इन चुनावों का पहला संदेश तो यह है कि भारत की राजनीति में नरेन्द्र मोदी का प्रभाव बरकरार है और उसके कारण ही भारतीय जनता पार्टी की जीत हो रही है। कुछ राज्यो में उपचुनावों को छोड़कर भाजपा एक के बाद एक जीत दर्ज कर रही है। इसने हरियाणा में बहुमत हासिल किया। महाराष्ट्र में भी इसका प्रदर्शन जबर्दस्त रहा और उसने वहां अपनी सरकार बनाई। जम्मू और कश्मीर में उसने 44 या उससे ज्यादा सीटें लाने का लक्ष्य रखा हुआ था। उतनी सीटें तो नहीं मिलींण् लेकिन वह आज वहां निर्णायक भूमिका में आ गई है।
एक संकेत यह भी है कि विपक्ष लगातार सिकुड़ रहा है। अन्य राष्ट्रीय पार्टियां अपना आधार खोती जा रही हैं ओर कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता जा रहा है। कमजोर विपक्ष लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होता। यदि विपक्षी पार्टियों ने कुछ ठोस काम नहीं किया, तो वे भारतीय जनता पार्टी के सामने भविष्य में भी नही टिक पाएगी।
इन चुनावों में भी भाजपा विरोधी पार्टियों ने कम्युनलिज्म बनाम सेकुलरिज्म को ही अपना मुख्य मुद्दा बना लिया था। लेकिन अब देश की राजनीति बदल गई है और इस राग का कोई असर जनता पर नहीं पड़ता। वे मोदी के व्यक्तित्व से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं और उनका विकास मंत्र उन्हें लगातार आकर्षित कर रहा है।
कांग्रेस की स्थिति तो सबसे ज्यादा खराब है। यह 130 साल पुरानी पार्टी है। अबतक यह देश की सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती थी, लेकिन इसका स्थान अब भारतीय जनता पार्टी ने ले लिया है। इसकी हालत इतनी खराब हो गई है कि देश के बहुत बड़े र्हिस्से में यह दूसरे नंबर की पार्टी भी नहीं रह गई है। जिन राज्यों में सिर्फ यह और भाजपा मुख्य रूप से है, उन्हीं में यह पहले या दूसरे नम्बर की पार्टी है।
जाहिर है कि कांग्रेस के लिए ये बहुत ही मुश्किल भरे दिन हैं। उसे आत्ममंथन करना होगा और अपने आपको सुधारना भी होगा। फिलहाल कांग्रेस के फिर से उत्थान के तो कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। पार्टी लकवाग्रस्त हो गई है और नेतृत्व को यह पता ही नहीं चल पा रहा है कि आखिर गड़बड़ी कहां हुई है। कार्यकत्र्ता हतोत्साह हो चुके हैं और वे वहां भाग रहे हैं, जहां से उन्हें कुछ हासिल होने की उम्मीद दिखाई पड़ रही है।
कहा जा रहा है कि पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी चैतरफा सलाह मशविरा कर रहे हैं, लेकिन उससे कुछ निकल नहीं रहा है। कांग्रेस को अब जमीन से जुड़ा संगठन चाहिए। उसे एक मजबूत नेतृत्व चाहिए और सक्षम राज्य स्तरीय नेता चाहिए। यह सब एक दिन में नहीं हो सकता। लेकिन पार्टी को जल्द से जल्द फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने की आवश्यकता है। देर करने से नुकसान ही होगा।
कांग्रेस को अब अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है। उसे सेकुलरिज्म और कम्युनलिज्म का राग अलापने की रणनति से मुक्ति पानी होगी। वह बार बार इसी राग को अलापती है और हर बार मुह की खाती है। लोग उसके इस राग से नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी के विकास के नारे से प्रभावित होते हैं। कांग्रेस को भी लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप अपने आपको ढालना होगा।
कांग्रेस के सामने अभी तो सबसे बड़ी चुनौती अपने लोगों को अपने साथ बनाए रखने की है और आगामी सालों में होने वाले विधानसभाओं के चुनावों का सामना करने के लिए अपने को तैयार करने की है। आने वाले समय में बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के चुनाव होंगे।
झारखंड में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण गलत गठबंधन करना था। उसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ किसी भी हालत में गठबंधन करना चाहिए था, भले ही उसके लिए उसे राजद और जद(यू) से गठबंधन तोड़ना पड़ता। (संवाद)
भारत
दोनों राज्यों में काम आया मोदी का करिश्मा
भाजपा को शिकस्त देने में विपक्ष को करनी पड़ेगी कड़ी मेहनत
कल्याणी शंकर - 2014-12-26 12:32
झारखंड व जम्मू और कश्मीर विधानसभाओं के चुनावों ने साबित कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी का लगातार उत्थान हो रहा है और अन्य राष्ट्रीय पार्टियां पतन का सामना कर रही हैं। झारखंड ने स्थायित्व का चुनाव किया है और वहां भारतीय जनता पार्टी की स्थिर सरकार बन रही है, तो जम्मू और कश्मीर में एक त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आई है। इससे पता चलता है कि भारत की राजनीति में कितनी विविधता है।