विजयन और पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंदन में पिछले कई सालों से घमासान चल रहा था। वह घमासान पिछले कान्फ्रेंस में भी देखने को मिला। सच कहा जाय, तो दोनों के बीच कटुता का जो रूप सार्वजनिक तौर पर उस कान्फ्रेंस में देखा गया, वह पहले कभी नहीं देखा गया था।

पार्टी द्वारा कान्फ्रेंस के लिए तैयार की गई वर्क रिपोर्ट में अच्युतानंदन की तीव्र निंदा की गई थी। रिपोर्ट के कुल 56 पेज उनकी निंदा मंे ही थे। पैरा दर पैरा अच्युतानंदन के खिलाफ आग उगली गई थी। सीपीएम के इतिहास मे ऐसा कभी नहीं हुआ है कि पार्टी के किसी भी कान्फ्रेंस में पेश की गई किसी कार्य रिपोर्ट में एक व्यक्ति विशेष के ऊपर इतने विस्तार से कीचड़ उछाले गए हों।

प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा के लिए सिर्फ और सिर्फ अच्युतानंदन को ही जिम्मेदार बताया गया था। जिस व्यक्ति के नेतृत्व में पार्टी ने प्रदेश में अपनी सरकार चलाई हो और जिसके कारण चुनावों में सफलता पाई हो, उसे पार्टी की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहराना विचित्र लगता है, लेकिन वैसा हुआ।

इतना ही नहीं अच्युतानंदन को विश्वासघाती, पाखंडी, भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया और क्या क्या नहीं कहा गया। इसके कारण अच्युतानंदन ने कान्फ्रंेंस का ही बहिष्कार कर डाला। पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने उन्हें दुबारा कान्फ्रंेस में आने की अपील की ।तब अच्युतानंदन ने उनसे अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को वापस करने का कहा, लेकिन पार्टी महासचिव ने उनकी उस मांग को महत्व नहीं दिया और कहा कि वे पहले बैठक में वापस आ जाएं और तब उसके बाद ही उनकी मांग पर विचार किया जा सकता है।

लेकिन अच्युतानंदन ने वापस आने से यह कहकर मना कर दिया गया कि यदि प्रस्ताव में उन्हें भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया कहा गया है, तो वे उस कान्फ्रेंस में कैसे बैठ सकते हैं। लिहाजा, उन्होंने कान्फ्रेंस में आने से मना ही नहीं किया, बल्कि कान्फ्रेंस स्थल को छोड़ने के बाद उस शहर को ही छोड़ दिया और प्रदेश की राजधानी वापस आ गए।

बैठक के दौरान विजयन और उनके समर्थकों ने अच्युतानंदन की जमकर निंदा की। वह अपने आपमें विचित्र था, लेकिन उससे भी ज्यादा विचित्र पार्टी महासचिव द्वारा साधी गई चुप्पी थी। प्रकाश करात ने अच्युतानंदन के विरोधियों को चुप कराने के लिए कुछ नहीं किया। अच्युतानंदन के खिलाफ की गई टिप्पणियों को भी नहीं रोका। प्रस्ताव को भी कमजोर करने की कोशिश नहीं की।

सीताराम येचुरी के अलावा कोई केन्द्रीय नेता अच्युतानंदन के पक्ष में कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहंीं हुआ। येचुरी ने सवाल किया कि यदि अच्युतानंदन विश्वासघाती अथवा घर के भेदी हैं, तो फिर उन्हें कान्फ्रंेस का उद्धाटन करने के लिए पार्टी का झंडा क्यों फहराने दिया गया। उनके इस सवाल का किसी के पास जवाब नहीं था।

प्रदेश कमिटी में भी अच्युतानंदन को शामिल नहीं किया गया है, हालांकि उसमें अभी भी एक वैकेंसी है। अच्युतानंदन के कान्फ्रेंस के पहले एक पत्र केन्द्रीय नेतृत्व को लिखा था। वह पत्र लीक हो गया। उसमें उन्होंने विजयन को पार्टी की वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदा ठहराया था। उसके बाद विजयन और उनके समर्थक उनके खिलाफ आग बबूला हो गए और फिर उन्होंने कान्फ्रेंस के दौरान वह सब किया, जो अभूतपूर्व था।

अब नये सचिव बालकृष्णन के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एक रखने की है। (संवाद)