दिल्ली प्रदेश की सत्ता से भाजपा 16 साल से बाहर है। वह इस बीच लोकसभा के अनेक चुनाव यहां से जीतती रही है। नगर निगम के चुनाव में भी इसने जीत के परचम लहराए हैं, लेकिन पिछले 4 विधानसभाओं मंे इसे हार का ही सामना करना पड़ा है। इस बार भाजपा मोदी मैजिक के सहारे चुनाव जीतने का सपना देख रही है। पिछले साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में इसने सातों सीटों पर जीत हासिल की थी। विधानसभा की कुल 70 में से 60 सीटों पर इसके उम्मीदवारों ने सबसे ज्यादा मत हासिल किए थे। उस सफलता को देखते हुए भाजपा की जीत की भविष्यवाणी करना बहुत आसान है। जीम की भविष्यवाणी जिनती आसान है, जीत उतनी ही कठिन। इसका आभास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को रामलीला मैदान की सभा में हो गया है, जहां उम्मीद के मुताबिक लोग नहीं जुटे।

रामलीला मैदान की भीड़ ही नहीं, बल्कि वहां प्रधानमंत्री का भाषण भी भाजपा की जीत की दृष्टि से निराशाजनक था। यहां भाजपा न तो कांग्रेस का सामना कर रही है और न ही किसी राजनैतिक परिवार की। प्रधानमंत्री का वह भाषण श्रेष्ठ होता है, जिसमें वे कांग्रेस की बखिया उधेड़ते हैं, लेकिन उनके दुर्भाग्य से यहां उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस से नहीं है, बल्कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से है। जब वंशवाद के खिलाफ मोदी जी बोलते हैं, तो वह भी सुनने वालो के मन को भा जाता है, लेकिन यहां वंशवाद या परिवार वाद के खिलाफ बोलने के लिए भी कुछ नहीं है, क्योंकि यहां उनके सामने अरविंद केजरीवाल खड़े हैं, जो किसी राजनेता के परिवार का सदस्य होने के कारण नहीं राजनीति मे नहीं हैं, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में हुए एक बड़े राजनैतिक आंदोलन की उपज हैं।

नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल देश की राजनीति में परिवर्तन के प्रतीक पुरुष बन गए हैं। देश के लोग बदलाव चाहते हैं। बदलाव किस तरह का हो, इसके बारे में वे स्पष्ट नहीं, लेकिन वर्तमान हालत से वे असंतुष्ट हैं और चाहते हैं कि यथास्थिति बदले। नरेन्द्र मोदी में वे बदलाव का एक नायक देखते हैं और अरविंद केजरीवाल में भी। दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल की 49 दिनों वाली एक अल्पमत सरकार देखी है और नरेन्द्र मोदी की 7 महीनों वाली केन्द्र की एक बहुमत वाली सरकार। बदलाव की चाह रखने वाली दिल्ली की जनता दोनों के कार्यकाल की उपलब्धियों की तुलना जरूर करेगी। तुलना करने के बाद वह देखेगी कि दोनों में से कौन बदलाव का बड़ा वाहक है। मोदी जीतेंगे या केजरीवाल इसका निर्णय दिल्ली की जनता के इसी आकलन से होगा।

अरविंद केजरीवाल के 49 दिनों की सरकार की उपलब्धियों को कम करके नहीं आंका जा सकता। एक तो उनकी सरकार अल्पमत की सरकार थी और दूसरे दिल्ली की प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र बहुत ही सीमित हैं। अपने सीमित अधिकार क्षेत्र में अल्मत में होने के बावजूद केजरीवाल ने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त रखने में काफी सफलता पाई। बिजली की दरों को आधा करना और पीने के पानी को मुफ्त में उपलब्ध कराने के दावों पर सवाल तो खडे़ किए जा सकते हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्ट आचरण करने से डर रहे थे। दिल्ली पुलिस अरविंद केजरीवाल सरकार के अधीन नहीं थी, लेकिन केजरीवाल का डर उनमें भी समाया हुआ था और पुलिसिया भ्रष्टाचार से आमतौर पर त्रस्त रहने वाला आम आदमी राहत की सांस ले रहा था। अगले चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए यह तथ्य सबसे ज्यादा सहायक होने वाला है।

अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस चुनौती पर अपना नजरयिा पेश किया। उन्हें पता है कि दिल्ली और दिल्ली के लोग अभी भी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि पीएमओ यानी अपने कार्यालय से तो उन्होंने भ्रष्टाचार समाप्त कर दिया है, धीरे धीरे भ्रष्टाचार मुक्त शासन नीचे के स्तर पर भी उतर जाएगा। सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री का यह बयान दिल्ली के लोगों को संतुष्ट करने के काफी है? सच तो यह है कि दिल्ली की जो जनता मतदान करेगी, वह पीएमओ के भ्रष्टाचार से सीधे तौर पर नहीं प्रभावित होती। वहां भ्रष्टाचार समाप्त हुआ है भी या नहीं, इसके बारे में जानने का साधन भी उसके पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए मोदी का वह बयान शायद ही दिल्ली को भ्रष्टाचार से मुक्त रखने की चाह रखने वाले लोगों को भाजपा की ओर खींच सके।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते हैं, लेकिन दिल्ली में उनकी पार्टी की सबसे बड़ी समस्या राष्ट्रीय राजधानी के कांग्रेस मुक्त हो जाने की है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल नहीं हुई थी। यदि दिल्ली कांग्रेस मुक्त बनती है, तो उसके ज्यादातर समर्थक मतदाता आम आदमी पार्टी की ओर आ जाएंगे और भाजपा के उम्मीदवारों की जीत मुश्किल हो जाएगी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ गया था। अगले चुनाव में उसके वोट प्रतिशत और भी बढ़ने की संभावना है। यदि भाजपा को जीत हासिल करनी है, तो उसे भी अपना वोट प्रतिशत और बढ़ाना होगा, लेकिन अभी तो उसके चुनौती अपने पिछले वोट प्रतिशत को बचा कर रखने की ही दिखाई दे रही है।

दिल्ली एक छोटा प्रदेश है और यहां के मुख्यमंत्री के अधिकार भी बहुत सीमित हैं। इसके बावजूद इसके नतीजे पिछले चार विधानसभाई नतीजों से ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि दिल्ली देश की राजनीति के स्नायु तंत्र का केन्द्र बिन्दु है। यदि केजरीवाल यहां मुख्यमंत्री बन गए, तो वे लगातार मोदीजी को राजनैतिक से ज्याद नैतिक चुनौती देते रहेंगे। राजनैतिक चुनौती का सामना बड़े संगठन और अपार राजनैतिक ताकत के बल पर तो किया जा सकता है, लेकिन नैतिक चुनौती का सामना करना आसान नहीं, क्योंकि नैतिकता संगठन अथवा सत्ता से नहीं पैदा होती, बल्कि आचरण से पैदा होती है। (संवाद)