टिकट की चाह रखने वालों ने हजारों की संख्या में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के कार्यालयों में भीड़ लगा रखी थी। मध्यप्रदेश पहले से ही दो दलीय प्रदेश बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा यहां अन्य पार्टियों की उल्लेखनीय उपस्थिति नहीं है।

एक समय था, जब मध्यप्रदेश में टिकट बांटने का काम भाजपा के लिए बहुत आसान हुआ करता था। और यही कारण है कि भाजपा दावा करती थी कि वह अलग किस्म की पार्टी है।

हालांकि दोनों पार्टियों में टिकट वितरण को लेकर असंतोष उभरे, लेकिन ये असंतोष कांग्रेस में ज्यादा दिखाई पड़ रहे थे।

कांग्रेस में जिन्हें टिकट नहीं मिला, उन्होंने अलग अलग तरीके से अपने असंतोष का इजहार किया। उदाहरण के लिए कांग्रेसियों के एक समूह ने पूर्व मंत्री सुरेश पचैरी का पुलता फूंका। एक अन्य मामले में एक कांग्रेसी ने कांग्रेस मुख्यालय के सामने आत्महत्या की कोशिश की। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष और इसके 15 जिला अध्यक्षों ने अपने पदों से इस्तीफा दे डाला। युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने तो पार्टी छोड़ने की ही धमकी दे डाली। अनेक नेताओ के खिलाफ असंतुष्टों ने प्रदर्शन किए।

भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्टों ने भी प्रदर्शन किए। उन्होंने मंत्रियों के घरों का घेराव किया। उच्च शिक्षा मंत्री उमा शंकर गुप्ता भी उनका निशाना बने। अंदौरा में रमेश मंडोला ने धमकी दी कि यदि उनकी पसंद के लोगों को टिकट नहीं दिए गए, तो वे कोई बहुत बड़ा कदम उठाएंगे।

पड़ोसी छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बांटने में इस बार काफी सतर्कता दिखाई। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के नगर निगम, नगरपालिका और नगर पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस ने अच्छी सफलता हासिल की है। 4 नगर निगमों के मेयर कांग्रेस के बने और इतने ही मेयर भाजपा के भी बने, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा के 6 और कांग्रेस के महज तीन मेयर ही बन पाए थे।

भाजपा को डर लग रहा है कि कहीं मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ दुहरा न दिया जाय। यही कारण है कि इसने टिकट वितरण के द्वारा समाज के सभी वर्गों के लोगों को खुश करने की कोशिश की। इस बार भाजपा मुस्लिमों को भी अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। उसने भोपाल में मुस्लिम बहुल इलाके में 10 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं।

नगर निकायों के चुनाव के अलावा पंचायत चुनाव भी मध्यप्रदेश में होने हैं। पर ग्राम पंचायतों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते। इसके बावजूद पार्टियों की दलीय प्रतिबद्धता चुनावों मे काम करती है। ग्रामीण मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान होगी और सरकारी कामकाज में महिलाओं को परिवार का प्रमुख माना जाएगा।

गांवों से कुछ चिंताजनक खबरे भी आ रही हैं। कुछ गांवों मंे बिना चुनाव में सरपंच चुने जाने का एक अनोखा तरीका अख्तियार किया जा रहा है।

कुछ गांवों मंे सरपंच पद की निलामी की जा रही है और जो उस निलामी में सबसे ज्यादा बोली लगा सकता है, उसे निर्विरोध सरपंच चुनने की बात हो रही है। एक गांव में सरपंच के पद को 15 लाख रुपये में खरीदा गया। यदि इसे नहीं रोका गया, तो एक समय आएगा, जब ग्राम पंचायतों पर पैसे वालों का कब्जा हो जाएगा।

इसके कारण गांव के सामंतवादी ताकतों का ग्राम पंचायतों पर कब्जा हो जाएगा। एक संस्था ने प्रदेश चुनाव आयोग को आवेदन देकर गुहार लगाई है कि इस प्रवृति को रोका जाय, नहीं तो एक समय आएगा, जब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के पदों की भी नीलामी की जाएगी। (संवाद)