गौरतलब है कि मणि प्रदेश के वित्तमंत्री हैं। उन पर लगे आरोप की प्राथमिक जांच चल रही है। सीपीआई के नेता वी एस सुनील कुमार ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की थी कि उस आरोप की जांच अदालती देखरेख के तहत हो। उनकी याचिका को फिलहाल हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया है और कहा है कि इसकी इस समय कोई जरूरत नहीं है।
याचिका ठुकराए जाने से वित्तमंत्री जरूर राहत की सांस ले रहे होंगे और सुनील कुमार को निराशा हाथ लगी है, लेकिन वित्तमंत्री मणि के लिए चिंता की बात यह है कि हाई कोर्ट ने प्रदेश के निगरानी निदेशक को कहा है कि वित्त मंत्री के खिलाफ कोई मुकदमा यदि दायर करने की नौबत आए, तो उसके लिए प्रदेश सरकार से इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है।
इसका मतलब है कि अदालत ने निगरानी निदेशक को स्वायत्तता दे दी है। फिलहाल निगरानी विभाग के अधिकारियों द्वारा जांच चल रही है और निगरानी निदेशका को अंतिम जांच रिपोर्ट मिलनी अभी बाकी है। पर वित्तमंत्री के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण यह है कि आरोपी ने अभी तक आरोप वापस नहीं लिया है।
निगरानी टीम ने आरोप लगाने वाले बीजू रमेश से पूछताछ पूरी कर ली है। रमेश ने टीम के सामने भी अपने आरोप को दुहरा दिए हैं और कहा है कि मंत्री को रिश्वत दी गई, ताकि शराब के ठेके को लेकर सरकार उनके अनुकूल नीति बना सके। रमेश के ड्राइवर की भी गवाही हुई है। उसकी गवाही भी वित्तमंत्री मणि के खिलाफ जाने वाली है।
ड्राइवर ने अपनी गवाही में यह स्वीकार किया है कि बार एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों को लेकर वह वित्त मंत्री के आवास पर गया था। उसने कहा कि उस गाड़ी में मंत्री के घर जाते समय एक बैग था। लेकिन जब वह पदाधिकारियों को लेकर मंत्री के घर से वापिस आ रहा था, तो वह बैग उनलोगों के साथ नहीं था।
ड्राइवर ने गाड़ी में बार एसोशिएसन के अधिकारियों की हो रही बातचीत के बारे में भी निगरानी टीम को बताया। उसके अनुसार वे पदाधिकारी कह रहे थे कि वित्त मंत्री केा दी जाने वाली रिश्वत का दूसरा किश्त देने जा रहे हैं। उसी दूसरे किश्त की एक करोड़ रुपये की रकम उस बैग में थी।
बीजू रमेश और उसके ड्राइवर की हुई गवाही वित्त मंत्री मणि के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए पर्याप्त है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब तो निगरानी निदेशक को प्रदेश सरकार की अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। और यदि मणि के खिलाफ मुकदमा दायर हो गया, तो उन्हें अपने पद पर बने रहना कठिन हो जाएगा और उसके बाद तो केरल की यूडीएफ सरकार का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी पार्टियों में एक नया उत्साह आ गया है। हाई कोर्ट द्वारा जांच की निगरानी करने की याचिका खारिज होने से याचिका कर्ता सुनील कुमा निराश जरूर दिखाई दिए, लेकिन उन्होंने उस फैसले का स्वागत भी किया है, क्योंकि फैसले में हाई कोर्ट ने भविष्य में उसकी जांच की निगरानी करने की संभावना से इनकार नहीं किया है और निगरानी निदेशक की स्वायत्तता अपने फैसले से सुनिश्चित कर दी है।(संवाद)
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बार रिश्वतखोरी मामले में नया मोड़
क्या के एम मणि कानूनी पंजे में फंस रहे हैं?
पी श्रीकुमारन - 2014-12-11 10:47
तिरुअनंतपुरमः क्या केरल कांग्रेस (मणि) के अध्यक्ष के एम मणि कानूनी शिकंजे में फंसते जा रहे हैं? बार एसोशिएन के के पदाधिकारियों ने उन पर घूस लेने का आरोप लगाया है। इस आरोप से निकलने का रास्ता उन्हें दिखाई नहीं पड़ रहा है। यह तो अभी नहीं कहा जा सकता कि मणि आखिरकार कानून के शिकंजे में फंस ही जाएंगे, लेकिन जो लक्षण दिखाई दे रहे हैं, वे मणि के अनुकूल भी नहीं हैं।