यह पता नहीं चल रहा है कि कांग्रेस इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंची, क्योंकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस का आज इतना बुरा हाल है कि लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या घटकर 44 हो गई है। इतना ही नहीं, पिछले लोकसभा चुनाव के बाद वह एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है। वह हार भी साधारण हार नहीं है, बल्कि सभी विधानसभाओं मंे वह या तो तीसरे नंबर की पार्टी बनी है या चैथे नंबर की पार्टी। महाराष्ट्र में वह भाजपा और शिवसेना के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनी। हरियाणा में वह भाजपा और इंडियन नेशनल लोकदल के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनी। जम्मू और कश्मीर में वह पीडीपी, भाजपा और नेशनल कान्फ्रेंस के बाद चैथे नंबर की पार्टी बनी। झारखंड में वह भाजपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विका मोर्चा के बाद चैथे नंबर की पार्टी बनी। दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। यह भी तय है कि यह तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरेगी और वह भी बहुत की कम सीटें पाकर।
यानी जहां जहां चुनाव हुए हैं, वहां कांग्रेस का सत्ता में आना तो दूर मुख्य विपक्ष के रूप में भी वह उभर नहीं रही है। महाराष्ट्र में उसे प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका विधानसभा में इसलिए मिली है, क्योंकि विधानसभा मे दूसरी सबसे बड़ी पार्टी ने सरकार में शामिल होने का निर्णय कर लिया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पिछली बार उसे 8 सीटें मिली थीं। इस बार उतनी सीटों के पाने की भी संभावना नहीं है।
यानी कांग्रेस आज रसातल में जाती दिखाई पड़ रही है और यह सब सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में ही हो रहा है। इसके बावजूद कोई कैसे कह सकता है कि सोनिया और राहुल की देश के लोगों के बीच जबर्दस्त विश्वसनीयता है। फिर भी प्रस्ताव में यदि ऐसा कहा गया है, तो इसका मतलब है कि राहुल और सोनिया ने ही उस प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार किया होगा, क्योंकि कोई और इस तरह की बात तो कर ही नहीं सकता। राहुल कांग्रेस के शीर्ष पर इसलिए नहीं हैं, क्योंकि वह इसकी योग्यता रखते हैं, बल्कि वे इसके शीर्ष पर इसलिए हैं, क्योंकि उनकी मां सोनिया ऐसा चाहती हैं। वह देश का क्या, कांग्रेस का भी स्वाभाविक नेता नहीं हैं।
जिस तरह देश के समाचार चैनल अपने आपको देश का सर्वश्रेष्ठ चैनल होने का तगमा देते रहते हैं, उसी तरह राहुल गांधी भी अपने आपको सर्वश्रेष्ठ होने का तगमा दे रहे हैं। यह तो अपने मुह मिया मिट्ठु होने वाली बात हुई। इसके कारण राहुल गांधी की छवि एक जोकर की बन गई है। केरल के एक कांग्रेसी नेता ने तो यह बात खुले आम कह भी दी थी।
सच कहा जाय, तो कांग्रेस की हालत आज इतनी खराब हो गई है, जितना कुछ दिन पहले सोचा भी नहीं जा रहा था। इसकी स्थिति सुधारने के लिए जरूरी है कि हम इसकी बीमारी की सही पहचान करें। लेकिन कांग्रेस बीमारी की पहचान करने से भी डर रही है। उसे सही बात को स्वीकार करने मे भी शर्म आती है।
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों को जानने के लिए जो समिति बनी थी, उसने अपने काम की शुरुआत सोनिया और राहुल को क्लीन चिट देने से शुरू की। यह दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों की परंपरा है कि करारी हार के बाद शीर्ष नेता उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए इस्तीफा दे देता हैए लेकिन सोनिया गांधी ने ऐसा नहीं किया। सोनिया और राहुल इतने ईमानदार भी नहीं हैं कि वे यह स्वीकार करें कि वे देश के लोगों से कटे हुए हैं। अब यदि राहुल के हाथ में कांग्रेस की कमान दे दी जाती है, तो उनकी विफलता भी सुनिश्चित है। (संवाद)
भारत
पार्टी अध्यक्ष के रूप में विफल होंगे राहुल
स्वाभाविक नेता का मिथ ध्वस्त हो चुका है
अमूल्य गांगुली - 2015-01-20 11:24
कांग्रेस द्वारा पारित किए गए पिछले प्रस्ताव में एक दिलचस्प वाक्य है। उसमें कहा गया है कि कांग्रेस की अध्यक्ष और इसके उपाध्यक्ष की जबर्दस्त विश्वसनीयता है और देश के लोगों का उनके साथ जबर्दस्त भावनात्मक लगाव है और पार्टी को चाहिए कि वह इस राजनैतिक पूंजी की रक्षा करे और उसका लाभ उठाए। प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रगतिशील और उदार ताकतों को अपने इर्द गिर्द जमा करने वालों के स्वाभाविक प्रतीक हैं।