पहले दिए गए संघ प्रमुख के भाषणों मंे ये सब बातें जरूर की जाती थीं। उदाहरण के लिए 2012 के भाषण में मोहन भागवत ने केन्द्र सरकार से कहा था कि वह संसद में कानून लाकर रामजन्मभूमि न्यास को अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध कराए और यह भी सुनिश्चित कराए कि बाबरी मस्जिद के बदले दूसरी मस्जिद का निर्माण अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा से बाहर हो। उनकी यही एकमात्र इच्छा नहीं थी, बल्कि उन्होंने यह भी कहा था कि लव जेहाद के द्वारा हिंदू समाज पर परोक्ष रूप से हमला किया जा रहा है।
यदि भागवत के भाषण में इस तरह की बातें इस बार नहीं है, तो उसके कारण हैं और बहुत ही स्पष्ट है। इसका एक कारण यह है कि पहले जिन तत्वों पर वे हमला करते थे, उन तत्वों के हाथ से सत्ता चली गई है। अब उनकी सरकार है, जो नागपुर में अपना सिर झुकाया करते हैं। उसके कारण भागवत अब सत्ताधीशों से खुश हैं और उन्हें लग रहा है कि सरकार सकारात्मक संकेत दे रही है।
सत्ता बदलाव से उपजे आशावाद का ही यह नतीजा था कि भागवत ने अपने भाषण की शुरुआत मंगल मिशन की कामयाबी से की और एशियाई खेलों मंे भारत के खिलाड़ियों की जीत पर भी खुशी जाहिर की। उन्होंने जो एक महत्वपूर्ण बात कही, वह यह थी हिन्दुत्व की उनकी परिभाषा। भारत के सेकुलर लोग भी उनकी इस परिभाषा से असहमत नहीं हो सकते। उन्होंने हिन्दुत्व को पारिभाषित करते हुए कहा कि बहुलतावादी समाज में यह सबका एकीकरण करता है और सबको अपने रूप में स्वीकार करता है।
कहने की जरूरत नहीं कि यह एक रणनीतिक समझौतावाद है, जिसके तहत नरेन्द्र मोदी सरकार को उसे विकासवादी कामों को करने के लिए मोहलत दी जा रही है, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि भारत का लोकतंत्र इतना परिपक्व हो चुका है कि फासीवादी ताकतों को भी उदार होना पड़ता है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि मोदी सरकार लड़खड़ाई तो संघ अपने पुराने रवैये पर वापस आ जाएगा। लेकिन इस समय संघ अपने मूल मुद्दे पर चुप है और यही कारण है कि राम मंदिर निर्माण पर इसके कुछ भी नहीं कहा।
विश्व हिंदू परिषद ने इस बात को स्वीकार किया है कि यह मसला एक साल के लिए टाल दिया गया है। इस मतलब है कि नरेन्द्र मोदी संघ परिवार को विवादास्पद मुद्दों को 10 साल तक स्थगित रखने के लिए राजी कर चुके हैं। संघ प्रमुख को दूरदर्शन पर सीधा भाषण करते हुए दिखाया गया। यह शायद विवादास्पद मुद्दों को उनके द्वारा छोड़ दिए जाने के बदले में था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा भारत आर्यों की मूलभूमि है को अपने सिलेबस में शामिल करना भागवत के दावों के अनुसार ही है। जाहिर है संघ की कोशिश अब भारत के इतिहास को अपनी समझ के अनुसार बदलने की होगी। वाई सुदर्शन को भारतीय इतिहास शोध परिषद का अध्यक्ष बनाने के पीछे यह इरादा काम कर रहा है। इस समझ के अनुसार रामायण और महाभारत की घटनाओं को इतिहास माना जाता है। विवादास्पद मसलों को छोड़ने के लिए सरकार ने इतना स्वीकार कर लिया है। भागवत को भी अहसास हो गया है कि निकट भविष्य में वे भारत का भगवाकरण नहीं कर पाएंगे। (संवाद)
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आरएसएस प्रमुख का भाषण में राम मन्दिर का जिक्र नहीं
अमूल्य गांगुली - 2014-10-08 16:42
सेक्युलर ब्रिगेड भी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी के दिन दिए गए भाषण से निराश हैं। वह भाषण दूरदर्शन पर सीधा प्रसारित किया गया था। पर उनके निराशा का सबब सीधा प्रसारण नहीं है, बल्कि उस भाषण में कुछ बातों का जिक्र नहीं किया जाना है। उदाहरण के लिए उसमें अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मन्दिर के निमार्ण को कोई उल्लेख नहीं था। इसके साथ ही लव जेहाद के बारे में भी उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। मुस्लिम विरोधी बातें कर हिंदुओं के समर्थन को हासिल करने की रणनीति पर आरएसएस काम करता रहा है, पर इस उसके प्रमुख के भाषण में मुस्लिम विरोध गायब था।