वे इस को लेकर आपस में भिड़े हुए हैं कि वित्त मंत्री मणि पर लगे इस आरोप पर उनका क्या रवैया होना चाहिए। वित्तमंत्री के एम मणि यूडीएफ के एक महत्वपूर्ण घटना केरल कांग्रेस (मणि) के अध्यक्ष भी हैं।
यह सच है कि एक दूसरे पर हमले करने के बाद दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी रोकने पर सहमत हो चुकी हैं। अब वे मिलकर मणि का इस्तीफा मांगने पर भी सहमत हो गए हैं। अब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा आगामी 25 नवंबर को मणि के इस्तीफे की मांग करते हुए राज्य सचिवालय पर प्रदर्शन भी करेंगे। लेकिन दोनों मे आई यह सहमति देरी से हुई है। उसके पहले दोनों के बीच जमकर बयानबाजी हुई और दोनों तरफ एक दूसरे के खिलाफ तल्खी बनी हुई है। उसे समाप्त होने में समय लगेगा।
क्हा जा सकता है कि दोनों के बीच हुए ये बयानों के युद्ध विपक्षी एलडीएफ को नुकसान पहुंचा चुके हैं और खासकर सीपीएम को तो काफी नुकसान हुआ है। इस विवाद से बचा जाना चाहिए था।
मणि के खिलाफ आरोप लगने के बाद सीपीआई और सीपीएम के बीच किस तरह की समस्या खडी हो गई थी, इसका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि सीपीआई उस मसले पर एलडीएफ की बैठक बुलाने की मांग कर रही थी, पर सीपीएम इसके लिए तैयार नहीं थी।
सीपीआई चाहती थी कि मणि पर लगे घूसखारी के आरोपों पर विपक्षी मोर्चे को संयुक्त रणनीति बनाई जानी चाहिए और इसके लिए सभी घटक दलों की बैठक जरूरी थी, पर सीपीएम इसके लिए तैयार नहीं थी। इसके कारण सीपीआई को बाध्य होकर एकतरफा निर्णय लेना पड़ा और उसने उस मणि के खिलाफ राज्य सचिवालय पर प्रदर्शन करने का निर्णय किया।
आखिरकार सीपीएम को एलडीएफ की बैठक बुलानी पड़ी। उसके द्वारा की गई देरी से लोगों में यह भावना फैल रही है कि सीपीएम मणि के प्रति नरम रवैया रखती है। सीपीएम पहले मणि को यूडीएफ से तोडकर एलडीएफ की ओर लाने की कोशिश कर रही थी।
दूसरी तरफ सीपीआई मणि की पार्टी को एलडीएफ में लाने के पक्ष में नहीं थी। वह सीपीएम की कोशिशों का विरोध कर रही थी। सीपीएम कह रही थी कि 8 महीने पहले तो सीपीआई ने मणि की प्रशंसा की थी। तब तो सीपीआई के प्रदेश सचिव ने कहा था कि मणि ओमन चांडी से बेहतर मुख्यमंत्री होने की क्षमता रखते हैं।
सीपीआई सचिव अपने ऊपर लगाए उस आरोप का जवाब देते हुए कह रहे थे कि राजनैतिक स्थिति अब बहुत ही अलग हो गइ्र्र है। अब तो मणि पर ही घूस लेने के आरोप लग रहे हैं। बार एसोसिएशन का आरोप है कि उनसे मणि ने 5 करोड़ की घूस मांगी थी और मामला 1 करोड़ रुपये में तय हुआ और उसके बाद एक करोड़ रुपये की राशि मणि को पहुंचा भी दी गई। उसके बाद तो मणि को एलडीएफ में लेने का सवाल ही नहीं उठता।
अब जब एलडीएफ ने मणि के खिलाफ आंदोलन चलाने का फैसला कर लिया है और प्रदर्शन की तारीख भी तय हो गई हे, तो सीपीआई इस बात का श्रेय ले सकती है कि उसने सीपीएम को अपनी इच्छा के अनुसार फैसला करने के लिए बाध्य कर दिया। (संवाद)
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सीपीआई और सीपीएम को बयानबाजी से बचना चाहिए
उनकी प्राथमिकता यूडीएफ पर हमला होना चाहिए
पी श्रीकुमारन - 2014-11-22 11:14
तिरुअनंतपुरमः बार मालिकों से ली गई घूस के आरोपो पर विपक्षी सीपीआई और सीपीएम को एक साथ मिलकर सत्तापक्ष पर हमला बोलना चाहिए था। पर वे वैसा करने के बदले आपस में ही भिड़ गए हैं और एक दूसरे पर शब्दों के बाण चला रहे हैं।