भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन 1989 में हुआ था। उस साल हुए लोकसभा चुनाव में दोनों एक साथ थे। भारतीय जनता पार्टी प्रमोद महाजन ने उसे संभव बनाया था। उस समय वे महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। उसी के तहत उन्होंने शिवसेना के बाल ठाकरे से हाथ मिलाया था। हिंदुत्व के एजेंडे पर दोनों एक दूसरे के साथ हुए थे। जब लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में रथयात्रा शुरू की थी, तो उस समय शिवसेना ने उसका समर्थन किया था। 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए भी शिवसेना ने अपने लोग अयोध्या भेजे थे। 2002 में गुजरात दंगे के बाद नरेन्द्र मोदी को वहां के मुख्यमंत्री के पद से हटाने की मांग जब तेज हो रही थी, तो उस समय भी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बयान जारी किया था। इसलिए जब भाजपा के साथ शिवसेना का सीट बंटवारों के लिए तनाव चल रहा था, तो उद्धव ठाकरे ने श्री मोदी को याद दिलाया था कि कैसे 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री की उनकी कुर्सी बाल ठाकरे के समर्थन के कारण बची थी।
शिवसेना लगातार भाजपा के साथ बनी रही। दोनों ने न केवल केन्द्र में सत्ता की भागीदारी की, बल्कि महाराष्ट्र में भी एक दूसरे के साथ सत्ता में हिस्सेदारी की थी। 1989 के बाद दोनो पार्टियां अनेक बार एक साथ हारी और एक साथ जीती, लेकिन दोनों का साथ बना रहा। पिछले लोकसभा चुनाव मे दोनांे ने तीन अन्य पार्टियों को भी अपने साथ ले लिया था और उनके साथ महायुति बनाई थी। महायुति ने 42 सीटांे पर जीत हासिल की थी। भारतीय जनता पार्टी 24 सीटो पर जीती और उसकी इस जीत ने उसे अकेला लड़ने का विश्वास दे डाला।
जबतक बाल ठाकरे जिंदा रहे, शिवसेना भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ती रही। इसका कारण बाल ठाकरे का राजनैतिक कद था। भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष पर अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी थे। उनके कारण भी गठबंधन में मजबूती बनी रही। पर अब न तो बाल ठाकरे इस दुनिया में हैं और न ही अटल और आडवाणी भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में प्रासंगिक रह गए हैं। इसके कारण जब भाजपा और शिवसेना के नेताओं के बीच अहम का टकराव हुआ, तो गठबंधन को बचाने वाला कोई नहीं था।
2000 से ही भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में अपनी स्थिति मजबूत कर रही है, जबकि शिवसेना वहां लगातार कमजोर होती जा रही है। बाल ठाकरे के बाद उसके सबसे कद्दावर नेता छगन भुजबल तो उसे 1991 में ही छोड़ चुके थे। 2005 में नारायण राणे ने भी उसे छोड़ दिया। शिवसेना के सभी बड़े नेता या तो दुनिया छोड़ चुके हैं या पार्टी छोड़ चुके हैं या पार्टी में दरकिनार कर दिए गए हैं। राज ठाकरे के सेना से बाहर जाने के बाद तो वह भारतीय जनता पार्टी पर और भी ज्यादा निर्भर हो गई थी। 2009 के विधानसभा चुनाव में राज ने शिवसेना का काफी नुकसान किया था। पर पिछले लोकसभा चुनाव मे मोदी लहर का लाभ उठाकर शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी और इसके कारण उद्धव की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई थी।
अब जब भाजपा का शिवसेना के साथ और कांग्रेस का एनसीपी के साथ गठजोड़ टूट गया है, तो किसी एक पार्टी के बहुमत में आने की संभावना भी नहीं के बराबर है। चारों बड़ी पार्टियां विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश में लग जाएगी। (संवाद)
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महाराष्ट्र में अब चौतरफा मुकाबला
दोनों गठबंधन टूटे
कल्याणी शंकर - 2014-09-27 15:58
महाराष्ट्र विधानसभा का विधानसभा चुनाव अब दिलचस्प हो गया है। आगामी 15 अक्टूबर को मतदान होना है। चारों बड़ी पार्टियों ने वहां अपने अपने गठबंधन तोड़ डाले हैं। अब वे सभी अपनी अपनी ताकत पर ही लड़ेंगे। शिवसेना का भारतीय जनता पार्टी से 25 साल पुराना गठबंधन था। वह अब टूट गया है। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का कांग्रेस के साथ 15 साल पुराना गठबंधन था। वह भी टूट चुका है, हालांकि दोनों ने 1999 का चुनाव अलग अलग लड़ा था। एनसीपी और कांग्रेस 2004 और 2009 के चुनाव में एक दूसरे के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी।