मध्यप्रदेश में एक दिन के लिए बुलाई गई विधानसभा की बैठक के बाद कांग्रेसी विधायकों ने सदन के गर्भगृह में धरने का निर्णय ले लिया। वे वहां लगभग 72 घंटे तक रातदिन धरने पर बैठे रहे और अंतिम दिन भूख हड़ताल भी किए। यह सबकुछ किसानों के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग को लेकर हुआ।

नेता प्रतिपक्ष ने मांग की थी कि सत्र एक दिन के बजाय दो दिन का किया जाए और असमय हुई बारिश और ओले गिरने से किसानों के समक्ष आए संकट पर एक दिन चर्चा कराई जाए। विपक्ष का आरोप है कि सरकार किसानों के मुद्दे पर चर्चा नहीं कराना चाहती। किसी विधानसभा में इस तरह के धरने की घटना देश में पहली बार हुई है।

मध्यप्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका निभा रही कांग्रेस गुटबंदी एवं निष्क्रियता का आरोप झेल रही है। ऐसे में 2015 के बजट सत्र के बाद से उसकी सक्रियता ने भाजपा सरकार को लगातार परेशान किया है। व्यापमं मामले में उतार-चढ़ाव के बीच लगता था कि यह मुद्दा कमजोर पड़ गया, पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री की पत्नी पर आरोप लगाकर इस मामले को गरमा दिया।

इसके साथ ही मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एसटीएफ द्वारा एफ.आई.आर. किए जाने के बाद मुख्यमंत्री से इस मामले में इस्तीफे की मांग तेज हो गई। इस दरम्यान मध्यप्रदेश में चल रहे बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष पर व्यापमं मामले को लेकर हावी हो गए। सत्र में व्यापमं घोटाले पर विपक्ष द्वारा चर्चा कराए जाने को लेकर अड़े रहने के कारण सरकार ने बजट पेश करने के अगले ही दिन अनुदान मांगों पर चर्चा कराए बिना महज 5 मिनट में उसे पारित कर विधानसभा को अनिश्चितकालीन समय के लिए स्थगित कर दिया। इस तरह से 24 बैठकों वाला यह सत्र महज 7 बैठकों में ही खत्म हो गया।

विपक्ष ने सरकार पर व्यापमं के मुद्दे पर बहस से भागने और बजट को बिना चर्चा कराए पास कर दिए जाने पर तीखे हमले शुरू कर दिए। सत्ता पक्ष के कारण सत्र के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने और बजट पर चर्चा कराए बिना उसे पारित करने से सरकार की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा। विपक्ष को इस मामले में सरकार पर हावी होने से फायदा मिला। इस बीच सरकार द्वितीय अनुपूरक बजट पारित करवाना भूल गई। इसके लिए सरकार को फिर एक दिन के लिए विधानसभा की बैठक बुलानी पड़ी, पर सरकार के लिए एक दिन की यह बैठक भी भारी पड़ गई।

मध्यप्रदेश विधान सभा का एक दिवसीय सत्र अनिश्चितकालीन समय के लिए स्थगित हो जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के नेतृत्व में कांग्रेस का विधायक दल किसानों के मुद्दे पर चर्चा को लेकर विधानसभा के गर्भगृह में धरने पर बैठ गया। 24 से 27 मार्च तक रात-दिन लगातार चल रहे इस धरने ने सरकार एवं विधानसभा सचिवालय को मुश्किल में डाल दिया था। इस दरम्यान कांग्रेस विधायक दल ने किसानों के मुद्दे पर सदन में चर्चा नहीं कराने एवं किसान विरोधी होने का आरोप सरकार पर लगाया।

देश के किसी सदन में इस तरह का धरना पहले कभी नहीं होने से इस मामले में क्या किया जाए, को लेकर विधानसभा सचिवालय भी संशय में रहा। आखिरकार तीसरे दिन विधानसभा सुरक्षा शाखा ने नेता प्रतिपक्ष सहित सभी विधायकों को नोटिस भेजकर तत्काल विधानसभा परिसर खाली करने को कहा। सुरक्षा शाखा ने संसदीय पद्धति एवं प्रक्रिया, मध्यप्रदेश विधानसभा नियमावली एवं विधानसभा अध्यक्ष के स्थाई आदेशों का हवाला दिया है और कहा है कि इस तरह की धरने की स्वीकृति किसी भी रूप में नहीं है।

इस मामले में नेता प्रतिपक्ष श्री कटारे का कहना है, ‘‘सरकार को हमने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि प्रदेश में असमय बारिश और ओले से किसानों पर गंभीर संकट आ गया है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में विधानसभा का सत्र एक दिन के बजाय दो दिन का किया जाए और इस मुद्दे पर चर्चा कराई जाए, पर सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। हमने किसानों के हित में बिजली बिल माफी, 5 साल का कर्ज माफी, बोनस देने सहित 10 मांगों को लेकर सरकार को मांगपत्र दिया, पर सरकार उस पर ठोस कार्यवाही नहीं करना चाहती।’’

कांग्रेस के इस प्रदर्शन को भाजपा सरकार एवं नौटंकी करार दे रही है। पर कांग्रेस की इस रणनीति सेे सरकार मुश्किल में रही। सदन के अंदर धरने को खत्म करने के बाद अब सभी कांग्रेसी विधायकों एवं नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में जाकर सरकार द्वारा किसान हितैषी मांगों को अनसुना करने एवं विधानसभा में किसानों के मुद्दे पर चर्चा नहीं कराए जाने को लेकर किसानों से संवाद करने का निर्णय लिया है। (संवाद)