अध्ययन में पाया गया कि दलितों के बच्चों को विद्यालयों में दोपहर का भोजन उनके लिए निश्चित किए गए एक खास स्थान पर दिया जाता है। उन्हें अपने क्लास रूम में पीछे की सीटों पर बैठने के लिए बाध्य किया जाता है।

मध्य प्रदेश का दावा है कि वह देश में सबसे ज्यादा तेजी से विकास कर रहा है। लेकिन दलितों से संबंधित यह अघ्ययन सामाजिक क्षेत्र में हो रहे विकास के दावों की पोल खोल देता है। सर्वेक्षण में पाया गया कि प्रदेश के सभी इलाकों मंे जातीय भेदभाव किया जा रहा है। बुंदेलखंड का इलाका इस मायने में सबसे ज्यादा कुख्यात है।

उदाहरण के लिए धार जिले के एक गांव दाही में दलित लड़कों को कहा जाता है कि उन्हें छात्रवृति तभी मिलेगी, जब वे अपने परिवार के सदस्यों की वे तस्वीरें लाएंगे, जिनमें उन्हें मरे हुए जानवरों के शरीर से चमड़ा उतारते हुए दिखाया जा रहा है। गौरतलब है कि इन दलितों के परिवारों का पारंपरिक काम मरे हुए जानवरों के शरीर से चमड़ा उतारना रहा है।

छतरपुर जिले के कठरा गांव में देखने को मिला कि वहां स्कूल के बच्चों को जाति के आधार पर विभाजित कर दिया जाता है और बारी बारी से उन्हें दोपहर का खाना दिया जाता है।

दलित लड़कों के साथ अन्य अनेक प्रकार से भी भेदभाव किए जाते हैं। उन्हें पीने के पानी की काॅमन सुविधाओं का इस्तेमाल करने नहीं दिया जाता। उन्हें दोपहर के खाने को छूने की इजाजत नहीं दी जाती। ़िशक्षक उन्हें उनके नाम से नहीं बुलाते, बल्कि उन्हें उनकी जाति के नाम से अपमानित करने के लहजे में बुलाते हैं।

इस अध्ययन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दलित- आदिवासी कल्याण मंत्री ज्ञान सिंह ने कहा कि उनकी सरकार और खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान इन मसलों को लेकर काफी संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि जब कभी भी इस तरह का मामला सामने आता है, हम तेजी से कार्रवाई करते हैं और दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं।

यह अध्ययन दलित अधिकार अभियान द्वारा किया गया। यह दलितों के लिए काम कर रहे करीब आधा दर्जन स्थानीय संगठनों का समूह है। इसने प्रदेश के 10 जिलों के 30 गांवों में दौरा किया और साढ़े 62 हजार लोगों को अपने सर्वेक्षण में शामिल किया। इस साल के जनवरी से अगस्त महीने के बीच यह सर्वेक्षण संपन्न हुआ।

70 प्रकार के भेदभावों में 54 तो बुंदेलखंड इलाकों मंे देखा गया। अध्ययन में शामिल राजेन्द्र बंधु ने कहा कि जब दलित भेदभाव का विरोध करते हैं, तो उनके खिलाफ ज्यादती और भी बढ़ जाती है। अगड़ी जातियों के लोग आर्थिक रूप से भी काफी साधन संपन्न हैं, इसलिए वे तरह तरह से दलितों के साथ अत्याचार करते हैं।

छतरपुर जिले के सदवा गांव में मनोज नामक एक दलित युवक की इसलिए पिटाई कर दी गई, क्योंकि अपनी शादी में वह घोड़ी पर सवार था। उसके साथ उसकी बारात मे शामिल लोगों को भी पीटा गया।

जातिगत भेदभाव का जबर्दस्त असर दलित बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है। उसके कारण 31 फीसदी दलित छात्र आमतौर पर स्कूल से नदारत रहते हैं। 55 फीसदी परिवारों ने बताया कि भेदभाव के कारण उनके बच्चे सही ढंग से पढ़ नहीं पाते हैं। 46 फीसदी दलित बच्चे अपने शिक्षकों से सवाल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

दलितों के साथ ओबीसी के लोगों के साथ भी भेदभाव किया जाता है। खासकर नौकरियों के लिए होने वाला साक्षात्कार में उनके साथ जबर्दस्त भेदभाव किया जाता है। पहले सामान्य अभ्यर्थियों का साक्षात्कार होता है। उन्हें अंक देने में काफी उदारता बरती जाती है। उसके बाद ओबीसी का साक्षात्कार होता है। फिर दलितों और आदिवासियों का होता है। ओबीसी, दलितों और आदिवासियों और दलितों को उनकी योग्यता के अनुसार अंक नहीं दिए जाते। पूरा का पूरा जोर उन्हें योग्यता सूची में नीचे रखने का होता है। जिसके कारण आरक्षण के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती और उनके अनेक स्थान खाली रह जाते हैं। (संवाद)