अरविंद केजरीवाल के लिए यह करो या मरो की लड़ाई है। यह चुनाव 13 महीने के बाद दुबारा हो रहा है। इस बीच राजनैतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आया है। यमुना में बहुत पानी बह चुका है। केन्द्र में इस समय एक नई सरकार है। आम आदमी पार्टी इस बार अपनी सफलता के लिए ज्यादा आश्वस्त है और कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर हो गई है।
आगामी चुनाव मे मतदान का पैटर्न भी बदलने वाला है। अब लगता है कि संघर्ष सीधा भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही होगा। कांग्रेस हाशिए पर रहेगी। केजरीवाल के लिए संतोष का विषय यह है कि कांग्रेस के समर्थक आम आदमी पार्टी की तरफ झुक रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के पास प्रदेश स्तर का कोई बड़ा नेता नहीं है। इसलिए इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मैजिक पर ही निर्भर रहना है। प्रधानमंत्री ने पिछले कुछ विधानसभाओं के चुनावों मंे यह साबित कर दिया है कि न केवल वे भीड़ को अपनी ओर खींचने की क्षमता रखते हैं बल्कि उस भीड़ वोट में बदलना भी जानते हैं। लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं। केजरीवाल की दिल्ली राजनीति में एक अलग अहमियत बन गई है। वे बड़े बड़े नेता से टक्कर लेने और उन्हें पराजित करने की भी क्षमता रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने शीला दीक्षित को भारी मतों से पराजित किया था। नतीजे आने के पहले शायद ही कोई सोच सकता था कि शीला दीक्षित को कोई उतने मतों से पराजित कर सकता है। लेकिन असंभव को संभव बनाने की क्षमता केजरीवाल रखते हैं। जाहिर है भाजपा के लिए वे एक बहुत बड़ी चुनौती हैं। और उस चुनौती का सामना करने के लिए भाजपा ने अपने कुनबे में किरण बेदी को शामिल कर लिया है। लेकिन किरण केजरीवाल के सामने टिक पाएगी, इसे मानने के लिए बहुत कम लोग तैयार हैं।
दिल्ली सरकार से बिना किसी खास विवशता से इस्तीफा देने के कारण केजरीवाल को दिल्ली के मध्यवर्ग के कोप का भाजन बनना पड़ा है। इसकी उन्होंने भारी कीमत भी चुकाई है। लेकिन निम्न मध्य आय वर्ग और निम्न आय वर्ग के लोगों के बीच केजरीवाल की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। भ्रष्टाचार मुक्त शासन, सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का उनका वायदा दिल्ली के लोगों को अभी भी लुभा रहा है।
कांग्रेस की हालत आज बहुत खराब है। कांग्रेस का दीक्षित युग समाप्त हो गया है। एक समय शीला दीक्षित के नाम पर ही कांग्रेस चुनाव जीतती थी। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने तीन विधानसभाओं के चुनाव जीते। भले महानगर चुनाव में कांग्रेस हार जाती हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में वह जीत जाती थी और उस जीत का कारण शीक्षा दीक्षित हुआ करती थीं। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में शीला खुद हार गईं और शीला युग ही समाप्त हो गया। अब दिल्ली में कांग्रेस दिशाहीन और नेतृत्वहीन हो गई है।
पिछले साल लोकसभा चुनाव में लोगों ने नरेन्द्र मोदी और भाजपा का समर्थन किया। भाजपा के सातों लोकसभा उम्मीदवार चुनाव जीत गए और प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों में से 60 पर कांग्रेस उम्मीदवार ही सबसे आगे रहे। लेकिन अब ऐसा दिखाई नहीं लग रहा है। (संवाद)
भारत
त्रिशंकु विधानसभा की ओर बढ़ती दिल्ली
आप और भाजपा के बीच कठिन टक्कर
हरिहर स्वरूप - 2015-01-19 11:27
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद तीन संभावनाएं पैदा हो सकती हैं। सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि एक बार फिर विधानसभा त्रिशंकु हो। दूसरी संभावना आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन की हो रही है, तो तीसरी संभावना भाजपा के सरकार बनने की है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी को शायद अपने बूते बहुमत हासिल नहीं हो। सवाल उठता है कि यदि विधानसभा त्रिशंकु नहीं रही तो फिर क्या होगा। क्या कांग्रेस आम आदमी पार्टी की सरकार का समर्थन करेगी? शीला दीक्षित ने तो कुछ ऐसा ही संकेत दिया था।