जाहिर है दिल्ली विधानसभा को उसकी सरकार की अनुशंसा के आधार पर भंग नहीं करने का उपराज्यपाल का निर्णय गलत था और निर्णय का ही खामियाजा आज दिल्ली के लोग भोग रहे हैं। यहां अपनी चुनी हुई सरकार नहीं है और जो चुने हुए विधायक हैं, उनको लेकर तरह तरह की आशंकाएं लोगों के मन में उठ रही हैं और उनसे संबंधित ऐसी खबरें जबतब आती हैं, जो हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं हैं।

इस स्थिति के लिए मुख्य रूप से कांग्रेस जिम्मेदार है, क्योंकि जब केजरीवाल की सरकार गिरी थी, तो उस समय केन्द्र में कांगेस की ही सरकार थी। विधानसभा भंग करके नया चुनाव करवाने के लिए वह उपराज्यपाल को कह सकती थी। लेकिन उसने वैसा नहीं किया। शायद इसके पीछे उसकी अपनी राजनीति थी। उस लग रहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद वह आम आदमी पार्टी से सौदेबाजी कर सकती है और दिल्ली में उसकी एक बार और सरकार बनाने की एवज में उसके जीते हुए सांसदों का समर्थन केन्द्र में अपनी तीसरी बार सरकार बनाने में कर सकती है। उसे लगा होगा कि यूपीए को अच्छी सीटें मिल जाएंगी और जोड़तोड़ करके एक बार और सरकार बना पाएगी और उस जोड़ तोड़ में आम आदमी पार्टी को भी शामिल करने के लिए उसने दिल्ली विधानसभा भंग नहंी की। उसे लगा होगा कि आम आदमी पार्टी के सांसदों की संख्या भी ठीकठाक रहेगी।

पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को तो सूफड़ा साफ हुआ ही, आम आदमी पार्टी भी तीन सीटों तक ही सिमट कर रह गई। दिल्ली विधानसभा को जिंदा रखने की जो रणनीति कांग्रेस ने बनाई थी, वह बुरी तरह फेल हो गई। लेकिन केन्द्र में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली विधानसभा भंग करवाने के बाद नया चुनाव करवाना चाहिए था, क्योंकि विधानसभा के समीकरण से स्पष्ट था कि या तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिली जुली सरकार बन सकती है अन्यथा कोई अन्य सरकार सही तरीके से बन ही नहीं सकती।

चुनाव करवाना भाजपा के हित में था, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उसे दिल्ली की 70 सीटों में से 60 पर बढ़त हासिल हुई थी, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट पर बढ़त हासिल नहीं हुई थी। बाकी 10 सीटों पर आम आदमी पार्टी को बढ़त हासिल हुई थी। इसलिए यदि जुलाई तक दिल्ली विधानसभा का चुनाव होता तो सरकार भाजपा की ही बनती। पर उसने भी विधानसभा को भंग करने की जगह बिना चुनाव कराए सरकार बनाने का विकल्प खुला रखा। ऐसा करने का एक कारण तो यह था कि उसके विधायक चुनाव नहीं चाहते थे, क्योंकि चुनावों में बहुत पैसा खर्च होता है और वे उनमें से अधिकांश अपनी जीत के लिए बहुत निश्चिंत भी नहंी थे। वे पार्टी नेतृत्व को समझाते रहे कि किस तरह से बिना चुनाव कराए भाजपा सरकार बना सकती है।

पर दल बदल कानून अब इतना सख्त हो गया है कि दिल्ली में भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी को तोड़कर चुनाव कराना आसान नहीं था। आम आदमी पार्टी के टूटने के लिए 18 विधायकों की जरूरत थी और उतनी बड़ी संख्या में विधायक अलग करना असंभव था। इसलिए आम आदमी पार्टी को तोड़कर टूटे हुए विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने में भाजपा विफल रही। उसके बाद कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर उनके टूटे हुए विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश हुई। पर दुर्भाग्य से कांग्रेस के 8 विधायकों में 4 मुस्लिम, दो सिख, एक अनुसूचित जाति और एक ओबीसी हैं और टूटने के लिए दो 6 विधायक चाहिए। एक विधायक अरविंदर सिंह लवली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता। तो शेष 5 विधायकों में 4 मुस्लिम हैं और उनके लिए भाजपा के साथ जुड़ना आसान नहीं, क्योंकि मुस्लिम संप्रदाय में भाजपा के खिलाफ जबर्दस्त माहौल है। इसलिए कुछ मुस्लिम विधायकों द्वारा टूटकर भाजपा के साथ सरकार बनाने की अटकलें बहुत जल्द ही समाप्त हो गईं और वह विकल्प भी समाप्त हो गया।

जाहिर है कि किसी भी सूरत से भाजपा की सरकार बनती हुई दिखाई नहीं पड़ रही है। यदि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा की सरकार को उपराज्यपाल शपथ दिलवा भी देते हैं, तो वह सरकार विधानसभा का विश्वास पा लेगी, इसकी संभावना बहुत कम है, क्योकि बहुमत पाने के लिए उसे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के टूटे हुए विधायकों का भरोसा होगा। आम आदमी पार्टी द्वारा किए गए स्टिंग आपरेशन से यह बात उभरकर सामने आ रही है कि भाजपा की रणनीति आप के कम से कम 5 विधायकों को अपनी तरफ लाकर अपनी सरकार बचाने की रणनीति है। उसके कारण आम विधायकों की सदस्यता चली जाएगी और फिर उन्हें भाजपा के टिकट पर लड़ाया जाएगा। लेकिन स्टिंग आपरेशन के बाद इस रणनीति को सफल बनाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।

विधानसभा चुनाव जीतने का सही समय भारतीय जनता पार्टी खो चुकी है। यदि अभी चुनाव हो तो उसके और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर होगी और दोनों में से कोई भी पार्टी जीत सकती है, लेकिन जैसे जैसे समय बीतेगा, आम आदमी पार्टी की जीत की संभावना बढ़ती जाएगी, क्योंकि इस बीच भाजपा की कमजोरियां भी सामने आती जाएंगी। इसलिए भाजपा को चाहिए कि वह वर्तमान विधानसभा में ही किसी तरह अपनी सरकार बनाने का विचार त्याग दे और विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त कर दे। यही दिल्ली की जनता के हित में है। यही लोकतंत्र के हित में है और यही खुद भारतीय जनता पार्टी के हित में भी है।(संवाद)