भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में 122 सीटें हासिल की हैं और बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए उसे 22 और विधायकों का समर्थन चाहिए। 41 विधायकों वाली एनसीपी ने उसका समर्थन करने की घोषणा कर रखी थी। पहले उसने कहा था कि वह मतदान से अनुपस्थित रहकर सरकार के विश्वास मत हासिल करने का रास्ता तैयार कर देगी। बाद में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के अनुरोध पर एनसीपी ने विधानसभा मे मतदान के दौरान सरकार के पक्ष में वोट डालने का फैसला भी कर लिया था। लेकिन इसके बाद भी भाजपा ने मतदान नहीं करवाया और भारी विरोध के बीच ध्वनिमत से बहुमत का समर्थन हासिल कर लिया।

विश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव के मामले में अब तक की परंपरा रही है कि यह मामला मतदान से ही निबटाया जाता है। कानून के अनुसार यदि स्पीकर ने किसी और भी तरीके से यदि प्रस्ताव के पक्ष में हां या न कह दिया हो और उसके बाद विपक्ष मत विभाजन की मांग करे, तो उसकी माग को मान लिया जाता है और मतविभाजना करवा दिया जाता है। सच कहा जाय तो सदन के अंदर मतदान से सरकार भाग नहीं सकती।

इस मामले में कांग्रेस और शिवसेना ने फिर से विश्वास प्रस्ताव पेश कर मतविभान की मांग की है। सवाल उठता है कि वर्तमाल मामले में यह अब कैसे हो सकता है? इसका एक ही तरीका है कि मुख्यमंत्री एक बार फिर विधानसभा में प्रस्ताव पेश करें कि सदन सरकार में अपना विश्वास व्यक्त करता है और उसके बाद स्पीकर उस पर मतदान कराएं। एनसीपी के समर्थन के कारण इस मत विभाजन में प्रस्ताव को पास होना ही है। इस तरह से सरकार अपनी विश्वसनीयता हासिल कर लेगी और उसकी वैधता पर जो सवाल खड़े हो रहे हैं, वे भी खड़े होने बंद हो जाएंगे।

अगले कुछ सप्ताह सरकार के लिए चुनौती भरे साबित होने वाले हैं। शिवसेना सरकार पर लोकतंत्र का गला घोटने का आरोप लगा रही है और कांग्रेस कह रही है कि जबतक सरकार फिर से विश्वासमत हासिल नहीं करती, वह सदन को चलने नहीं देगी। वह प्रदेश सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी धमकी दे रही है। दोनों पार्टियां और इंतजार करने के मूड में नहंीं है।

इस बीच शिवसेना के 23 विधायकों के एक शिष्टमंडल ने राज्यपाल विद्यासागर राव से मुलाकात की और फड़नविस सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। सेना का कहना है कि वह सरकार असंवैधानिक है। अपने एक संपादकीय में शिवसेना का मुखपत्र ’’सामना’’ कहता है कि वह सरकार जिसने परंपराओं के परे जाकर विश्वामत हासिल किया हैए क्या लोगों का विश्वास हासिल कर पाएगी? उसका कहना है कि शिवसेना की बात ही क्या, जनता भी इस विश्वासमत को नहीं मानती है।

सामना के संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि आखिर मतविभाजन से सरकार भागी क्यो? उसने मतदान क्यों नहीं करवाया? क्या ध्वनिमत से इसलिए फैसला करवाया गया कि सरकार चाहती थी कि वह भ्रष्ट लोगों के समर्थन से सरकार बचाती नहीं दिखाई पड़े?

भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार को बहुत बड़ा मसला बनाया था। एनसीपी को वह नेचरली करप्ट पार्टी कह रही थी। अब उसी पार्टी के विधायकों को अपने पक्ष में लोगों को नहीं दिखाना चाहती, क्यांेकि ऐसा करने से वह लोगों के बीच अपनी खराब छवि दिखाएगी। लेकिन वह कबतक ऐसा करती रहेगी? (संवाद)