जब से नई श्रीसेना सरकार ने श्रीलंका में कामकाज संभाला है, तब से ही दोनों देशों के बीच संबंध बहुत सुधरने लगे हैं। श्रीलंका के प्रधानमंत्री विक्रमरत्ने ने कहा है कि उनकी सरकार यूनिटरी राज्य के अंतर्गत 13वें संशोधन को क्रियान्वित करेगी। विदेश मंत्री समरवीर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उनकी सरकार का रवैया अब कुछ अलग होगा। इन दोनों के बयानों ने मानवाधिकार को लेकर नई श्रीलंका सरकार के बारे में लोगों की राय को बेहतर बना दिया है।

दो दशक में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा हो रही है। इसके पहले सत्ता संभालने के कुछ समय बाद ही श्रीलंका के नवनियुक्त राष्ट्रपति श्रीसेना ने भारत की यात्रा की थी। उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सिविल परमाणु संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। अब मोदी की यात्रा से उम्मीद है कि दशकों पुरानी तमिल समस्या का वहां समाधान निकलेगा और भारतीय मछुआरों को होने वाली समस्याएं भी समाप्त होंगी।

भारत ने श्रीलंका के इन्फ्रांस्ट्रक्चर के विकास की कुछ परियोजनाओं को अपने हाथ में लिया है। जफना इलाके में 50 हजार मकान बनाए जाने का काम भी भारत के हाथ में है। इन मकानों को भारत के प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा के दौरान लाभान्वितों को दिए जाने हैं। हिंद महासागर इलाके में चीनी प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए भारत ने श्रीलंका के साथ अपने संबंधों को और भी मजबूत करने का फैसला किया है। इसके तहत श्रीलंका को वित्तीय मदद के साथ साथ सैन्य प्रशिक्षण भी भारत की ओर से उपलब्ध कराने की पेशकश है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की श्रीलंका यात्रा का मुख्य मकसद सुरक्षा संबंधी इसकी अपनी चिंता है। भारत हिंद महासागर में अपनी सुरक्षा चिंता को लेकर श्रीलंका से बात करेगा।

1987 में 13वां संशोधन पारित किया गया था। भारत चाहेगा कि श्रीलंका उस संशोधन को अमल में लाए और उसके अनुसार सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर उत्तरी व पूर्वी प्रांतों मंे शांति की स्थापना करे। मोदी की जाफना यात्रा से भारत और श्रीलंका के तमिलों का विश्वास बढ़ेगा, इसकी उम्मीद की जा रही है। इससे श्रीलंका के तमिल- सिंहल के बीच विश्वास का माहौल कायम होगा और भारत व श्रीलंका के बीच भी संबंधों में मधुरता आएगी। श्रीलंका के साथ भारत की बातचीत में भारत में रह रहे श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की वापसी का मुद्दा भी उठेगा।

श्रीलंका के साथ जब भारत के रिश्तों की बात आती है तो तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीति भी एक बड़े फैक्टर के रूप में उसके बीच आ जाती है। लेकिन केन्द्र में मोदी सरकार के पूर्ण बहुमत में होने के कारण और अपनी सरकार की स्थिरता के लिए तमिलनाडु के राजनैतिक दलों पर निर्भर न होने के कारण इस बार यह बड़ा फैक्टर नहीं रह गया है। तमिलाडु की क्षेत्रीय राजनीति के दबाव से मुक्त होकर केंद्र अपनी श्रीलंका रणनीति को बना रहा है। इसका सबसे बड़ा संकेत यह है कि श्रीलंका यात्रा के पहले नरेन्द्र मोदी ने न तो तमिल नेता जयललिता से बात की और न ही वहां के मुख्यमंत्री पनीरसेल्वन से किसी तरह की बातचीत की। हो सकता है किसी और तरीके से केन्द्र की तमिल सरकार के साथ बातचीत हुई हो।

श्रीसेना की सरकार ने पहले ही तमिल समस्या को हल करने के लिए अपनी इच्छा का इजहार किया है। सत्ता में आने के बाद ही उन्होंने उत्तरी प्रांत के मुख्य सचिव को वहां से हटा दिया। गौरतलब है कि उत्तरी प्रांत के मुख्यमंत्री उनको हटाए जाने की मांग कर रहे थे। सैनिक गवर्नर को भी हटाए जाने की मांग हो रही थी। उन्हें भी हटा दिया गया। श्रीसेना ने अनेक तमिल बंदियों की रिहाई करने की मांग को भी मान लिया है और सेना द्वारा कब्जे में ली गई जमीन को भी वापस करने की मांग पर वह सहमत हो गए हैं। सैनिकों की वापसी समेत कुछ अन्य मसलों पर अभी भी बात चल रही है। (संवाद)