अपने भौगोलिक आकार और जनसंख्या को देखते हुए यदि हम आकलन करें तो हम पाते हैं कि आधुनिक हथियारों पर खर्च करने के मामले में हमारा देश अन्य देशो के तुलना मे बहुत पीछे है। मिसाइल को छोड़कर अन्य सैन्य उपकरणो का उत्पादन हमारे देश में बहुत कम होता है और मिसाइलो का उपयोग शायद ही कभी होता है। भारत का 70 फीसदी सैन्य हार्डवेयर का हम आयात ही करते हैं। भारत के सालाना सैन्य खर्च का 65 फीसदी तो सैन्य प्रतिष्ठानों में से जुड़े लोगों की तनख्वाह और रखरखाव पर ही खर्च होता है।
भारत का सैन्य सामानों की खरीद पर सालाना ,खर्च 8 अरब डाॅलर होता है। उसमें आयात और देशी खरीद दोनों शामिल है। यह रखरखाव पर किए जाने वाले खर्च के आधा से भी कम है। दूसरी तरफ विशेषज्ञ आकलनों के अनुसार चीप का साला खर्च सैन्य सामानों की खरीद पर 2013 में 188 अरब डाॅलर का हुआ था। हालांकि अमेरिका द्वारा किए जा रहे खर्च से यह अभी भी बहुत कम है। 2013 में अमेरिका द्वारा इस मद में किया गया खर्च 640 अरब डाॅलर था। यदि रूस के खर्च को देखें तो उस साल उसका उस मद में खर्च 88 अरब डाॅलर था, जबकि सउदी अरब का खर्च 67 अरब डालर था।
कागज पर सेना पर खर्च के मामले में भारत दुनिया का नौवां सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है। 2013 में रक्षा पर कुल खर्च करीब साढ़े 47 अरब डाॅलर का था। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का यह ढाई फीसदी था। यह रकम बजट प्रावधान का है, लेकिन वास्तविक खर्च इससे भी कम था। एक अनुमान के अनुसार यह 36 अरब डाॅलर था। इसका कारण यह है कि बजट में प्रावधान किए गए खर्च का एक बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं किया गया। लगभग हर साल ऐसा ही होता आ रहा है। इससे बजट घाटा, राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा को कम होता है, लेकिन सैन्य तैयारियों के प्रयासों को काफी झटका लगता है।
भारत में रक्षा सामानों के उत्पादन की स्थिति बहुत खराब है। हमारे पास इनकी उत्पादन की क्षमता ही बहुत कम है। हमारी सैन्य तैयारियो के लिए सबसे बड़ी खटकने वाली बात भी यही हे। आयात बहुत महंगा है और हम अपनी विदेशी मुद्रा के खर्च का भी ध्यान रखते हैं।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो जवाहरलाल नेहरू के जमाने से ही हमारे देश की सरकार भारत के लोगों पर सैन्य सामानों के उत्पादन के मामले में विश्वास नहीं करती। निजी क्षेत्र को हथियार उत्पादन का जिम्मा ही नहीं दिया गया। इसका जिम्मा सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र को दिया गया। अब मोदी सरकार इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रही है। वह चाहती है कि बाहर के उत्पादक हमारे देश में आएं और हथियार का उत्पादन करें। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर विदेशी हथियार उत्पादक ध्यान दें, इसमें समय लगेगा। (संवाद)
भारत
ओबामा को गणतंत्र दिवस पर बुलाना अच्छी बात है
अमेरिकी राष्ट्रपति को उस दिन सैन्य ताकत दिखाना गलत है
नन्तु बनर्जी - 2014-12-17 11:45
कम्प्यूटर पर युद्ध का खेल खेलने वाले बच्चों के लिए 26 जनवरी को राष्ट्रपति भवन के सामने सैनिक विमानों की उड़ान बहुत रोमांचित करता है। उन्हें राजपथ पर भारतीय सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी बहुत अच्छा लगता है। जब वे देखते हैं कि हमारी सेना के लोग एक से बढ़कर एक करतब दिखा रहे हैं और उनके साथ हमारे युद्ध के सामानों को माॅडल उनकी आंखों के सामने से गुजर रहा है, तब भी वे अपने को बहुत रोमांचित महसूस करते हैं। पर यह रोमांच सिर्फ बच्चों को ही हो सकते हैं, हमारी सेना से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों को नहीं, क्योंकि उन्हें पता है कि हमारी सैनिक तैयारियां बहुत ही कमजोर है। हमारी सेना के पास उपकरणों की भारी कमी है। यदि हम उसकी तुलना रूस, चीन, सऊदी अरब, जापान, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका से करें, तो पाते हैं कि हम उनके सामने कहीं नहीं टिकते। इसलिए हमारे जानकार लोग चाहेंगे कि जब 26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा राजपथ पर मुख्य अतिथि के रूप में बैठे हुए हों, तो उनके सामने हम अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं ही करें, तो अच्छा हो।