भाजपा के शानदार प्रदर्शन का कारण अगड़ी जातियों के साथ पिछड़े वर्गों के एक बड़े तबके का मिलने वाला समर्थन था। कल्याण सिंह की उपेक्षा के कारण पिछड़े वर्ग पार्टी से दूर चले गए, तो सरकार पाने मे विफल हो रही भाजपा को अगड़ी जातियों ने भी छोड़ दिया। ठाकुर समाजवादी पार्टी की ओर गए, तो ब्राह्मण बसपा की ओर। इस तरह से भाजपा का सामाजिक आधार ही गायब हो गया। ब्राह्मण अब बसपा को छोड़कर कांग्रेस की ओर मुखातिब हो रहे हैं और उन्हे फिर से पार्टी से जोड़ना भाजपा के लिए आसान नहीं हो रहा है। यही कारण है कि भाजपा एक बार फिर पिछड़े वर्गों को अपने से जोड़ने के लिए प्रयासरत हो गई है।
भाजपा के पास एक विकल्प कल्याण सिंह को पार्टी में फिर लाकर अपना पिछड़ा जनाधार फिर से वापस करने का है। कल्याण सिंह चाहते भी यही हैं। भाजपा से बाहर रहकर वह क्या कर सकते है यह उन्होंने देख लिया है, इसलिए उनके लिए भाजपा में वापस आना ही राजनैतिक रूप से फायदेमंद है। पर उनकी असली समस्या राजनाथ सिंह हैं, जो भाजपा में उनकी वापसी के सख्त खिलाफ हैं। राजनाथ सिंह अब भाजपा के अध्यक्ष नहीं रहे, लेकिन उनकी बात को दरकिनार कर देना नितिन गडकरी के लिए आसान नहीं होगा। राजनाथ सिंह राज्य में अभियान चलाकर पार्टी को खुद मजबूत करने का दंभ भर रहे हैं, लेकिन जब वे अध्यक्ष रहकर पार्टी को मजबूत नहीं बना सके, तो फिर अब कैसे बना सकते हैं। इसलिए पार्टी अब अपने विस्तार के लिए उनपर निर्भर नहीं कर सकती। इसलिए बहुत संभव है कि वह बीच का रास्ता अपनाए। बीच का रास्ता यही हो सकता है कि कल्याण सिंह को तो पार्टी में नहीं लिया जायए पर पिछड़े वर्गों के केसी अन्य नेता को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाय। ओमप्रकाश सिंह पार्टी के वह नेता हो सकते हैं।
भाजपा तो हाशिए पर चली ही गई है, समाजवादी पार्टी भी सत्ता की दौड़ से बाहर होती दिखाई पड़ रही है। विधानसभा के आमचुनाव में बसपा के हाथों बूरी तरह पराजित होने के बाद, लोकसभा चुनाव में उसने अपनी स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर की। अनेक सीटें खोने के बाद भी लोकसभा चुनाव में 23 सीटें पाकर वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन उसकी उतनी सीटें कल्याण सिंह के कारण उसे मिली थी। विधानसभा के आमचुनाव के बाद से ही मुसलमान मुलायम को छोड़ रहे थे। उपचुनाव बता रहे थे कि मुसलमानों की पहली पसंद मायावती हैं। अमेरिका के साथ परमाणु करार को समर्थन देकर भी मुलायम ने मुसलमानों के बीच अपनी स्थिति कमजोर कर दी थी। इसलिए पिछड़े वर्गों का समर्थन पाने के लिए उन्होंने कल्याण सिंह का साथ लिया और 23 सीटों पर विजय हासिल करने में समर्थ हुए। लेकिन फिरोजाबाद के चुनाव में पुत्रवधू की हार ने कल्याण को भी उनसे दूर कर दिया। इस कल्याण सिंह का कंधा पकड़कर पिछड़ा मत पाने की उनकी राजनीति को झटका लग गया है। कभी मुलायम सिंह खुद भी पिछड़ों का नेता हुआ करते थे, लेकिन अन्य पिछड़ों की कीमत पर अपनी जाति को ही सशक्त बनाने के चक्कर में गैर यादव पिछड़ा वर्ग उनसे कट चुका है। मुस्लिम यादव समीकरण पर निर्भर रहकर उन्होंने पिछड़े वर्गों लोगों को अपने से काटने का ही काम किया। आज जब मुयलमान उनका साथ छोड़ चुके हैंए तो एक बार फिर उन्हें पिछड़ों की याद आ रही है। जिस तरह भाजपा कल्याण सिंह के बगैर पिछड़ों को अपने से जोड़ने की राजनीति बना रही है, उसी तरह मुलायम सिंह ने भी अब पिछड़ों को अपने से जोड़ने की रणनीति तैयार कर ली है। इस रणनीति के तहत पिछड़ं वर्गोें के नेताओं को पार्टी में ऊचे पद दिए जा सकते हैं।
समाजवादी पार्टी के सभी पदों को छोड़ देने वाले अमर सिंह की नजर भी पिछड़े वर्गों पर है। वे मुलायम सिंह यादव पर पिछड़े वगों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। क्षत्रीय चेतना रैली में उन्होंने पिछड़े वर्गों और क्षत्रीय गठजोड़ की राजनति करने के संकेत दिए। विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल आयोग की कुछ सिफारिशों को लागू करने के बाद पिछड़े वर्गों के सबसे बड़े नेता हो गए थे, लेकिन तबतक राजपूत ही उनका साथ छोड़ चुके थे। अमर सिंह वहां सफल होने की कोशिश कर रहे हैं, जहां वीपी सिंह विफल रहे।
यानी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर पिछड़ा वर्ग की राजनीति परवान चढ़ रही है। अंतर यह है कि इस राजनति से यादवों को अनग करके देखा जा रहा है। यादव पहले की तरह ही मुलायम सिंह के साथ हैं, लेकिन उनका परिवारवाद यादवों में भी उन्हें कमजोर कर रहा है। गैर यादव पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ना उनके लिए बहुत ही बड़ी चुनौती भरा काम है। (संवाद)
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उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग राजनीति का केन्द्र बना
भाजपा और मुलायम को अपने पुराने जनाधार की फिर चिंता
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-01-27 10:30
देश की सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा हाशिए पर चली गई है और समाजवादी पार्टी भी उसी ओर बढ़ रही है। एक समय था, जब भाजपा को उत्तर प्रदेश से लोकसभा में 58 सीटें तक मिली थी। उत्तर प्रदेश की सफलता ने ही भाजपा को केन्द्र में सत्ता तक पहुंचाया था, लेकिन अब वह राज्य में चैथे नंबर की पार्टी बन गई है।