सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को तो झटका दे ही दिया है और उसकी नई नीति को खारिज कर दिया है। इसके अतिरिक्त उसने हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि अन्य बार लाइसेंस से संबंधित सभी मामलों का निबटारा 30 सितंबर तक कर डाले।

शराब नीति को जिस तरीके से क्रियान्वित करने का काम प्रदेश सरकार कर रही थी, उससे सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया है। प्रदेश सरकार द्वारा दिखाई गई हड़बड़ी पर उसने उसकी खिंचाई कर डाली है। उसने पूछा है कि यह कैसी शराब नीति है जिसके तहत जिसके पास काफी पैसा है, वह तो शराब पी सकता है और जिसका पास पैसा नहीं है, वह शराब नहीं पी सकता है। गौरतलब है कि नई नीति के तहत पंच सितारा होटलों में शराब बिक्री की इजाजत दे दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार वास्तव में पूरी शराबबंदी चाहती है, तो उसे एक झटके में ही शराब की सारी दुकानें बंद करवा देनी चाहिए। गौरतलब है कि गुजरात सरकार ऐसा कर भी चुकी है।

कानूनी जानकारों का कहना है कि जिस हड़बड़ी के साथ सरकार ने अपनी शराब नीति बनाई, उसे देखते हुए ऐसा होना ही था। उस नीति पर अमल भी बहुत ही गलत तरीके से हो रहा था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि उस नीति में काफी अंतर्विरोध थे।

इस फैसले के बाद सत्तारूढ़ यूडीएफ में दरारें एक बार फिर दिखाई पड़ने लगी हैं। कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां सरकार के इस फैसले से पहले ही नाराज थीं। उनकी नाराजगी का सबसे बड़ा कारण यह था कि उनसे राय मशविरा किए बिना ही इस नीति को तैयार किया गया था। कांग्रेस के अंदर अपने प्रतिद्वंद्वी प्रदेश अघ्यक्ष सुधीरन को राजनैतिक पटकनी देने के लिए मुख्यमंत्री ओमन ने आनन फानन में एक नई नीति तैयार कर ली थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष 418 बंद बार को फिर से लाइसेंस दिए जाने का विरोध कर रहे थे, जबकि मुख्यमंत्री उन्हें लाइसेंस देना चाहते थे। फिर एकाएक सुधीरन से भी ज्यादा शराब विरोधी दिखाई पड़ने के लिए उन्होंने एक ऐसी नीति तैयार कर ली, जिससे सुधीरन का शराब विरोध भी उनके सामने छोटा पड़ने लगा, लेकिन वह नीति फुलप्रूफ नहीं थी और इसके कारण ही सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मात खानी पड़ी।

फैसले के बाद यूडीएफ के नेता शर्म से लाल हैं। कुछ को गुस्सा भी है। उन्हें गुस्सा इस बात का है कि बिना आपस में विचार विमर्श किए हुए मुख्यमंत्री ने बहुत ही गोपनीय तरीके से यह फैसला ले लिया। इस तरह के फैसले पर यूडीएफ की समन्वय समिति में चर्चा होनी चाहिए थी।

बार मालिको को इस फैसले से बहुत राहत मिली है। वे चाहते थे कि इस पर फैसला जल्द से जल्द हो, क्योंकि 12 सितंबर से बार को बंद होना था। बार मालिको का सुप्रीम कोर्ट में कहना था कि सरकार के निर्णय से उनके आजीविका अधिकार को खतरा था। वे उसे अपने मौलिक अधिकारों का हनन भी मान रहे थे। उनका कहना था कि जब उनके लाइसेंस की अवधि खत्म हो जाय, तो सरकार चाहे तो दुबारा लाइसेंस नहीं दे, लेकिन जब लाइसेंस मिला हुआ है और उसकी अवधि समाप्त नहीं हुई है, तो फिर सरकार उनकी दुकानें कैसे बंद करवा सकती है? (संवाद)