हालांकि यह भी सच है कि पीडीपी और भाजपा का गठबंधन एक अप्राकृतिक गठबंधन है। दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं। दोनों चुनाव अभियान के दौरान एक दूसरे पर तीखे हमले कर रही थीं। दोनों में काॅमन कुछ भी नहीं है। यदि कुछ काॅमन है, तो वह है सत्ता की भूख। इसी भूख को मिटाने के लिए दोनों एक साथ आई हैं। मतभेदों के बावजूद यदि यह सरकार 6 सालों तक चल जाती हैं, तो यह अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धि होगी।
मुफती के लिए सरकार बनाना जरूरी था, क्योंकि उन्हें साबित करना था कि वे किस्मत के धनी हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए भी यह सरकार जरूरी है, क्योंकि उसे साबित करना है कि हिंदुत्व की राजनीति करते हुए भी वह मुस्लिम बहुल प्रदेश में सरकार चला सकती है।
सरकार गठन की शुरुआत अच्छी रही है, क्योंकि बिलकुल दो विचारों वाली पार्टियों का सरकार चलाने के लिए एक साथ आ जाना अपने आपमे एक बड़ी बात है। लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियां अनेक हैं। मृफ्ती चूुकि एक बहुत ही अनुभवी नेता हैं, इसलिए उम्मीद तो यही की जा सकती है कि वे उन चुनौतियांे पर खरे उतरेंगे।
मुफ्ती के सामने पहली चुनाती भाजपा के साथ एक काम करने के सही रिश्तों की तलाश करना है। दोनों में से किसी भी पार्टी की ओर से उठाया गया एक कदम सरकार के लिए संकट का कारण हो सकता है और सबकुछ तहस नहस कर सकता है। क्या मुफ्ती दोनों पार्टियों के अंतर्विरोधों को अपनी सीमा में रखने में कामयाब हो पाएंगे? भाजपा के अंदर इस बात को लेकर गुस्सा है कि उसे अच्छे मंत्रालय नहीं दिए गए हैं। शपथग्रहण के कुछ घंटे के बाद ही मुफ्ती यह कह रहे थे कि बेहतर मतदान को श्रेय पाकिस्तान और आतंकवादियों को दिया जाना चाहिए। संसद में विपक्षी पार्टियां उस बयान को लेकर गुस्से मे हैं। कुछ पीडीपी विधायकों ने अफजल गुरू के शव की मांग कर दी है। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी को फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। अभी तो यह शुरुआत है।
मुफ्ती की एक बड़ी चुनौती घाटी के लोगों को यह आश्वस्त करना है कि भारतीय जनता पार्टी के साथ सौदेबाजी करके उन्होंने घाटी के हितों का बलिदान नहीं किया है। उन्हें पता है कि घाटी के लोग पीडीपी और भाजपा के गठबंधन को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। सच तो यह है कि मुफ्ती ने अभी तक अपने पूरे राजनैतिक कैरियर में इस तरह की चुनौती का सामना किया ही नहीं था।
पीडीपी ने चुनाव के पहले कुछ वायदे किये थे। काॅमन मिनिमम प्रोग्राम में अनेक वायदों को शामिल नहीं किया गया है। धारा 370, आफ्सपा, पाकिस्तानी शरणार्थी और उनके जैसे कुछ अन्य मुद्दे कभी भी उठ सकते हैं और उनका समाधान खोजना मुफ्ती के लिए आसान नहीं होगा। सच कहा जाय, तो ये मृद्दे उठते ही रहेंगे। भारत का पाकिस्तान के संबंध का मामला भी सरकार को परेशानी में डालता रहेगा। मोदी की सरकार एक बार पाकिस्तान से बातचीत करने से पीछे हट चुकी है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि पाकिस्तान कश्मीर के आतंकियों और अलगाववादियों के साथ बातचती करे। दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लाना भी मुफ्ती के लिए चुनौती भरा काम होगा। (संवाद)
भारत: जम्मू एवं कश्मीर
मुफ्ती ने आखिरकार बाजी मार ही ली
भाजपा के साथ उनका गठबंधन चुनौतीपूर्ण है
कल्याणी शंकर - 2015-03-07 11:14
जम्मू और कश्मीर में पहले भी अनेक बार गठबंधन की सरकारें बनी हैं। लेकिन इस बार पीडीपी की भाजपा के साथ बनी सरकार ऐतिहासिक है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों की आकांक्षाओं को जगह मिल रही है। अब तक सरकारों में कश्मीर घाटी के लोगों का ही वर्चस्व रहा है। इस बार स्थिति बदल गई है।