उनका ताजा बयान बिहार में अगड़ी जातियों को लेकर हैं। उन्होंने एक सभा में कह डाला कि दलित, आदिवासी और कमजोर वर्गों के अन्य लोग ही यहां के मूल निवासी हैं। अगड़ी जातियों को उन्होंने विदेशी आर्यों की संतान कह डाला। इस बयान के बाद भूचाल आना ही था। अगड़ी जातियों के लोगों मे मांझी के इस बयान पर तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। जनता दल (यू) के प्रवक्ता प्रधान महासचिव केसी त्यागी तक ने माझी को पद से हटाए जाने की मांग कर दी है। गौरतलब हो कि श्री त्यागी भी अगड़ी जाति से ही आते हैं।

सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार के लिए मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाना संभव हो पाएगा? बिहार की राजनीति में जाति एक बहुत बड़ा फैक्टर है और इसके कारण ही मांझी को नीतीश ने मुख्यमंत्री बनाया था। नरेन्द्र मोदी के हाथों चुनाव में बुरी तरह पिटने के कारण नीतीश की सरकार तो खतरे में थी ही, उन्होंने बिहार की कमजोर जातियों के बीच भी अपनी छवि एक सामंतवादी नेता की बना ली थी, जो एक कमजोर पिछड़े वर्ग के नरेन्द्र मोदी को पीएम बनाने के रास्ते में अड़ंगा डाल रहा था। इस छवि के साथ वे बिहार की अपनी सरकार तो खो ही देते, आगे की राजनीति भी नहीं कर पाते। इसलिए इस छवि को बदलने के लिए उन्होंने अपनी जगह जीतन राम मांझी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। जीतन राम मांझी दलितों में भी उस जाति के हैं, जो जातिव्यवस्था और कृषि अर्थव्यवस्था के सबसे नीचले पायदान पर है। कृषि अर्थव्यवस्था में मांझी की जाति मुसहर को खेतों से चूहे पकड़ने का काम दिया गया था, ताकि फसल और अनाज की बर्बादी रुक सके। उनकी जाति के लोग चूहों से खेतों की रक्षा भी करते थे और चूहों का आहार भी करते थे।

एक ओबीसी तेली नरेन्द्र मोदी को पीएम बनने से रोकने की कोशिश के कारण हुई खराब छवि को उन्होंने एक मुसहर को बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर सुधारने की कोशिश तो जरूर की, लेकिन लगता है कि वे गच्चा खा गए हैं। श्री मांझी 1980 से बिहार के विधायक हैं और उसके बाद बनी सभी दलों की सरकार में मंत्री भी रहे हैं। प्रशासन और राजनीति का उनके पास लंबा अनुभव है। सच कहा जाय, तो नीतीश से भी लंबा उनका राजनैतिक कैरियर रहा है। भले ही मंत्री के रूप में वे बहुत ज्यादा मीडिया से रूबरू नहीं हुए हों, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक बहुत ही सुलझे हुए राजनेता होने का परिचय दिया है।

उन्हें पता था कि नीतीश कुमार उन्हें स्टाॅप गैप मुख्यमंत्री के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें यह भी पता है कि यदि उन्हें लंबे समय तक सीएम रहना है, तो अपनी एक अलग पहचान बनानी पड़ेगी। उनके सारे बयान उसी पहचान बनाने की आरे लक्षित है। सबसे पहले उन्होंने नीतीश सरकार को एक भ्रष्ट करार दिया और कहा कि बिजली का बिल दुरूस्त करवाने के लिए मंत्री होने के बावजूद उनको घूस देना पड़ा था। उसके बाद तो उनके बयानो का सिलसिला ही शुरू हो गया। एक बार उन्होंने कहा कि एक मंदिर को इसलिए धोया गया, क्योंकि उन्होंने वहां जाकर पूजा की थी। एक अन्य बयान में में उन्होंने कहा कि यदि 17 फीसदी दलित एक हो जाय, तो बिहार का मुख्यमंत्री दलित ही बनेगा। एक अन्य सभा में उन्होंने कहा कि थोड़ी शराब पी लेने मे कोई बुराई नहीं है, ज्यादा पीना हानिकारक है। दूसरी सभा में उन्होंने दलितों को शराब पीने से मना किया और कहा कि यदि उन्होंने शराब पीनी छोड़ दी, तो फिर बिहार में उनका ही राज होगा। एक बार किसी अखबार में खबर छपी कि बाढ़ पीड़ित भोजन के अभाव में चूहे खा रहे हैंए तो उन्होंने तपाक से कहा कि चूहा बहुत अच्छा भोजन होता है और उन्होंने भी बहुत चूहे खाए हैं।

जीतन मांझी के इस रूप की नीतीश कुमार ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। उन्होंने उन्हें सीएम बनाया ही था यह सोचकर कि वे चुपचाप नीतीश की बात मानते हुए सरकार चलाएंगे और जब वे कहेंगे कुर्सी उनके लिए खाली कर देंगे। नीतीश के कहने पर शायद सरकार तो मांझी जी चला रहे हैं, लेकिन वे कह अपने मन की रहे हैं और उनके बयान लालू यादव के 1990. 95 के बयानों की याद दिला देते हैं। उन बयानों से ही लालू ने अपनी खास छवि बनाई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद मांझी के बयान बहुत सधे तरीके से आते हैं और उनकी खासियत यह है कि वे ज्यादातर उनका खंडन भी नहीं करते हैं।

अगड़ी जातियों को विदेशी संतान कहने का उनका ताजा बयान भी काफी नपा तुला और सधा हुआ है। नीतीश कुमार अब अगले विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार नहीं करना चाहते और तुरंत मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उनके इशारे पर उनके लोग जीतनराम मांझी का अपमान तक कर रहे हैं और उन्हें हटाने की मुहिम चला रहे हैं। उसी मुहिम के बीच श्री मांझी ने विदेशी संतान वाला बयान दिया है। इसके बाद अगड़ी जाति के लोग मुखर होकर उनका इस्तीफा मांग रहे हैं। यदि नीतीश उनका इस्तीफा मांगते हैं, माना जाएगा कि अगड़े लोगों को खुश करने के लिए उन्होंने एक महादलित मुख्यमंत्री को हटा दिया। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी कर और उनके पीएम बनने के मुद्दे पर भाजपा से नाता तोड़ने के बाद नीतीश के खिलाफ कमजोर पिछड़े वर्गाें में संदेह पहले से ही पैदा हो चुका है, मांझी के हटाने के बाद उनका पिछड़ा- अतिपिछड़ा और दलित- महादलित कार्ड ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा और उनकी राजनीति को ही ग्रहण लग जाएगा।

जाहिर है, नीतीश कुमार बुरी तरह अपने ही बुने जाल में फंस गए हैं। नरेन्द्र मोदी का विरोध करते वे उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां से फिर प्रभावी राजनीति में वापसी करना उनके लिए असंभव नहीं, तो अत्यंत कठिन जरूर साबित हो रहा है। (संवाद)