प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव राजेश राजौरा को भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए कहा गया था। वे उसमें शामिल भी हुए। वे कृषि ओर किसान कल्याण मंत्रालय के प्रधान सचिव हैं। भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि प्रदेश सरकार की कृषि नीति के भिन्न भिन्न पहलुओं से वह भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी के सदस्यों को अवगत कराएं। उस बैठक में श्री राजौरा ने प्रदेश सरकार की कृषि नीति के बारे में कार्यकारिणी को जानकारी दी। उन्होंने कार्यकारिणी के सदस्यों को संबोधित किया। उस बैठक में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान भी उपस्थित थे। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी वहां थे। उन दोनों के अलावा प्रदेश सरकार के लगभग सभी मंत्री, अनेक भाजपा विधायक और सांसद भी वहां मौजूद थे।

जैसे ही पता चला कि एक नौकरशाह ने भाजपा कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित किया है विपक्षी कांग्रेस हंगामा करने लगे। वे एक नौकरशाह द्वारा भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने की बात की निंदा करने लगे। उन्होंने इसके लिए प्रदेश सरकार की भी निंदा की और कहा कि राजनीति में नौकरशाहों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

इस घटना का मुखर विरोध करने के साथ साथ विपक्षी पार्टी ने उसी नौकरशाह को सरकार की कृषि नीति से अवगत कराने के लिए अपने कार्यालय में आने का निमंत्रण दे डाला। उनकी आशाओं के अनुरूप ही श्री राजौरा कांग्रेस कार्यालय नहीं पहुंचे।

कांग्रेस के अलाव अन्य अनेक निष्पक्ष लोग कह रहे हैं कि नौकरशाह जिन नियमों से शासित होते हैं, उन नियमों का उल्लंघन हुआ है। एक पूर्व मुख्य सचिव के एस शर्मा का कहना कि उक्त नौकरशाह को अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए थी और पार्टी की बैठक में शामिल होने से साफ इनकार कर देना चाहिए था। वे जानते हैं कि वैसी हालत में उन्हें क्या करना चाहिए। इसके अलावा सरकार के राजनैतिक नेतृत्व को भी यह देखना चाहिए था कि नियम क्या हैं और उन्हें पार्टी की बैठक में नहीं बुलाया जाना चाहिए था। नियम में साफ साफ लिखा हुआ है कि अधिकारियों को राजनैतिक बैठकों में शामिल नहीं होना नहीं होना चाहिए।

इस बीच कांग्रेस का एक शिष्ट मंडल अरुण यादव के नेतृत्व में मुख्य सचिव डे सा एंटोनी से मिला और श्री राजौरा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की मांग की। मुख्य सचिव ने आश्वासन दिया है कि वे इस पूरे मामले की जांच कराएंगे।

उसी तरह की एक और घटना सामने आई है। वह घटना एक उच्चस्थ पदाधिकारी द्वारा अपने नीचे के अधिकारियों के स्थानांतरण से संबंधित है। स्थानांतरण अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन उसके साथ साथ आदेश में यह भी बताया गया है कि किसकी सिफारिश पर वह स्थानांतरण और पदस्थापन हो रहे हैं। प्रत्येक स्थानांतरण आदेश में उसकी जानकारी दी गई है। मजे की बात तो यह है कि अनेक स्थानांतरण भाजपा के नेताओं की सिफारिश की गई है और किनकी सिफारिश पर किन्हें स्थानांतरित किया गया है, इन सबका साफ साफ उल्लेख किया गया है।
जिन लोगों के नाम का सिफारिश कत्र्ता के रूप में उल्लेख है, उनमें प्रदेश्ज्ञ भाजपा के अध्यक्ष नन्द कुमार चैहान भी शामिल हैं। श्री चैहान लोकसभा के सदस्य भी हैं। श्री चैहान ने सिफारिश का समर्थन किया है और कहा है कि वे आगे भी इस तरह की सिफारिशें करते रहेंगे।

सच कहा जाय तो मध्य प्रदेश में नौकरशाह और राजनीतिज्ञ का अंतर समाप्त होता जा रहा है। 2006 में ही भाजपा सरकार ने एक आदेश जारी कर प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं में जाने की छूट दे दी थी। (संवाद)