चुनाव जीतने के 100 दिनों के अंदर ही सभी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में बना हनीमून का माहौल समाप्त होने लगता है। वैसे नरेन्द्र मोदी का दावा है कि उन्हें यह समय भी नहीं मिला।
नरेन्द्र मोदी हमेशा एक हारती हुई लड़ाई लड़ते दिखाई पड़ते हैं, तो उसके कारण अनेक हैं। जब घर वापसी जैसे अभियान नरेन्द्र मोदी के संघ परिवार के लोग चला रहे थे, तो उन्होंने दबाव बनाकर उनको शांत कर दिया था, लेकिन उससे उनको राहत नहीं मिली। अब ईसाइयों और उनके चर्चों पर होने वाले हमलों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके कारण ईसाइयों में असुरक्षा का माहौल बन गया है। ईसाइयों पर हो रहे हमलों ने मोदी के चेहरे पर भी शिकन पैदा कर दिया है।
इस बीच मोदी के दो मंत्रियों के विवादित बयानों ने भी उनकी सरकार की छवि को खराब किया है। एक बयान तो उनकी सरकार की एक साध्वी मंत्री का था, जिन्होंने भाजपा के सारे विरोधियों को हरामजादा कह दिया। दूसरा बयान कुछ दिन पहले उनके एक अन्य मंत्री गिरिराज सिंह का आया, जिसमें उन्होंने पत्रकारों से पूछ दिया कि क्या यदि राजीव गांधी ने सोनिया गांधी की जगह किसी काली नाइजेरियन लड़की के साथ शादी की होती, तो कांग्रेसी क्या तब भी उनकी पत्नी को अपना नेता मान लेते।
इन बयानों से पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्रियों का स्तर क्या है। भाजपा के कुछ सांसद तो राष्ट्रपिता महात्मागांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की ही प्रशंसा में लगे हुए थे। भाजपा नेताओं के सड़क छाप बयानों से पता चलता है कि वे लोग अभी भी सभ्य समाज का हिस्सा बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं।
भाजपा के ये मंत्री और सांसद तो नरेन्द्र मोदी की सरकार और पार्टी के बारे में लोगों का विचार खराब कर ही रहे थे कि एक अन्य सांसद श्यामा चरण गुप्ता ने सांसदों की एक स्थायी समिति में उसके अध्यक्ष की हैसियत से यह विचार व्यक्त कर डाला कि धूम्रपान और कैंसर के बीच कोई संबंध ही नहीं है। श्री गुप्ता बीड़ी उद्योग के उद्योगपति हैं।
कैंसर का सबसे बड़ा कारण तंबाकू का सेवन, जिसमें धूम्रपान भी शामिल है, ही है। यह बात विज्ञान द्वारा बिना किसी संदेह के साबित हो चुकी है। लेकिन हिंदुत्व ब्रिगेड अपनी वैज्ञानिक जानकारी का जो बीच बीच में नमूना पेश करता रहता है, उस नमूने की एक बानगी बीड़ी सम्राट का वह बयान है।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि बंगलूरू की भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिण विफल साबित हुई। बैठक के पहले ही यह कहा जा रहा था कि मोदी सरकार एक साल के दौरान अपनी उपलब्धियों के बारे में कुछ बताने की स्थिति में नहीं है। आर्थिक सुधार शुरू होने अभी बाकी हैं। काले धन को वापस लाने की बात तो दूर, उसकी अभी तक खोज भी शुरू नहीं हो पाई है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यह साबित किया है कि लोगों के धीरज का बांध टूटने लगा है और वे नरेन्द्र मोदी द्वारा चुनाव के पहले किए गए वायदों को पूरा न किए जाने से नाराज हो रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे ज्यादा घातक सरकार द्वारा लाया गया भूमि अधिग्रहण विधेयक है। उस विधेयक ने सरकार और पार्टी की छवि किसान विरोध बना डाली है। अब पार्टी अपनी सारी ऊर्जा का इस्तेमाल यह साबित करने में लगी हुई है कि वह किसान विरोधी नहीं है। नरेन्द्र मोदी भी इस मिशन में लगे हुए हैं, लेकिन अपनी मनोहारी भाषण कला के बावजूद वह भूमि अधिग्रहण विधेयक को किसान हितैषी साबित करने में सफल नहीं हुए हैं।
लोकसभा से तो वह विधेयक पारित किया जा चुका है, लेकिन उसकी असली परीक्षा राज्य सभा में ही होगी, जहां सरकार अल्पमत में है। विपक्षी पार्टियों में सिर्फ बीजू जनता दल ही भूमि अधिग्रहण विधेयक के पक्ष में है। (संवाद)
भारत
किसान विरोधी छवि बदलने की भाजपा की कवायद
मोदी की भाषण कला भी उसका साथ नहीं दे रही है
अमूल्य गांगुली - 2015-04-07 15:51
भारतीय जनता पार्टी और खासकर इसके नेता नरेन्द्र मोदी ने कभी नहीं सोचा होगा कि लोकसभा में शानदार सफलता पाने के एक साल के अंदर ही उन्हें भारी दबाव का सामना करना पड़ेगा। पिछले दिनों बंगलुरू में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के ऊपर पड़ रहा दबाव साफ साफ देखा जा सकता था।