ये दोनों संकट आपस में मिलकर तृणमूल के लिए एक महासंकट बन रहे हैं, क्योंकि शारदा चिट फंड के पैसों को भारत विरोधी उक्त बांग्लादेशी संगठन के पास जाने का आरोप भी लग रहा है। गौरतलब है कि राज्यसभा के तृणमूल कांग्रेस पर शारदा घोटाले से फायदा उठाने का आरोप पहले ही लग चुका है।

राज्यसभा के वे सांसद हैं इमरान, जिसे ममता बनर्जी ने इसी साल राज्यसभा के लिए निर्वाचित करवाया है। इमरान हसन पर ही देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लग रहा है। तृणमूल कांग्रेस इमरान हसन के बचाव में आ गई है और इसके लिए उसने इमरान के पक्ष में अपनी महिला कार्यकत्र्ताओं की रैली निकलवा दी।

इमरान का बचाव करते हुए रूटीनी तरीके से बचाव करने से तृणमूल को कोई फायदा नहीं होने वाला हैं, क्योंकि उनपर लग रहा आरोप पश्चिम बंगाल या भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आरोप बांग्लादेश में भी लग रहा है। सच तो यह है कि बांग्लादेश सरकार ने ही भारत सरकार को उक्त सांसद के भारत विरोधी जमात ए इस्लामी से संबंध होने के आरोप दिए हैं और उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की है।

गौरतलब है कि जमात ए इस्लामी बांग्लादेश में अपनी कट्टरवादी गतिविधियों के लिए कुख्यात रही है। पिछले साल जब बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का साथ देने वाले अपराधियों के खिलाफ सजा सुनाई जा रही थी, तो जमात ने भारी उपद्रव मचाया था। बांग्लादेश को उसने हिंसा की आग मंे धकेल दिया था। वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं को उस हिंसा का मुख्य निशाना बनाया गया है।

तृणमूल कांग्रेस के उस सांसद पर उसी जमात एक इस्लामी का समर्थक होने का आरोप है। बात सिर्फ मौखिक समर्थन तक सीमित नहीं है। बांग्लादेश प्रशासन ने सबूत देते हुए बताया है कि भारतीय संासद इमरान हसन ने जमात की आर्थिक सहायता भी की। इमरान पर शारदा चिटफंड के घोटालेबाजों से फायदा उठाने का आरोप है और कुछ लोग आशंका व्यक्त कर सकते हैं कि कहीं शारदा के घोटाले से कमाई गई राशि को बांग्लादेश में भारत विरोधियों को सहायता देने में तो इस्तेमाल नहीं किया गया।

इमरान हसन एक पत्रकार हैं और वे ’’कलम’’ नाम की एक पत्रिका के संपादक रह चुके हैं। उनकी यह पत्रिका शारदा चिट फंड के कारण एक दैनिक अखबार बन गई। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक साधारण पत्रिका को शारदा चिट फंड के पास भारी रकम में बेच दिया गया। बिक्री के पैसे भी दे दिए गए, लेकिन मालिकाना हक फिर भी इमरान का ही बना रहा, क्योंकि मालिकाना हक के स्थानांतरण से संबंधित दस्तावेज तैयार करने की जरूरत दोनों पक्षों में से किसी ने भी नहीं की। अब चिट फंड के मालिक कहते हैं कि उस पत्रिका को खरीदने के लिए तृणमूल के नेताओं के द्वारा उन पर भारी दबाव पड़ा था और उसके कारण ही उसे खरीदना पड़ा, हालांकि खरीद की दस्तावेजी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई।

केन्द्र सरकार ने बांग्लादेश से मिली शिकायत को पश्चिम बंगाल सरकार के सुपुर्द कर दिया है। अब आगे की कार्रवाई पश्चिम बंगाल की पुलिस को ही करनी है, लेकिन वह वैसा करने के मूड में नहीं दिखाई पड़ती। पर पहले से ही शारदा घोटाले की जांच सीबीआई के द्वारा की जा रही है और इसका संबंध उस घोटाले से होने के कारण देर या सबेर यह मामला सीबीआई के पास भी आ ही जाएगा। वैसी हालत में इमरान हसन को बचा पाना तृणमूल कांग्रेस और उनकी नेता ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं होगा। (संवाद)