपाल के साथ भी उन्होंने अच्छे संबंधों की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। उन्होने नेपाल की संसद को संबोधित किया और उसमें जो कुछ कहा वह दोनों देशों के संबंधों को मजबूत आधार प्रदान कर रहा है।
मोदी ब्रिक्स की बैठक में भाग लेने के लिए ब्राजील भी हो आए और विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं में अपना कड़ा संदेश भी दे डाला कि हमारी पहली चिंता अपने देश के गरीब हैं न कि विश्व व्यापार। जापान जाकर भी मोदी ने विदेश नीति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। (संवाद)
भारत
नरेन्द्र मोदी ने विदेशी मोर्चे पर सफलता पाई
अभी भी हो रही है देश में उनकी वाहवाही
कल्याणी शंकर - 2014-09-05 11:50
अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने के बाद भी नरेन्द्र मोदी को देश के लोगों की वाहवाही मिल रही है। वे अभी भी लोगों की उम्मीद बने हुए हैं और उनके प्रशंसकों की संख्या कम नहीं हुई है। भले ही उनके विरोधी उनके 100 दिनों के कार्यकाल की नाकामियों को गिनाने में लगे हुए हों और बाल की खाल निकाल रहे हों, लेकिन आम लोगों का यही कहना है कि अभी तक नरेन्द्र मोदी का कार्यकाल ठीक रहा है और उन्होंने अभी तक कोई बड़ी गलती नहीं की है। उन्होंने अपने कुछ वायदों को पूरा किया है और कुछ वायदे पूरे करने बाकी हैं। उनके समर्थक कहते हैं कि उन्हें जनादेश 5 सालों के लिए मिला था और 100 दिन सफलता या विफलता को मापने के लिए कुछ भी नहीं है।