शिवसेना का भाजपा के साथ और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का कांग्रेस के साथ गठबंधन का टूटना उस प्रभाव के तहत ही संभव हो सका है। भाजपा शिवसेना के बराबर सीटें चाहती थी, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसे जबर्दस्त सफलता हासिल हुई और वह अपने बूते ही लोकसभा में बहुमत में है। शिवसेना उसकी केन्द्र सरकार को समर्थन दे या न दे, इससे उसकी सेहत पर असर नहीं पड़ता, इसलिए वह शिवसेना के दबाव में नहीं आई। महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना से ज्यादा लोकसभा सीट मिली। पिछले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की जीत का प्रतिशत शिवसेना की अपेक्षा ज्यादा रहा है। इसलिए भाजपा अड़ गई कि उसे ज्यादा सीटें चाहिए।
भाजपा को शिवसेना ज्यादा सीटें दे भी देती, पर लोकसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों मंे भाजपा हारती रही। भाजपा की हार से शिवसेना ने निष्कर्ष निकाला कि मोदी को मिला जनसमर्थन एक बार का ही था। बार बार जनता मोदी के नाम पर भाजपा को वोट देने वाली नहीं है, इसलिए भाजपा को इस बात का मुगालता नहीं होना चाहिए कि वह जमीनी स्तर पर मजबूत हो गई है और वह शिवसेना की महाराष्ट्र में बराबरी कर सकती है। यही कारण है कि शिवसेना ने भाजपा की बात नहीं मानी और वहां गठबंधन टूट गया।
एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन भी लोकसभा चुनाव के नतीजों के प्रभाव में ही टूटा है। कांग्रेस को बहुत ही शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। उसे मात्र 44 लोकसभा सीटें मिली, जो कुल सीटों का 10 फीसदी भी नहीं है। जाहिर है एनसीपी कांग्रेस को एक डूबती हुई नाव के रूप में देख रही है, जिसका भविष्य धुंधला गया है। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की स्थिति एनसीपी से भी बदतर रही। कांग्रेस ने एनसीपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े थे, पर उसे मात्र 2 सीटें हासिल हुईं, जबकि कम सीटों पर लड़ने के बावजूद एनसीपी को कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिलीं। वह 4 सीट पर विजयी हुई है। इसलिए उसे लगा कि उसे ज्यादा सीट मिली चाहिए। 2005 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 71 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को 69, हालांकि 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 82 सीटें मिलीं, जबकि एनसीपी को मात्र 62। इस बार एनसीपी कांग्रेस के बराबर सीट पर चुनाव लड़ने की जिद पर अड़ गई और दोनों का गठबंधन टूट गया।
सवाल उठता है कि चुनाव के बाद किस तरह की स्थिति पैदा होगी? इतना तो तय है कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा। एक त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आएगी। भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने की पूरी संभावना है। सीटों की संख्या के लिहाज से शिवसेना शायद दूसरी बड़ी पार्टी बने। एनसीपी तीसरी बड़ी पार्टी हो सकती और कांग्रेस चैथे नम्बर की पार्टी। कुछ छोटी छोटी पार्टियों को भी सीटें मिलेंगी। उनमंे से चार पार्टी तो भाजपा के साथ ही गठबंधन करके 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।
चुनाव के बाद शिवसेना फिर एक बार भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। भाजपा के पास एनसीपी के साथ मिलकर भी सरकार बनाने का विकल्प है। यदि राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को अच्छी संख्या में सीटें मिली और उसके साथ गठबंधन कर बहुमत का आंकड़ा जुट सका, तो भाजपा उसके साथ मिलकर भी सरकार बना सकती है। अन्य छोटी पार्टियों का साथ भी वह ले सकती है। इस तरह उसके पास बहुत सारे विकल्प बचे हैं।
एक तरह से देखा जाय, तो दोनों का गठबंधन टूटना अच्छा ही रहा, क्योंकि अलग अलग चुनाव लड़ने से भी सभी पार्टियों को अपनी असली ताकत का अहसास हो जाएगा। लोगों को भी पता चल जाएगा कि कौन पार्टी कितने पानी में है। (संवाद)
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चुनाव के बाद महाराष्ट्र में बनेंगे नये समीकरण
शिवसेना से ज्यादा चिंता भाजपा को होनी चाहिए
अमूल्य गांगुली - 2014-10-01 11:32
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र पहला राज्य है, जहां विधानसभा का आम चुनाव हो रहा है। इस बीच विधानसभाओं के कुछ उपचुनाव भी हुए हैं। लोकसभा आम चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनावों के असर से महाराष्ट्र की राजनीति प्रभावित हो रही है और उसका प्रभाव साफ साफ देखने को मिल रहा है।