जाहिर है भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में लगातार मजबूत होती जा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद अनेक विश्लेषक कह रहे थे कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही होना है। उपचुनावों के नतीजे इस विश्लेषण के निष्कर्ष की पुष्टि करते दिखाई दे रहे हैं।

तृणमूल कांग्रेस और उसकी नेता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह चुनावी सफलता काफी महत्वपूर्ण है। यह सच है कि इन दोनों सीटों पर पहले भी तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार ही जीते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि तृणमूल कांग्रेस न तो घाटे में रही और न फायदे में। लेकिन जिस माहौल में चुनाव हो रहे थे, उससे तृणमूल के नेता काफी चिंतित थे। लिहाजा, उन्होंने चुनाव जीतने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक रखी थी।

तृणमूल कांग्रेस आजकल शारदा चिटफंड घोटाले में हुए भ्रष्टाचार को लेकर परेशानी का सामना कर रही है। उसके कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं। जबतब खुद ममता बनर्जी की इस घोटाले में संलिप्तता को लेकर भी सवाल खड़े होने लगते हैं। ममता बनर्जी को बीच बीच में चुनौती भरे बयान जारी करने पड़ते हैं।

इसलिए उपचुनाव में यह भी देखा जाना था कि शारदा घोटाले के कारण लोगों के बीच तृणमूल कांग्रेस और उसकी नेता की लोकप्रियता घट तो नहीं गई है। नतीजे बताते हैं कि दोनों में से किसी की भी लोकप्रियता घटती नहीं दिखाई पड़ रही हैं तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार जीते हैं और पार्टी के वोट प्रतिशत में भी कमी नहीं आई है।

भारतीय जनता पार्टी की चुनौती का सामना तृणमूल को आने वाले दिनों में करना है। यह चुनावी नतीजों से जाहिर है। ममता बनर्जी के बयान से भी पता चलता है कि कौन दूसरे नंबर पर आया और कौन तीसरे नंबर पर, इसकी चिंता भी उन्हें है। हालांकि वह अपने बयान में कहती हैं कि उनके लिए ज्यादा मायने यह रखता है कि उनकी पार्टी नंबर वन है और कौन दूसरे नंबर पर आया और कौन तीसरे नंबर पर, इसकी चिंता करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है।

लोकसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में सीपीएम का उम्मीदवार तृणमूल के उम्मीदवार से 2 लाख 20 हजार से भी ज्यादा मतों से पराजित हुआ और दूसरे स्थान पर रहा। वहां भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहा। लेकिन सीपीएम के लिए चिंता का विषय यह है कि उसकी उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार से सिर्फ 14 हजार मत से ही पीछे था। बनगांव लोकसभा क्षेत्र में वह उपचुनाव हो रहा था और वह क्षेत्र बांगलादेश की सीमा से लगा हुआ है। वहां भारी संख्या में अवैध रूप से बांग्लादेशियों ने नागरिकता ले रखी हैए जिसके खिलाफ भाजपा बयानबाजी करती रहती है। वे अवैध मतदाता भाजपा को पसंद नहीं करते। इसलिए वहां उसका अभी कोई चांस भी नहीं था।

कृष्णगंज विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में भाजपा का 30 फीसदी मत लाकर दूसरे स्थान पर रहना ज्यादा महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस इलाके में अवैध मतदाताओं की संख्या नहीं के बराबर है।

तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी इन नतीजों से खुश हो सकती है, लेकिन वाम मोर्चे की चिंता इसके कारण और बढ़ जानी चाहिए। इसका कारण यह है कि वह लगातार अपना आधार खोती जा रहा है। उसे अपने पतन को रोकने का रास्ता मिल नहीं पा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे पूरे प्रदेश में 29 फीसदी मत मिले थे, लेकिन इस बार उसे बनगांव में 26 फीसदी और कृष्णगंज में मात्र 18 फीसदी मत ही मिल सके।

कांग्रेस की स्थिति तो अत्यंत ही दयनीय हो गई है। वह पश्चिम बंगाल में समाप्ति की ओर है। इसका पता इसीसे लगता है कि उसे मात्र दो फीसदी मत ही मिल सके। (संवाद)