अब विधानसभा के नये स्पीकर की तलाश करनी होगी। जी कार्तिकेयन की मौत से खाली हुई विधानसभा सीट का उपचुनाव भी जीतना होगा। उपचुनाव की जीत तो बाद की बात है, उसके लिए उम्मीदवार भी तय करना होगा और नये घटक आरएसपी के दावों से उत्पन्न समस्या का भी समाधान खोजना होगा।

विधानसभा स्पीकर के रूप में कार्तिकेयन मुख्यमंत्री चांडी के लिए बहुत ही सहायक हुआ करते थे। वे वरिष्ठ नेता थे और अपने अनुभव का लाभ उठाकर विधानसभा की कार्यवाही को चलाने में सफल होते थे। उनके अनुभव का लाभ सरकार को भी मिलता था। विपक्षी हमलों से सरकार की रक्षा करने में कार्तिकेयन प्रायः सफल हो जाया करते थे।

अब उनका उत्तराधिकारी खोजना कठिन काम साबित हो रहा है। आने वाला बजट सत्र बहुत ही हंगामापूर्ण होगा, क्योंकि बजट पेश करने वाले वित्तमंत्री पर बार मालिकों के संघ से घूस लेने का आरोप लगा हुआ है और विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है। विपक्ष ने वित्तमंत्री मणि को बजट पेश न करने देने की धमकी भी दे रखी है। ऐसी स्थिति में कार्तिकेयन से सरकार को बहुत उम्मीद थी। पर अब वे नहीं रहे।

इस समय चांडी के पास तीन विकल्प हैं। पहला विकल्प तो यही है कि वर्तमान डिपुटी स्पीकर को ही स्पीकर बनवा दिया जाय। वर्तमान डिपुटी स्पीकर सकटन नाडार कांग्रेस के ही हैं। यदि उनको स्पीकर बना दिया जाता है, तो इससे केरल के नाडार समाज के लोग बहुत खुश होंगे। इस समय नाडार जाति का कोई भी व्यक्ति मंत्रिमंडल में नहीं है। दूसरा, श्री नाडार चेनिंथाला गुट के हैं। उनके स्पीकर बनने का विरोध चेनिंथाला गुट की ओर से नहीं किया जाएगा।

पर सवाल उठता है कि क्या चांडी श्री नाडार को स्पीकर बनाने के लिए तैयार होंगे? चांडी अपने किसी खास व्यक्ति को स्पीकर के पद पर बैठाना चाहते हैं। हालांकि सकटन नाडार कांग्रेस के ही सदस्य हैं, लेकिन उनकी गिनती चांडी के खास लोगों मे नहीं होती है।

स्पीकर पोस्ट के लिए एक और नाम है और वह है खेल मंत्री राधाकृष्णन का। राधाकृष्णन कभी चांडी के बहुत खास हुआ करते थे, लेकिन अब उनका उनके साथ पहले जैसा संबंध नहीं रहा। यही कारण है कि चांडी उनके नाम को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं।

चांडी के सी जोसफ को स्पीकर के पद पर लाना चाहते हैं। चांडी की सरकार में वे इस समय मंत्री हैं। उनका मुख्यमंत्री के साथ बहुत अच्छा संबंध है।

एक दूसरी चुनौती कार्तिकेयन के निधन से हुई खाली विधानसभा सीट का उपचुनाव जीतना है। वह सीट सीपीएम का भी गढ़ रही है। इसलिए वहां चुनाव जीतना कांग्रेस उम्मीदवार के लिए आसान नहीं रहेगा। उस सीट पर हारने से भी सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि सरकार विधानसभा में आरामदायी बहुमत में है। लेकिन वहां मिली हार का मनोवैज्ञानिक असर जरूर पड़ेगा। इसलिए चांडी किसी भी कीमत पर वहां का चुनाव जीतना चाहेंगे।

पिछले चुनाव में कार्तिकेयन जीत गए थे। लेकिन तब स्थिति कुछ और थी। इस समय माहौल कांग्रेस के पक्ष में नहीं है। पार्टी और सरकार दोनों की लोकप्रियता काफी गिर चुकी है। वैसी हालत में चुनाव जीतना कांग्रेस उम्मीदवार के लिए बहुत ही कठिन होगा।

कार्तिकेयन के निधन से खाली अरुविक्कारा सीट पर आरएसपी की भी नजर है। वहां आरएसपी के समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है। इस समय आरएसपी कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है। चांडी को उसके दावे को खारिज करना भी होगा। (संवाद)