फिर भी यदि किसी व्यक्तिगत कारणों से यह विरोध होता तो इसे समझा जा सकता था, पर विरोध इसलिए किया जा रहा है कि भाजपा ने किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। सबसे अधिक दुखद बात यह है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कह रहे हैं कि आदिवासी को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था और वैसा नहीं करके भाजपा ने गलत काम किया है। जो व्यक्ति लंबे समय से एक प्रदेश का मुख्यमंत्री रह चुका हो और प्रधानमंत्री बनने का सपना भी देखता रहा हो, वह इस तरह की बात करे तो मानना पड़ेगा कि हमारे देश की राजनीति का पतन कुछ ज्यादा ही हो गया है।

नीतीश कुमार कहते हैं कि अबतब झारखंड के सारे मुख्यमंत्री आदिवासी रहे हैं और आगे भी आदिवासियो को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था। झारखंड सिर्फ 14 साल पुराना प्रदेश है और इस बीच इसके 5 मुख्यमंत्री हुए थे। उन्होंने 9 बार शपथग्रहण किया था। जिस बिहार से टूटकर यह प्रदेश बना है, उसके पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह अकेले 14 साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रह चुके थे। उनकी भी कोई जाति थी। तो नीतीश कुमार के तर्क के अनुसार बिहार में श्रीकृष्ण सिह के बाद उनकी ही जाति के व्यक्ति को मुख्यमंत्री होना चाहिए था। झारखंड में तो 14 साल तक ही आदिवासी मुख्यमंत्री था, हरियाणा मे तो पिछले 20 साल से जाट मुख्यमंत्री थे, तो नीतीश कुमार इस पर भी आपत्ति उठाएंगे कि भाजपा ने हरियाणा में गैरजाट को मुख्यमंत्री क्यो बना दिया?

कुछ लोग कह रहे हैं कि झारखंड एक आदिवासी राज्य है। सवाल है कि उनके दावे का क्या आधार है? क्या भारत के संविधान मंे यह लिखा हुआ है कि वह आदिवासी राज्य है? क्या जिस कानून के तीत झारखंड का गठन हुआ, उस कानून में यह लिखा हुआ था कि झारखंड एक आदिवासी राज्य है और उसका मुख्यमंत्री आदिवासी ही हो सकता है? क्या उस कानून में यह कहीं लिखा गया है कि उस राज्य का गठन सिर्फ आदिवासियों के लिए किया गया है? इन सवालों का जवाब ’’हां’’ में कोई नहीं दे सकता। तो फिर एक गैर आदिवासी के मुख्यमंत्री बनने पर इतना हंगामा क्यों?

झारखंड आदिवासी बहुल राज्य भी नहीं है। 2001 की जनगणना के अनुसार वहां की आबादी का 27 फीसदी हिस्सा ही आदिवासी है। कुछ लोगों का मानना है कि आदिवासियों के वहां से भारी पलायन के कारण उनकी आबादी और भी कम हो गई है। आबादी कम हुई है या नहीं, इसका पता तो वहां हुए जाति जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद लगेगा, लेकिन 27 फीसदी आदिवासी आबादी वाले प्रदेश को आप आदिवासी प्रदेश अपने सामान्य ज्ञान के आधार पर भी नहीं कर सकते।

यह सच है कि 27 फीसदी की आबादी भी बड़ी आबादी होती है, लेकिन किसी प्रदेश में किसी सामाजिक या सम्प्रदायिक समूह की आबादी के आधार पर आप उस प्रदेश का नामकरण नहीं कर सकते। असम में तो 30 फीसदी मुसलमान हैं। तौ क्या उसे मुस्लिम प्रदेश कहा जाएगा और यह माग की जाएगी कि वहां का मुख्यमंत्री कोई मुसलमान ही बने। वैसे उतनी बड़ी मुस्लिम आबादी वाले उस प्रदेश में अबतक एक ही मुसर््िलम मुख्यमंत्री बने हैं। उत्तर प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा मुस्लिम रहते हैं, तो क्या यह मान लिया जाय कि वह मुस्लिम राज्य कहे जाने की योग्यता रखती है और वहां का मुख्यमंत्री मुस्लिम ही होना चाहिए? उत्तर प्रदेश में तो मुस्लिम आबादी साढ़े 18 फीसदी ही है, जम्मू और कश्मीर में तो यह 50 फीसदी से भी ज्यादा है, तो क्या झारखंड को आदिवासी राज्य मानने वाले लोग जम्मू और कश्मीर को मुस्लिम राज्य कहेंगे? और क्या उसी तर्क से पूर्वाेत्तर के कुछ ईसाई बहुल प्रदेशों को ईसाई प्रदेश और शेष अन्य प्रदेशों को हिंदु प्रदेश कहेंगे? तब तो भारत को उन्हें हिन्दू देश भी कहना होगा, क्योंकि देश की आबादी का 80 या 82 फीसदी हिंदू ही हैं।

जो लोग झारखंड में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का विरोध आदिवासी आधार पर कर रहे हैं, वे प्थकतावाद को बढ़ावा दे रहे हैं। जाति और सम्प्रदाय में बंटे हमारे देश में प्रायः देखा जाता है कि अपनी जाति या सम्प्रदाय के व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने से लोग खुश हो जाते हैं और उनके हटने से दुखी हो जाते हैं। बनने पर खुशियों का इजहार करते हैं। पटाखेबाजी करते हैं और मिठाइयां भी बांटते हैं। अपनी जाति के व्यक्ति के हट जाने पर मातम मनाते हैं और कई लोग तो एक या दो शाम खाना भी नहीं खाते हैं, लेकिन अपनी जाति या समुदाय के व्यक्ति के सीएम नहीं बनने पर सार्वजनिक प्रदर्शन और विरोध देखा जाना बिल्कुल नई बात है। इसके लिए आजतक कहीं बंद का आयोजन नहीं हुआ था, पर झारखंड में तो एक आदिवासी के मुख्यमंत्री नहीं बनने के खिलाफ बंद का ही आयोजन कर दिया गया। यह असंवैधानिक प्रवृति है। सभी को समझना चाहिए कि राजनैतिक व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत की मुख्यमंत्री पद पर कोई बैठता है और उस पर किसी जाति, वर्ग, समुदाय या संप्रदाय का व्यक्ति बैठ सकता है। झारखंड के गठन के बाद 14 साल तक सिर्फ आदिवासी ही मुख्यमंत्री बने, तो उसके भी राजनैतिक कारण थे। पहली बार सरकार बनाने वाली भाजपा की नजर आदिवासी वोटों पर थी, इसलिए उसने एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया। झामुमो का नेतृत्व ही एक आदिवासी के हाथ में है। इसलिए जब उसकी सरकार बनी, तो उसका आदिवासी होना तय था। अब यदि भाजपा ने किसी गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया है, तो वह भी एक राजनैतिक समझ और जरूरतों के मद्दे नजर ही किया गया होगा। यह उसका आंतरिक मामला है। इसे आदिवासी बनाम गैर आदिवासी मुद्दा बनाना गलत है। (संवाद)