कुलपति से वे लोग नाराज इसलिए थे, क्योंकि उन्होंने विश्वविद्यालय स्थित कश्मीरी छात्रों की सहायता की अपील अन्य छात्रों से की थी। कश्मीर में आई बाढ़ और उससे हुई तबाही को ध्यान में रखते हुए कुलपति ने वह मानवीय अपील की थी। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ न केवल हाथापाई की, बल्कि दफ्तर के कंप्यूटरों व अन्य कीमती सामानों को भी नष्ट कर दिया। समाज विरोधी तत्वों के हमले का असर यह हुआ कि उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल के आईसीयू में रखना पड़ा।

कुछ साल पहले उज्जैन विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने घातक हमला किया था। हमले में प्रोफेसर साबरवाल बुरी तरह घायल हुए थे और उनकी मौत भी हो गई थी।

इस घटना से यह साबित हो गया कि आरएसएस से जुड़े हिन्दू संगठन कश्मीर के बाढ़ पीड़ित लोगों की सहायता किए जाने के खिलाफ हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हुड़दंगी नारा लगा रहे थे कि गद्दारों और पाकिस्तान के समर्थकों को किसी तरह की सहायता नहीं की जानी चाहिए।

15 सितंबर की उस घटना की रिपोर्ट देते हुए एक अखबार ने लिखा कि विक्रम विश्वविद्यालय में साथी प्रोफेसरों और अन्य कर्मचारियों के समय पर हस्तक्षेप के कारण प्रोफेसर साभरवाल जैसी घटना दुहराए जाने से बच गई।

लेकिन उस हमले ने प्रोफेसर साभरवाल की याद को ताजा कर दिया है। वे उज्जैन के माधव काॅलेज के प्रोफेसर थे और उनकी 26 अगस्त, 2006 के दिन हत्या कर दी गई थी। वह काॅलेज विक्रम विश्वविद्यालय से ही जुड़ा हुआ था।

उस मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 6 छात्रों के खिलाफ मुकदमा चला था, लेकिन सभी के सभी अदालत से रिहा हो गए, क्योंकि सभी 94 गवाह अपनी गवाही से पलट गए। प्रोफेसर साभरवाल राजनैतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख थे और उन्हें छात्र परिषद के चुनावों का जिम्मा सौंपा गया था।

कुलपति कौल को तो अन्य प्रोफेसरों और कर्मचारियांे ने बाथ रूम में बंद कर बचा लिया, लेकिन प्रोफेसर साभरवाल को समय पर बचाने के लिए लोग मिल भी नहीं पाए और वे आक्रमणकारियों की हिंसा के शिकार हो गए।

दोनांे वारदातों में हमलावरों की संख्या 30 से ज्यादा थी। प्रोफेसर साभरवाल पर हमला इसलिए किया गया, क्योंकि वे चुनाव के नतीजों को बदलने के लिए वे तैयार नहीं थे। उनका वह निर्णय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विद्यार्थियों को पसंद नहीं आया। वे उनके साथ पहले बहस करने लगे और उसके बाद लाठियों और लोहे की छड़ों से उन पर हमला कर दिया। उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र मुकदमें में बरी हो गए, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सुनवाई के दौरान दबाव बनाया और गवाह मुकरते चले गए। साभरवाल पर शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में ही हमले हुए थे, लेकिन किसी ने उनके पक्ष में गवाही नहीं दी। एक चपरासी ने शुरू में हिम्मत दिखाई, लेकिन बाद में वह भी पलट गया। प्रोफेसर साभरवाल के मामले में शिक्षकों ने उनके परिवार का साथ नहीं दिया, लेकिन इस बार उन्होंने हड़ताल की और पुलिस से दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इस मसले पर चुप्पी साध रखी है। (संवाद)