दिल्ली में पिछले 17 फरवरी से ही राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। विधानसभा को निलंबित रखा गया है। जनलोकपाल विधेयक को विधानसभा से पारित करवाने में विफल रहने के बाद उस दिन अरविंद केजरीवाल सरकार ने इस्तीफा दे दिया था।
राजधानी में यह तेज अफवाह है कि भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने जा रही है। पर सवाल यह उठता है कि यदि उसके पास सरकार बनाने लायक बहुमत ही नहीं है, तो फिर वह सरकार कैसे बनाएगी और यदि बना भी ली, तो विधानसभा का विश्वास कैसे हासिल करेगी? यह तभी संभव है जब वह कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कुछ विधायको को तोड़ सके और उनमे से कुछ को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए तैयार कर सके। सरकार बनाने की अफवाहों के बीच एक अफवाह यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सरकार के गठन के लिए अपनी मंजूरी अभी तक नहीं दी है।
पिछले साल विधानसभा के हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के 31 विधायक जीते थे। उनमें से तीन अब लोकसभा सांसद बन चुके हैं। इसलिए उसके पास अब सिर्फ 29 विधायक ही रह गए हैं। आम आदमी पार्टी के 28 विधायक चुनकर आए थ। उनमें से एक को आम आदमी पार्टी ने निष्कासित कर दिया है। इसलिए उसके पास अब 27 विधायक ही रह गए हैं। एक विधायक भाजपा समर्थित शिरोमणि अकाली दल का है। आम आदमी पार्टी से निकाले गए विधायक बिन्नी और एक निर्दलीय शौकीन के सहयोग से भाजपा के पास मात्र 31 विधायक हो पाते हैं। एक विधायक जनता दल (यू) का है, जिसका समर्थन भाजपा को मिलना नामुमकिन लग रहा है। इस समय विधानसभा मे कुल 67 विधायक हैं और उनमें बहुमत के लिए भाजपा को 34 विधायको के समर्थन की जरूरत पड़ रही है। जाहिर है, उसके पास 3 विधायक कम हैं। यदि 5 गैर भाजपा विधायक अपनी सदस्यता गंवाने के लिए तैयार हो जाए, तो भाजपा की सरकार को बहुमत का समर्थन हासिल हो सकता है और सारा खेल इसी के लिए अब शायद चल रहा है।
विधानसभा को भंग कराकर नया चुनाव कराए जाने के मामले को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में भी घसीटा है। वहां इसकी सुनवाई पिछले दिनों हुई थी। उस सुनवाई के दबाव में ही उपराज्यपाल ने राष्ट्रपति से भारतीय जनता पार्टी के अल्पमत सरकार को शपथ दिलाने का आदेश मांगा था। सुनवाई के दौरान उपराज्यपाल और केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि राष्ट्रपति की अनुमति का इंतजार किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्यपाल को इस मामले को सुलझाने के लिए एक महीने का समय दे दिया है।
भाजपा के पास बहुमत नहीं है, फिर भी उसके विधायक सरकार बनाने पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि अल्पमत सरकार भी विधानसभा का विश्वास हासिल कर लेगी, क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के विधायक भी चुनाव नहीं चाहते हैं और वे विधानसभा बचाने के लिए भाजपा की अल्पमत सरकार को गिराना नहीं चाहेंगे।
उन्हें इस बात का डर लग रहा है कि यदि चुनाव हुए, तो उसमें भाजपा को नुकसान भी हो सकता है। उत्तराखंड और बिहार में हुई हार का वे उदाहरण दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के प्रति लोगों का पहले जैसा उत्साह नहीं रहा है। इसका हवाला देते हुए वे पार्टी नेतृत्व पर दबाव डाल रहे हैं कि सरकार का गठन करने की इजाजत दे दी जाय।
आम आदमी पार्टी को भी लग रहा है कि उसके पास अब पहले जैसा आधार नहीं रहा। कांग्रेस तो चुनाव से सबसे ज्यादा चिंतित है, क्योंकि उसका चुनाव में पूरी तरह सफाया भी हो सकता है। इस समय उसके पास 8 विधायक है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में विधानसभा की किसी भी सीट पर उसके उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट नहीं आया था। (संवाद)
भारत
दिल्ली दरबार का अनिश्चय, नया चुनाव क्या इसका हल है?
कल्याणी शंकर - 2014-09-12 12:57
क्या दिल्ली को नई सरकार मिलेगी या उसके पहले उसे चुनाव का सामना करना पड़ेगा? राष्ट्रीय राजधानी एक पूर्ण प्रदेश नहीं है। यह एक केन्द्र शासित प्रदेश है और इस सरकार के पास ताकत भी बहुत कम है, लेकिन राजनैतिक रूप से यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रदेश है। निष्पक्ष लोगांे की राय है कि दिल्ली मे चुनाव करवाने चाहिए, क्योंकि इससे ही गतिरोध दूर होगा। आम आदमी पार्टी ने अभी एक स्टिंग किया था और उससे पता चलता है कि पर्दे की पीछे क्या क्या हो रहा है। सच तो यह है कि कोई चुनाव नहीं चाहता, लेकिन समस्या यह है कि चुनाव जरूरी हो गए हैं, क्योंकि वर्तमान विधानसभा में अनैतिक और गैरकानूनी तरीको के इस्तेमाल के बिना सरकार बनाई ही नहीं जा सकती।