लगभग सभी सभाओं मे उन्होंने इस बात को दुहराया कि वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो उनका हाल जानने के लिए उनके पास आए हैं। उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि भारत सरकार की उच्च प्राथमिकताओ मे से एक पूर्वाेत्तर क्षेत्रों के इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास है। चीन से संबंधित सुरक्षा चिंताओं की पृष्ठभूमि में उन इलाकों के विकास की अहमियत को उनकी सरकार स्वीकार करती है।

प्रधानमंत्री के उस दौरे पर लोगों की प्रतिक्रिया मिश्रित है। नगालैंड के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वे नगा समस्या का हल जल्द निकालें, पर इस मसले पर उन्होंने चुुप्पी बनाए रखी। गौरतलब है कि नगालैंड में सशस्त्र विरोध की समस्या पहले ही हल हो चुकी है। दो सशस्त्र विद्रोह करने वाले संगठन बहुत पहले ही केन्द्र सरकार के वार्ता कर अपने आपको मुख्यधारा में लाने के लिए तैयार हो गए हैं। लेकिन नगा समस्या का राजनैतिक समाधान निकाला जाना अभी बाकी है।

उसी तरह मणिपुर में भी समस्या है। वहां का माहौल हिंसक बना हुआ है, लेकिन अब हिंसा बहुत कम हो गई है। वहां भी समस्या को हल करने की गुहार लगी, लेकिन प्रधानमंत्री ने वहां भी चुप्पी साध ली। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री ने उस मसले को छुआ तक नहीं। उन्होंने उस राज्य में एड्स के फैलाव को लेकर चिंता जाहिर की और राज्य सरकार को 100 करोड़ रुपये की पहली किश्त खेल विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दी।

त्रिपुरा में उन्होंने पालाताना ताप विद्युत परियोजना की दूसरी ईकाई का उद्घाटन भी किया। उन्होंने घोषणा की कि केन्द्र सरकार 28 हजार करोड़ रुपये पूर्वाेत्तर राज्यों में रेल नेटवर्क के विस्तार में करेगी। उन्होंने मेघालय के लिए पहले रेलवे लाइन का उद्घाटन किया।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी को भव्य स्वागत किया और उनकी बहुत प्रशंसा भी की। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता खोने के बाद सीपीएम त्रिपुरा में किसी तरह का जोखिम नहीं उठा सकती है और वह इसके कारण केन्द्र को नाराज करना नहीं चाहेगी।

लेकिन असम में अलग किस्म की प्रतिक्रिया देखी गई। मीडिया का भाजपा समर्थक र्हिस्सा प्रधानमंत्री की सराहना कर रहा था, लेकिन शिक्षिम शहरी वर्ग अनेक कारणो से प्रधानमंत्री के प्रति अपनी नाखुशी का इजहार कर रहा था। एक कारण बांग्लादेश से भारत का हो रहा वह करार है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच जमीन की अदला बदली होनी है। उनका कहना था कि यह वही नरेन्द्र मोदी हैं, जिन्होंने कहा था सत्ता में आने पर वे अवैध बांग्लादेशियों को भारत से बाहर कर देंगे और उन्हें वापस उनके देश भेज देंगे। लेकिन इस मसले पर वे अब कुछ भी नहीं बोल रहे।

उसके अलावा चुनाव के दौरान उन्होंने और उनकी भाजपा ने असम की जमीन को बांग्लादेश के सुपुर्द किए जाने का विरोध किया था। लेकिन अब वैसा करने के लिए उनकी सरकार संविधान में ही संशोधन करने की बात कर रही है। लोगों का मानना है कि इस सौदे से त्रिपुरा, मेघालय और पश्चिम बंगाल को फायदा होगा, लेकिन इससे असम को नुकसान होगा।

लेकिन जानकार लोग इससे सहमत नहीं। उनका मानना है कि लोगों को सही जानकारी नहीं है और वे गलतफहमी का शिकार हैं। उनका कहना है कि जमीन की अदलाबदली किए बिना बांग्लादेश के साथ असम की सीमा को कभी सील किया ही नहीं जा सकता है। (संवाद)