आर्थिक जाम के प्रभाव का पता करने के लिए केन्द्र सरकार ने बिना देर किए एक उच्च स्तरीय समिति वहां भेज दी। टीम के सदस्य थे आंतरिक सुक्षा विभाग के विशेष सचिव प्रकाश मिश्र और पूर्वात्तर मामलों के संयुक्त सचिव राजीव गाबा। उन दोनो ने राज्यपाल वी के दुग्गल से मुलाकात की। मुख्यमंत्री इबाबी ओखराम सिंह से भी मिले और स्थितियों को जायजा लेकर दिल्ली वापस आ गए।
मणिपुर की समस्या का सबसे बड़ा कारण यह है कि जिन दो राष्ट्रीय राजमार्गों से यह देश के मुख्य भूभाग से जुड़ा हुआ है, दोनों बहुत ही संवेदनशील इलाके से गुजर कर यहां आते हैं। एनएच 39 तो नगालैंड की राजधानी कोहिमा से गुजरता हुआ मणिपुर में प्रवेश करता है। एनएच 53 सिलचर को इम्फाल से जोड़ने के लिए बराक घाटी में घुसता है और वह इलाका कुकी जनजातीय लोगों से भरा पड़ा है। यानी जो रोड मणिपुर को भारत के मुख्य भूभाग से जोड़ते हैं, वे कभी कुकी तो कभी नगा आतताइयों द्वारा बंद कर दिए जाते हैं।
अतीत में अनेक बार मणिपुर को सड़क जाम की मुश्किलो का सामना करना पड़ा है। एक बार तो कुकियों ने 127 दिनों को जाम लगा दिया था। उस समय उनकी मांग थी की सेनापति जिले के सदर हिल्स अनुमंडल को जिला बना दिया जाय। वह मणिुपर के लिए बहुत ही खराब समय था। उस समय पेट्रोल 140 रुपये प्रति लीटर मिल रहा था और गैस सिलंेडर 2000 रुपये में मिल रहे थे। वह 2010 का साल था और सितंबर का महीना था।
उसी साल मई महीने में नगा लोगों ने भी सड़क जाम किया था। उन्होंने 57 दिनों तक सड़क जाम की थी। उस समय मुवैया का मामला गर्म हो रहा था। मुवैया मणिपुर का है, लेकिन वह नगाओं का नेता है, जो लंबे अरसे तक मणिपुर से बाहर रहकर ही नगाओं की गतिविधियों का नेतृत्व कर रहा था। वह मणिपुर अपने पैतृक गांव आना चाहता था, पर मणिपुर सरकार ने इजाजत नहीं दी, क्योंकि उसके वहां जाने से शांति भंग होने का खतरा था। उसके आगमण का मणिपुरी मेइति लोग विरोध कर रहे थे।
केन्द्र ने तो उसे अपने गांव जाने की इजाजत दे दी थी, लेकिन मणिपुर सरकार टस से मस नहीं हो रही थी। मुवैया का वापस लौटना पड़ा था। उसके विरोध में नगाओं ने रोड जाम कर दिया था। उस साल एक के बाद एक दो सड़क जाम ने मणिपुर की स्थिति दयनीय बना दी थी। उस समय उसे लगभग प्रत्येक चीज का बाहर से आयात करना पड़ा था।
मणिपुर की नगा समस्या यह है कि वहां की नगा आबादी के लोग मांग कर रहे हैं कि नगालैंड से सटे नगा के रहने वाले इलाको को मणिुपर से हटाकर नगालैंड में मिला दिया जाय। यानी वे एक ग्रेटर नगालैंड की मांग कर रहे हैं, जिसका नाम उन्होंने नगालिम रखा है। मणिपुर के चार जिलों पर उनकी नजर है। वे जिले हैं उखरूल, सेनापति, तेमांगलांग और चंदेल। वे अरुणाचल प्रदेश और असम के अनेक जिलों को भी नगालिम में शामिल देखना चाहते हैं। लेकिन ये राज्य अपने क्षेत्र का एक वर्ग फुट जमीन देने को भी तैयार नहीं हैं। वे पड़ोसी म्यानमार के कुछ क्षेत्रों को भी नगालिम में शामिल करना चाहते हैं, क्योंकि वहां भी कुछ नगा रहते हैं। उनको पता है कि म्यानमार तो एक अलग देश ही है और वहां से उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं है, इसलिए वे सारा खुराफात भारत वाले इलाके में ही करते हैं। उनके द्वारा बार बार लगाए गए जाम को देखते हुए केन्द्र सरकार को उनके साथ सख्ती से पेश आना पड़ेगा, अन्यथा वे जबतक मणिपुर को तबाह करते रहेंगे। (संवाद)
भारत
नगा के जाम से मणिपुर को भारी नुकसान
केन्द्र को सख्ती करनी होगी
बरुण दास गुप्ता - 2014-09-09 11:46
कोलकाताः मणिपुर के नगा एक बार फिर अपनी पुरानी रौ में हैं। मणिपुर के नगा बाहुल्य वाले उखरुल जिले के एक गांव में कुछ नगाओं की मणिपुर पुलिस से मुठभेड़ हो गई, जिसमें दो नगा मारे गए और कई घायल हो गए। उसके बाद मणिपुर के नगा संगठनों के महासंघ यूनाइटेड नगा काउंसिल ने 4 सितंबर से अनिश्चितकालीन आर्थिक ब्लाॅकेड कर रखा है।