अब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है और वह अब इस तरह की समस्या का सामना कर रही है। साध्वी निरंजन ज्योति ने रामजादे और हरामजादे वाला बयान जारी किया था। उस बयान के बाद ही संसद की कार्रवाही ठप हो गई है। उस बयान का मतलब था कि राम को अपना पूर्वज नहीं मानने वाले लोग हराम की औलाद है।। साध्वी केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। वे एक सामान्य सांसद नहीं रहीं। वे संघ की कार्यकत्र्ता ही नहीं रहीं, बल्कि एक जिम्मेदार मंत्री भी हैं, जिन्होंने संविधान की रक्षा की सौंगध खा रखी है। इसलिए उनका उस तरह का बयान पूरी तरह गलत है। उस बयान के बाद मंत्री पद पर बने रहने का उनका कोई नैतिक आधिकार नहीं रह गया है। प्रधानमंत्री को उन्हें बयान के तत्काल बाद ही उस पद से हटा देना चाहिए था।

विपक्ष के दबाव के तहत साध्वी ने पहले लोकसभा में खेद जाहिर किया और उसके बाद राज्य सभा में उस बयान के लिए माफी भी मांग ली। यह माफी विपक्ष के दबाव के तहत ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नाराजगी जाहिर करने के बाद मांगी गई थी। लेकिन खेद जताने और माफी मांगने का कोई असर विपक्ष पर नहीं पड़ा। वह पहले की तरह की मंत्री का बर्खास्तगी या इस्तीफे पर अड़ा हुआ है और संसद को चलने नहीं दे रहा है।

साध्वी को पिछले महीने ही मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था। जिस तरह से बयान दिया गया, उससे साफ होता है कि यह सिर्फ चुनाव के कारण दिया गया बयान नहीं था और न ही यह बयान जुबान फिसलने के कारण दिया गया था। बल्कि इसके पीछे कारण यह है कि मंत्री को पता ही नहीं था कि अब वे एक ऐसे पद पर हैं? जिस पर रहकर इस तरह की बयानबाजी नहीं की जा सकती। उन्हें पहले और अब में फर्क करना चाहिए था और अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करना चाहिए था।

साध्वी के साथ साथ गिरिराज सिंह को भी केन्द्र में मंत्री बनाया गया था। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मोदी के लिए वोट न देने वालों को पाकिस्तान भेज देने की धमकी दे डाली थी। उसके कारण निर्वाचन आयोग ने उनके चुनावी भाषण और सभा पर ही रोक लगा दी थी। मुजफ्फरनगर के दंगों से संबंधित आरोपों का सामना कर रहे संजीव बालियान को भी केन्द्र में मंत्री बना दिया गया है। यह सब इसलिए किया गया है, ताकि प्रधानमंत्री यह संदेश दे सकें कि वे समाज के सभी वर्गाें को अपनी सरकार में प्रतिनिधित्व दे रहे हैं। पर ऐसा करने के लिए साध्वी निरंजन ज्योति, गिरीराज सिंह और संजीव बलियान जैसे लोगों को सरकार में जगह नहीं दी जानी चाहिए। मंत्रियों को चुनना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन उनकी यह भी जिम्मेदारी बनती है कि गैर जिम्मेदार लोगो ंको सरकार में शामिल नहीं किया जाय।

विपक्ष के गुस्से को शांत करने के लिए प्रधानमंत्री ने तुरंत ही साध्वी के बयान से अपने को दूर किया और अपनी पार्टी के सांसदों को उस तरह की बयानबाजी से बाज आने को कहा। वे अब विपक्ष से कह रहे हैं कि वह साध्वी के बयान को भूल जाएं और उन्हें माफ कर दें। वे चाहते हैं कि विपक्ष संसद को चलने दे। पर विपक्ष प्रधानमंत्री के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। वह साध्वी का इस्तीफा चाहता है।

विपक्ष ने गतिरोध तोड़ने के लिए एक और विकल्प दिया, जिसके अनुसार एक प्रस्ताव द्वारा संसद को साध्वी के बयान की निंदा करनी थी। लेकिन इस विकल्प के लिए भी सरकार तैयार नहीं है।

शरद सत्र के लिए सरकार ने विधेयकों की एक लंबी सूची तैयार कर रखी है, जिन्हें पारित करवाया जाना है। अब हंगामें के कारण उनके इस सत्र में पारित होने पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। (सवाद)