सवाल उठता है कि इसकी जगह पर मोदी सरकार किस प्रकार की संस्था लाना चाहती है? यह कोई पहला मौका नहीं है जब सरकार योजना आयोग की उपयोगिता पर संदेह कर रही हो। 1998 के चुनावी घोषणापत्र में भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि वह योजना आयोग में सुधार लाएगी, ताकि बदली हुई परिस्थितियों में यह देश के विकास में और भी ज्यादा सहायक हो। 13 महीने के कार्यकाल में इसकी संभावना तलाशने की कोशिश भी हुई। के सी पंत ने भी इसमें सुधार करने के बारे में सोचा और मनमोहन सिंह भी इसमें बदलाव चाहते थे। सच कहा जाय तो योजना आयोग की भूमिका धीरे धीरे बदल भी रही है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था उदारवाद के दौर से गुजर रही है और अब निजी सेक्टर को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। योजना आयोग के ऊपर बाजार को वरीयता दी जा रही है।

योजना आयोग की जगह एक नये निकाय की स्थापना करने के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि अब केन्द्रीय कृत योजनाओं से हम आगे निकल गए हैं। इन परिस्थितियों में वर्तमान योजना आयोग की उपयोगिता नहीं रह गई है। यह अपनी प्रासंगिकता खो रहा है। समय बदल गया है और मुद्दे भी बदल गए हैं। यदि आज जवाहरलाल नेहरू रहते, तो वे खुद कहते कि योजना आयोग पर दुबारा सोचा जाना चाहिए। बाजारवादी अर्थव्यवस्था की योजना प्रक्रिया नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अलग होती है।

दूसरा कारण यह है कि देश के मुख्यमंत्रियों को भी यह रास नहीं आ रहा है। उनकी शिकायत है कि उन्हें अपनी वार्षिक योजनाओं को पारित कराने के लिए बार बार योजना आयोग के दरवाजे पर जाना पड़ता है। जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थेे, तो वे भी इसपर अपना विरोध व्यक्त किया करते थे। यही कारण है कि जब वे प्रधानमंत्री बने, तो उनका ध्यान इसे समाप्त करने की ओर गया है। वे अब सच्चे संघवाद के नाम पर योजना आयोग को किनारा करना चाहते हैं।
योजना आयोग का उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था की नियंत्रक ऊंचाइयों को सार्वजनिक क्षेत्र में सुनिश्चित करना था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब तो सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में ही दुबारा विचार करने की जरूरत आ पड़ी है।

मोदी के विरोधी कह रहे हैं कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि योजना आयोग जवाहरलाल नेहरू की विरासत है। 1950 के फरवरी महीने में योजना आयोग अस्तित्व में आया था। जवाहरलाल नेहरू इसके प्रथम अध्यक्ष बने और उसके बाद इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री ही हुआ करते हैं।

योजना आयोग का समाप्त होना तो अब तय है। सवाल उठता है कि इसकी जगह कौन सी संस्था अस्तित्व प्राप्त करने जा रही है? बैठक में उभर कर जो बातें सामने आईं, उनसे यही लगता है कि नई संस्था एक थिंक टैंक होगी, जिसके अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री करेंगे। उसके 8 से 10 सदस्य होंगे और उनमे से आधे राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे। मुख्यमंत्री बारी बारी से इसके सदस्य हुआ करेंगे। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इसे बनने में कितना समय लगेगा। (संवाद)