जम्मू और कश्मीर का चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। वहां कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस दोनों की हालत बहुत ही पतली हो चुकी है। महबूबा के नेतृत्व वाली पीडीपी का ग्राफ ऊपर जा रहा है। मोदी लहर पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में भारी सफलता हासिल की थी। उससे उत्साहित होकर भारतीय जनता पार्टी के हौसले जम्मू और कश्मीर को लेकर भी काफी बुलंद हैं। यदि मतदाता भारी संख्या में मतदान के लिए उमड़े और भारतीय जनता पार्टी को भारी सफलता हासिल हुई, तो कश्मीर की राजनीति में जबर्दस्त बदलाव आ सकता है।

जम्मू में भारतीय जनता पार्टी द्वारा बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। वहां प्रदेश की 87 सीटों में से 37 सीटें हैं। लद्दाख क्षेत्र में स्थिति थोड़ी अलग है। वहां अब तक निर्दलीय बेहतर करते आ रहे हैं, लेकिन वे भारतीय जनता पार्टी की ओ झुक सकते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे ज्यादा चुनौती कश्मीर घाटी में है, जहां 46 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यहां एक फीसदी से भी कम मत मिले थे। लेकिन यहां भाजना ने भारी संख्या में अपने उम्मीदवार उतारें हैं। उन्हें कश्मीरी पंडितों के वोट मिल सकते हैं, जो बैलट से वोटिंग करते हैं। चैतरफा मुकाबले में हार जीत का अंतर बहुत कम होता है। यह कुछ हद तक भाजपा के पक्ष में जा सकता है। चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी के गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

अलगाववादी मतदान के बहिष्कार की घोषणा करते रहते हैं, जिनका परिणाम मिश्रित हुआ करता है। यदि औसत मतदान भी हुए, तो यह उन लोगों के लिए घातक होगा, जो अलगाव की बात करते हैं। भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बेहतर मतदान उनके लिए सबसे ज्यादा परेशानी का सबब होगा।

जैसे जैसे मतदान का समय नजदीक आएगा, मोदी सरकार को ज्यादा से ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी। बाढ़ ने श्रीनगर और अन्य जगहों में तबाही मचा दी थी। उसके बाद सेना द्वारा दो किशोरों की हत्या ने अलगावादियों को नया बहाना उपलब्ध करा दिया है।

दोनों मसलों पर मोदी सरकार ने बहुत ही तत्परता दिखाई। बडगाम में दो किशोरों की हत्या के बाद रक्षामंत्री अरुण जेटली ने मामले की जांच की घोषणा कर डाली और कहा कि दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सेना की छवि लोगों के बीच बाढ़ के दौरान अच्छी हुई है।

दिल्ली में विधानसभा भंग होने के बाद अब चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। वहां चुनाव जनवरी महीने में हो सकते हैं, क्योंकि फरवरी महीने में राष्ट्रपति शासन समाप्त होने वाला है। अब यहां का राजनैतिक माहौल गरम हो गया है। आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच आरोप प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। कांग्रेस में भी राजनैतिक सुगबुगाहट हो रही है, हालांकि पिछले चुनाव में उसकी भारी दुर्गति हुई थी। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उसे मात्र 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। पर इस साल हुए लोकसभा चुनाव में तो उसके उम्मीदवार 70 में से किसी भी सीट पर बढ़त हासिल नहीं कर पाए थे।

झारखंड में स्थिति भ्रामक बनी हुई है। वहां कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठबंधन टूट गया है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल(यू) के साथ गठबंधन बना लिया है। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने भी स्थानीय पार्टियों से गठबंधन बनाया है। झारखंड विकास मोर्चा अलग से गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहा है। चौतरफा मुकाबले के बीच भारतीय जनता पार्टी की चुनौती बहुमत हासिल करने की है। (संवाद)