भारत विरोध से जन्मे पाकिस्तान अपने को एक भी नहीं रख पाया और 1971 में उसके दो टुकड़े हो गए। उसके दो टुकड़े तो उसके अपने अंतर्विरोधों से हुए, लेकिन उसे लगता है कि उसके पीछे भारत का हाथ था। इसके कारण उसकी मानसिक और बिगड़ी है और वह भारत के खिलाफ उग्रवादी गतिविधियों को संरक्षण देना अपना नैतिक आधार मानता रहा है। इसके कारण ही उसने पंजाब में अलगाववादी तत्वों को सहायता प्रदान करता रहा और जब वहां उसकी मंशा विफल हो गई, तो उसने कश्मीर में अपनी कार्रवाई तेज कर दी। कश्मीर में भी उसका मंशा सफल नहीं हो रही है। आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देकर वह हिंसा फैलाने में और जान माल की हानि पहुंचाने में भले कुछ सफल हो जाय, लेकिन इससे ज्यादा कुछ उसे हासिल होने को नहीं है। सच कहा जाय, तो इससे उसे कुछ हासिल भी नहीं होता है, उल्टे उसे नुकसान हो रहा है। भारत विरोध के कारण उसकी अनेक पीढ़ियां तबाह हो गई हैं और उसका पूरा समाज हिंसक हो गया है और उसकी हिंसा की आग में पाकिस्तान आज खुद जल रहा है।

भारत को टुकड़े टुकड़े करने चला पाकिस्तान आज खुद और भी टुकड़ों मंे बंटने के खतरे का सामना कर रहा है। पूर्वी पाकिस्तान तो उसके हाथ से 1971 में ही निकल गया था और वह बांग्लादेश के नाम से दुनिया का एक अलग देश बन गया है, शेष बचा पाकिस्तान भी टूटने के खतरे का सामना कर रहा है। ब्लूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं और वहां के बलोच लोग अपने लिए अलग देश की मांग कर रहे हैं। जब तब सिंध में भी इसी तरह के आंदोलन होने लगते हैं। पख्तूनवा में तो पाकिस्तानी तालिबानियों ने पाकिस्तान सरकार की ऐसी तैसी कर रखी है। वहां पाकिस्तान को उनके खिलाफ सैनिक कार्रवाई तक करनी पड़ रही है। उसका अनेक इलाका पाकिस्तान के नियंत्रण से लगभग बाहर हो चुका है और वह आतंकवादियों का गढ़ बन चुका है। पाकिस्तान का पंजाब भी हिंसा की आग से झुलस रहा है।

पाकिस्तान क्षेत्रीय स्तर पर ही समस्या का सामना नहीं कर रहा है, बल्कि इसे राजनैतिक लोकतांत्रिक आंदोलनों का सामना भी करना पड़ रहा है। नवाज शरीफ की सरकार एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार है, लेकिन उसको चुनौती इमरान खान की पार्टी से मिल रही है। पाकिस्तानी संसद का कुछ समय पहले ही घेराव किया गया था और कुछ समय के लिए लग रहा था कि वहां शरीफ सरकार के दिन लद गए हैं। वहां की लोकतांत्रिक सरकार सेना पर भी निर्भर रहती है और जब तब सेना अपना स्वतंत्र अस्तित्व दिखाने लगता है और यह पता करना कठिन हो जाता है कि पाकिस्तान की कौन सी नीति सेना तय कर रही है और कौन सी नीति वहां की चुनी हुई सरकार।

आज पाकिस्तान के सामने अंतरराष्ट्रीय संकट भी खड़ा हो गया है, जो उसके अंदरूनी संकट को और भी गहरा कर सकता है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था में बदल गई है और उसे काम चलाऊ बनाए रखने के लिए पाकिस्तान विदेशों पर निर्भर हो गया है। अमेरिका और पाकिस्तान उसके मददगार रहे हैं। अमेरिका यदि वित्तीय मदद करना बंद कर दे, तो फिर पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में खड़ा रहना मुश्किल हो जाएगा। यही कारण है कि न चाहते हुए भी वह अमेरिका के आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में पाकिस्तान उसका साथी बना हुआ है और बदले मंे वह उससे वित्तीय सहायता पाता रहता है। अमेरिका को दिए जा रहे सहयोग के बदले में वह भारत पर भी उससे दबाव डलवाता रहता है।

दिल्ली में नई सरकार बनने के बाद पाकिस्तान का यह काम भी कठिन हो गया है। वह एक साथ भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना भी चाहता है और भारत के साथ शांति वार्ता भी करना चाहता है। वह अमेरिका को कहता है कि हमें अपनी पूर्वी सीमा पर भारत से खतरा है, इसलिए अपनी सेना पश्चिमी सीमा पर भेज नहीं सकते। जब अमेरिका भारत से कहता है कि वह पाकिस्तान से बातचीत कर उसे समझाए कि उससे उसको कोई खतरा नहीं है। लेकिन अब मोदी सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि पाकिस्तान के साथ वह बातचीत तभी करेगी, जब वह भारत में आतंकवाद को संरक्षण देना बंद कर देगा और भारत के अलगाववादियों के साथ भी संवाद रखना बंद कर देगा।

कुछ दिन पहले ही भारत के साथ प्रस्तावित बातचीत के ठीक पहले पाकिस्तान के राजदूत कश्मीर के अलगाववादियों से मुलाकात कर रहे थे। भारत ने उसे वैसा करने से मना किया, पर उसे अनसुना कर दिया। उसके बाद भारत ने पाकिस्तान से बात ही नहीं की और एक सख्त संदेश दे दिया कि पाकिस्तान दो नावों की सवारी नहीं कर सकता। या तो वह शांति की बात करे या अलगाववादियों से अपने बातचीत को प्रमुखता दे। दुर्भाग्य की बात है कि पाकिस्तान भारत सरकार से बातचीत की अपेक्षा कश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत करना ज्यादा बेहतर समझता है।

सीमा पर गोलीबारी हो रही है। पाकिस्तान इस तरह का तनाव बनाकर विधानसभा के चुनावों को भी प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। यदि 15 अक्टूबर को मतदान होने के साथ ही शांति हो जाय, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पर सवाल उठता है कि भारत कबतक यह बर्दाश्त करता रहेगा। उसे पाक समस्या का स्थाई हल खोजना ही चाहिए। (संवाद)