यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कारखाने से 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को मिथाइय्ाल आइसो साय्ानेट गैस की रिसाव में 15274 लोगों की मौत हुई थी और 5 लाख 73 हजार लोग सीधे तौर पर घायल हुए थे। आज तीस साल स्थिति यह है कि अगली पीढ़ी भी गैस के प्रभाव से जूझ रही है। उस समय के कई बच्चे अब गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। कई लड़कियों की शादी इसलिए नहीं हो पाई कि वे गैस पीड़ित हैं, जिन्हें कई समस्याएं रहती है। लड़के वाले सोचते हैं कि वैसी लड़कियों के साथ स्वास्थ्य की कई समस्याएं रहती हैं और बच्चा भी स्वस्थ होगा कि नहीं, इसकी आषंका रहती है। इस कारण से लड़कियों की शादी बहुत ही मुष्किल से हो पाती है।
सरकार भले ही यह दावा कर रही है कि गैस से पीड़ित व्यक्तियों के अगली पीढ़ी पर असर नहीं पड़ रहा है, पर अधिकांश शोधों से यह पता चलता है कि अगली पीढ़ी पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। गैस त्रासदी का प्रजनन स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। गुणसूत्रों में भी परिवर्तन दिखाई पड़ रहा है। महिलाओं को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। गैस से प्रभावित महिलाओं में प्राकृतिक गर्भपात में बढ़ोतरी दिखाई पड़ रही है। कई महिलाओं को तीन-चार बार गर्भपात जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसका बहुत ज्यादा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम पाई जा रही है।
गैस पीड़ित महिलाओं एवं पुरुषों की शादी के बाद पैदा होने वाले बच्चे दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा बीमार पड़ते हैं। गैस राहत वाले अस्पतालों में डाॅक्टर बेहतर तरीके से चेक अप नहीं करते, जिससे यह पता नहीं चल पाता कि बच्चों का बार-बार बीमार पड़ने के पीछे कारण क्या है? इसे लेकर गंभीर तरीके से शोध की जरूरत है, पर इस दिशा में सकारात्मक पहल नहीं दिखाई पड़ती। कुछ समय पहले तो सरकार ने गैस पीड़ितों के परिवार एवं बच्चे को इलाज देने से मना कर दिया था, पर गैस पीड़ितों के संगठनों के संघर्ष एवं न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इस साल उनके आश्रितों के स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा रहे हैं।
समुचित इलाज के अभाव में गैस पीड़ि़त हजारों महिलाओं को स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए था कि अगली पीढ़ी पर गैस का क्या प्रभाव होगा, को जानने के लिए इन महिलाओं को बेहतर तरीके से इलाज करे पर ऐसा नहीं हो पा रहा हैं आष्चर्य की बात तो यह है कि बिना किसी बेहतर शोध के यह प्रचारित किया जा रहा है कि अगली पीढ़ी पर इसका असर नहीं देखने को मिलेगा या अब जन्म लिए हुए बच्चों पर इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है। गैस पीडित के बारे में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि उनके इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया करा दी गई है और अब उन्हें कोई परेशानी नहीं है। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। इलाज के लिए उन्हें समस्याओं से जूझना पड़ता है। अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिल रही हैं। (संवाद)
भारत
भोपाल गैस रिसाव पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय
सीमा जैन
hindi@anypursuit.org - 2014-12-02 11:56
30 साल हो गए, पर उस रात की याद आज भी गैस पीड़ितों में सिहरन पैदा कर देती है। हजारों की भागती भीड़ में उस जहरीली गैस से बचकर जाना बहुत लोगों के वश में नहीं था। वे कहां तक जा पाते। कुछ ने तो भागती भीड़ से बचने के लिए घरों में दुबक कर दरवाजे-खिड़की बंद कर रजाइयों में अपने बच्चों को लपेटना ज्यादा बेहतर समझा, पर उनकी बेहतर समझ उनके बच्चों एवं उन्हें गैस से प्रभावित होने से नहीं बचा पाई। आसपास के घरों में लाशों का अंबार लग गया था। कई बच्चे अनाथ हो गए थे, तो कई बच्चों को उनके पिता ने कंधा दिया। इन जख्मों को याद करते हुए तब के बच्चे और आज के गैस पीड़ित युवा सवाल भरी नजरों से देखते हैं कि उन्हें न्याय कब मिलेगा? सबसे ज्यादा खराब स्थिति तो गैस पीड़ित महिलाओं की है, जिन्हें सामाजिक, मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।