ऐसा करते समय मुफ्ती ने अनेक बातों की उपेक्षा कर दी। वे भूल गए कि शांतिपूर्ण चुनाव लोगों के कारण हो पाया था और उसके लिए सुरक्षा बलों ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। सच कहा जाय तो बेहतर मतदान प्रतिशत के लिए कश्मीर के लोगों की चुनाव के प्रति प्रतिबद्धता जिम्मेदार थी न कि आतंकवादियो और अलगाववादियों की ओर से की गई कोशिश। सच यह भी है कि आतंकवादियों ने अपनी ओर से चुनाव में वाधा डालने की कोशिश की थी, लेकिन सुरक्षा बलों की सतर्कता के कारण उनकी कोशिशें नाकाम हो गई थीं। चुनाव को सफल बनाने में सुरक्षाबलों को शहादत भी देनी पड़ी। एक लेफ्टिनेंट कर्नल तक को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। फिर भी यदि मु्फ्ती आतंकवादियों को ही श्रेय देते हैं, तो कहना पड़ेगा कि वे बहुत ही गलत बयान के लिए बहुत ही गलत समय का चुनाव कर रहे हैं।

मुफ्ती के बयान पर दिल्ली में विपरीत प्रतिक्रिया हुई है और इसके कारण केन्द्र की मोदी सरकार को लज्जित भी होना पड़ा है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों को संसद में कहना पड़ा है कि वे मुफ्ती के बयान से सहमति नहीं रखते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मुफ्ती का बयान गलत था, लेकिन उसके कारण कश्मीर में शांति स्थापना के प्रयासों को प्रभावित होने नहीे दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान के साथ संवाद पर भी मुफ्ती के उस बयान का असर नहीं पड़ना चाहिए। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पाकिस्तान के साथ साथ हुरियत से बातचीत होते रहना जरूरी है। मुफ्ती की कश्मीर राजनीति अथवा भाजपा और कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति का कश्मीर समस्या के समाधान पर बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए।

सत्ता में आने के बाद मुफ्ती ने कुछ अच्छे कदम उठाए हैं। अनेक राजनैतिक बंदी जेलों में ऐसे हैं, जिनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा रहा है। ऐसे कैदियों को रिहा करने का आदेश दे दिया गया है। उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक से कहा है कि रिहा होने वाले राजनैतिक बंदियों के पुनर्वास का इंतजाम किया जाय। उन्होंने कहा है कि इन युवकों को सामान्य जीवन बिताने का अवसर दिया जाना चाहिए।

कश्मीर के लोगों में भारत को लेकर असंतोष है। इसके कुछ सही कारण भी हैं। उनके साथ अत्याचार हुए हैं। नागरिकों पर गोलिया चलाई गई हैं और अनेक निर्दोष लोग मारे भी गए हैं। मुफ्ती के सामने उन लोगों के घावों पर मरहम लगाने की एक बड़ी चुनौती है। कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान पाना है और इसके लिए पाकिस्तान के साथ भारत की बातचीत भी होनी चाहिए। गठबंधन की शर्तो में यह शामिल भी किया गया है। यह सही भी है, क्योंकि कोई इस बात को माने या न माने, लेकिन सच्चाई यही है कि कश्मीर में पाकिस्तान एक फैक्टर है। पाकिस्तान के साथ बातचीत कर उसे कश्मीर से अलग रहने के लिए कहा जा सकता है। इसके कारण वह शायद कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देना बंद कर दे।

मुफ्ती को केन्द्र की ओर से सहायता मिलनी चाहिए। घाटी में स्थिति को सामान्य करने की उनकी कोशिशों को हतोत्साह नहीं किया जाना चाहिए। उन पर कश्मीर के लोगों का जबर्दस्त दबाव रहेगा। केन्द्र सरकार को उस दबाव की कद्र करनी चाहिए। (संवाद)