जब कभी भी ममता बनर्जी अपने आपको राजनैतिक रूप से कमजोर स्थिति में पाती है, तो उनकी आक्रामकता और भी बढ़ जाती है। इस काम के लिए अभी सबसे बेहतर समय है, क्योंकि उनके विरोधी शारदा चिट फंड घोटाले को लेकर उनपर एक से बड़े एक हमले कर रहे हैं। बर्दवान में हुए विस्फोट के बाद उन पर होने वाले हमले और भी तेज हो गए हैं।

मीडिया के वे लोग जो उनकी उस बैठक में नहीं गए थे, अनुमान लगा रहे थे कि ममता बनर्जी ने उस बैठक मे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जमकर आग उगली होगी और पार्टी के लिए एक नये आक्रामक कार्यक्रम की घोषणा की होगी।

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। विरोधियों पर हमले के बदल उन्होंने अपने समर्थकों में ही उलटफेर शुरू कर दिया और भविष्य में पार्टी के विभाजन की संभावना की बुनियाद भी डाल दी। उन्होंने पार्टी में दूसरे स्थान पर समझे जाने वाले मुकुल राय के पतर कतर डाले। अब उन्होंने युवा सांसद अभिषेक बनर्जी को तृणमूल का उदीयमान सूरज बना दिया।

दिलचस्प बात यह भी है कि ममता बनर्जी द्वारा किए गए इस उलटफेर का तृणमूल कांग्रेस के अंदर न तो समर्थन हुआ और न ही विरोध। अब राजनैतिक विश्लेषक अनुमान लगाने में जुटे हुए हैं कि क्या क्या आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस के अंदर हो सकता है।

इसमें कोई शक नहीं कि मुकल राय के भविष्य पर उसी समय प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया था, तब शारदा घोटाले में उनका और उनके पुत्र का नाम आना शुरू हो गया था। उसके बाद ममता बनर्जी उनसे दूरी बनाने लगी थी। उसके पहले ही ममता ने घोषणा कर दी थी कि भ्रष्टाचार में फंसे किसी भी नेता का पार्टी बचाव नहीं करेगी और नेता उसके लिए खुद जिम्मेदार होगा। ऐसा करके ममता यह संदेश देना चाह रही थी कि वे खुद ईमानदार हैं और पार्टी भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं करती। यह दूसरी बात है कि भ्रष्टाचार के आरोपों मंे फंसे मंत्री मदन मित्र को अभी तक ममता ने अपने मंत्रिमंडल से हटाया है और न ही मुकल राॅय से सारी जिम्मेदारियां ली गई हैं।

तृणमूल कांग्रेस के अंदर मुकुल राय के विरोधी खुश हैं। उन लोगांे में मिदनापुर के अधिकारी परिवार भी शामिल हैं। मिदनापुर जिले में मुकुल राॅय के लोगों को प्रमुख पदों से हटा दिया गया है और अधिकारी परिवार एक बार फिर महत्वपूर्ण हो गया है। मुकल का तृणमूल कांग्रेस में कद घटने से अभिषेक बनर्जी के पार्टी के अंदर आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। वे बहुत जल्द दूसरे स्थान पर दिखाई देंगे। पिछले दिनों अभिषेक ने जंतर मंतर पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ दिए गए धरने का नेतृत्व किया और मुकुल राॅय सहयोगी की भूमिका निभा रहे थे।

अभिषेक को आगे बढ़ाने के क्रम में ममता बनर्जी अपनी कमजोरी को भी पर्दाफाश कर रही हैं। इससे लग रहा है कि वे भारी दबाव में हैं। वे सार्वजनिक रूप से यह दंभ भरा करती थीं कि राजनीति में न तो उनके परिवार का कोई सदस्य है और न ही उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार है।

मुकुल राॅय पार्टी के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उनकी जानकारी के बिना पार्टी में कुछ भी नहीं हुआ करता था। उन्होंने अनेक लोगों को पार्टी में सदस्यता दिलाई। दूसरे दलों से दलबदल कराकर पार्टी में लाने का काम भी वे किया करते थे। जाहिर है, पार्टी के अंदर उनके समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है। इसलिए आश्चर्य नहीं होगा, यदि मुकुल राॅय के नेतृत्व में एक असंतुष्ट खेमा पार्टी के अंदर तैयार हो जाय। (संवाद)