जानवरों पर प्रयोग के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के उद्देश्य से गठित समिति (सीपीसीएसईए) 2010 के राष्ट्रीय सम्मेलन का आज उद्घाटन करते हुए वन और पर्यावरण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री जयराम रमेश ने यह बात कही।

उन्होंने कहा कि मानव जीनोम शोध विकास के साथ वाणिज्यिक संस्थानों और उद्योगों तथा तरीकों के साथ प्रयोगीकरण में वानरों की मांग बढ ऱही है । लेकिन हमें अकादमिक ज्ञान के नाम पर प्रयोगीकरण में जानवरों के उपयोग को बढा़ने की अनुमति न देने की आवश्यकता है ।

एनआईसीएचई द्वारा आयोजित प्रदर्शन को संबोधित करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि यह आश्चर्यजनक प्रदर्शनी दर्शाती है कि प्रयोगीकरण के तरीकों में क्रांति लाने में आधुनिक प्रौद्योगिकी क्या कर सकती है । यह बदलाव में पूर्ण रूपांतरण के रास्ते दिखाती है और पूरे विश्व में पशु प्रेमियों के सरोकारों को पूरा करने के लिए कैसे आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा सकता है ।

कमी, परिशोधन और बदलाव (स्थानापन्न) (आरआरआर के सिद्धांत) के विषय में बात करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि हम अभी भी प्रथम चरण अर्थात कमी करने वाले चरण में हैं । हम परिशोधन चरण में प्रवेश करने के लिए प्रयोगिक कदम उठा रहे हैं । हमे अपने तरीकों को परिशोधित करना है और प्रयोगों में जानवरों को स्थानापंन करना है। भारतीय संस्कृति जीवन के सभी रूपों का सम्मान करती है चाहे वह मानव जीवन को या पशु जीवन । हम प्रयोगीकरण में जानवरों के प्रयोग में सम्मान प्रदर्शित करेंगे । हमें पशु कल्याण के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है ।

मंत्री महोदय ने वन और पर्यावरण मंत्रालय के तहत पशु कल्याण प्रभाग द्वारा प्रकाशित स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर फॉर इंस्टीट्यूशनल एनीमल इथिक्स कमेटी (आईएईसी) नामक पुस्तक का विमोचन भी किया । #