प्रथम चरण में घोषित 1800 करोड़ के बाद केंद्र सरकार ने दूसरे चरण में जेलों के आधुनिकीकरण पर 5693.33 करोड़ की योजना को अमल में लाई है। यही नहीं प्रथम योजना जिसमें 1800 करोड़ रुपये खर्च करने थे उसे भी अगले दो वर्र्ष के लिए विस्तारित कर दिया है। यह योजना मार्च 2009 में समाप्त हो गर्ई थी। बावजूद इसके केंद्र द्वारा जारी की गर्ई इस राशि का उपयोग बहुत से राज्य सरकारों ने नहीं किया है, केंद्र ने दोबारा नई जेल आधुनिकीकरण योजना भी घोषित कर दी है। 1987-2000 के बीच केंद्र सरकार 125.24 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है।

इस योजना के तहत पूरे देश में 125 नए जेलों के अलावा 1579 अतिरिक्त बैरकों का निर्माण विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कराया गया है। इससे जेलों में कैदियों की अधिकता 122.8 की जगह 112.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। हालांकि यह आंकड़ा दिसंंबर 2012 तक का है। गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत के जेलों में कुल 3,85,135 कैदी सजा काट रहे हैं।

कुल कैदियों में 21 प्रतिशत हैं मुस्लिम अपराधी- गृह मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश की जेलों में सजा काट रहे कुल कैदियों (3.85 लाख) में से केवल मुस्लिम अपराधियों की संख्या 53 हजार 836 (21 प्रतिशत) हैं, इसमें दोनों (सजायाप्ता और विचाराधाीन) तरह के कैदी शामिल हैं। इसमें भी उत्तर प्रदेश के जेलों में ही मुस्लिम कैदियों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है, उसके बाद बिहार, महाराष्टï्र और पश्चिम बंगाल का स्थान है।

जहां तक हिन्दू, मुस्लिम, सिख और इसार्ई कैदियों की संख्या की तुलना का सवाल आता है इसमें जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो मुस्लिम देश की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत हैं जबकि कुल अपराधों में इनकी संलिप्तता 21 प्रतिशत है। वहीं कुल जनसंख्या का 84 प्रतिशत हिन्दू हैं जबकि अपराधों में संलिप्तता का औसत प्रतिशत 70 के आसपास हैं क्योंकि भारत के जेलों में बंद (सजायाप्ता और विचाराधाीन) कैदियों में से 71.4 फीसदी हिन्दू हैं वहीं सिख अपराधियों की संख्या (सजायाप्ता और विचाराधाीन) 4 प्रतिशत है। वहीं देश की जनसंख्या में दो प्रतिशत की भागीदारी करने वाले क्रिश्चियन का (सजायाप्ता और विचाराधाीन) कैदियों आंकड़ा 4 प्रतिशत है। यानी कहने का मतलब यह कि देश का हरेक 16वां व्यक्ति मुस्लिम है लेकिन देश में होने वाले 100 अपराधों में 21 अपराध मुस्लिम के नाम हैं।

इसे लेकर विभिन्न दलों और संगठनों द्वारा यह सवाल उठाया जाता रहा है कि देश की जेलों में सबसे ज्यादा अपराधी मुस्लिम हैं और इसके पीछे पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए जाते हैं। हालांकि इस मामले में पिछले साल महाराष्टï्र के पुलिस महानिदेशक संजीव दयाल, उत्तर प्रदेश के डीजीपी देवराज नागर और तमिलनाडु के डीजीपी के. रामानुजम द्वारा केंद्र सरकार को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में पुलिस की एक पक्षीय धारणा का उल्लेख मिलता है।

जहां तक जेलों का सवाल है यह राज्य का विषय है और भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार इसकी देखभाल, सुरक्षा और उन्नयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों के जिम्मे है। जेलों में मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें अक्सर मिलती रहती हैं। इसका परिणाम यह देखने में आता है कि सजा काटकर निकलने वाले अपराधी और बड़ा अपराधी बनकर समाज में आतंक फैलाते हैं। यह जेलों के संचालन और उसके उद्देश्य को अलग करता है क्योंकि जेल अपराधियों को एक अच्छा नागरिक बनाने की जगह है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं होता है।

इस तरह यह कहा जा सकता है कि जेलो के सुधार की दिशा में हमें अभी मीलों तक चलना है और जेलों को आधुनिक बनाने के साथ ही वहां मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतों को शून्य के स्तर पर लाना प्राथमिक सूची में रखनी होगी। तभी हम जेलों में जाने वाले अपराधियों को मानव में बदलकर समाज में लाने का कार्य कर सकेंगे।

भारत में जेलों में सुधार के लिए 1983 में मुल्ला कमेटी, 1986 में कपूर कमेटी, 1987 में अय्यर कमेटी और 2001 में महिला सशक्तीकरण के लिए संसदीय समिति की सिफारिशें आ चुकी हैं जिसके आलोक में यह कहा जा सकता है कि इन कमेटियों ने जो सुझाव दिए थे वे अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं। क्योंकि देश के औसत जेलों में अभी भी कैदियों के रहने के स्थान से लेकर जीवन रक्षक उपाय पर्याप्त नहीं हैं। इन समितियों ने कैदियों में बदलाव के लिए शैक्षणिक, स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक तौर पर कई तरह की सेवाएं प्रदान करने की बात कही है। उनके मानसिक और शारीरिक विकास और स्वरोजगार से जोडऩे के लिए भी कई सिफारिशें की गई हैं।