इसके कारण राजकोषीय मोर्चे पर राहत दिखाई पड़ रही है। चालू खाते पर भी राहत है और तेल खाते पर तो सबसे ज्यादा राहत है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। आगामी एक साल तक तेल की कीमतें कम रहने की ही संभावना है। इसके कारण भारत अपने राजकोषीय घाटे को और भी कम कर सकता है।

भारत इस मोेर्चे पर मिली राहत का लाभ उठाकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर भी बहुत कुछ कर सकता है। उसके पास उसमें निवेश करने के लिए कोष उपलब्ध रहेगा। निवेश की ताकत से भारत अगले वित्त वर्ष में अपनी विकास दर 6 फीसदी तक ले जा सकता है। उसके बाद विकास की दर को और भी तेज किया जा सकता है।

सरकार के लिए सार्वजनिक निवेश करना और भी इसलिए जरूरी हो गया है, क्योंकि निजी निवेश की गति तेज नहीं हो रही है। पहले 7 महीने मे मोदी का जादू नहीं चल पाया है।

कार्पोरेट घराने अब खुद मांग कर रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश बढ़े, ताकि उसकी आड़ में निजी क्षेत्र का निवेश भी बढ़ सके। यह बात पिछले 6 जनवरी को वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ कार्पोरेट क्षेत्र की बैठक मे की गई। उम्मीद की जा रही है कि अगले बजट में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश पर खास जोर दिया जाएगा ताकि विकास की दर आने वाले समय मे तेज हो सके।

तेल की कीमतों के गिरने के कारणों पर अनुमान लगाने का खेल जारी है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि आपूर्ति के मोर्चे पर हो रही गतिविधियों के कारण ही ऐसा हो सका है। अमेरिका अब एक बहुत बड़ा तेल उत्पादक देश बन गया है। इसके कारण उसने तेल आयात कम कर दिया है। अनियमित ग्लोबल विकास दर ने भी तेल की मांग कम कर दी है।

विश्व बैंक का कहना है कि तेल की कीमतें बार बार बढ़ती रहती थीं। पर पिछले 4 सालों से यह 105 डालर प्रति बैरल के आसपास स्थिर थी। एकाएक जून महीने के मध्य से उसमें गिरावट दर्ज होने लगी। इसका कारण तेल की मांग में आ रही कमी थी। एक कारण अमेरिकी डाॅलर का मजबूत होना भी था।

विश्व बैंक ने अपने ताजा रिपोर्ट में बताया है कि इस साल तेल की कीमतें गिरी रहेंगी। इसके कारण देशों के आय वितरण पैटर्न में बदलाव आएगा। आयातकों को फायदा होगा और निर्यातक देशों को नुकसान होगा। आयात करने वाले देशों की राजकोषीय समस्या हल होगी और वे नये क्षेत्रों में निवेश कर पाएंगे। इसके कारण उनकी विकास दर में भी वृद्धि होगी। दूसरी तरफ तेल निर्यात करने वाले देशों को घाटा होगा। उनकी आमदनी घटेगी।

भारत के लिए खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में हो रहा बदलाव खास मायने रखता है। उन देशों मंे भारत के लोग भारी संख्या में काम करते हैं और विदेशी मुद्रा अर्जित कर भारत भेजते हैं। तेल निर्यात से होने वाली आय मे कमी के कारण वहां की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं। लेकिन माना जा रहा है कि लघु अवधि में वहां की आर्थिक गतिविधियों पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है।

अगले महीने वित्त मंत्री अगले वित्तीय साल का बजट पेश करने वाले हैं। उस बजट को हम बहुत मनमोहक नहीं मान सकते हैं। इसका कारण यह है कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अभी भी अनिश्चितता है। उस अनिश्चितता का प्रभाव तो बजट पर पड़ेगा ही। (संवाद)