यह अपने किस्म का तीसरा परीक्षण होगा। सबसे पहले 1977 में अनेक पार्टियां मिलकर जनता पार्टी के रूप में एक हुई थीं। वह गैर कांग्रेसी पार्टियांे का कांग्रेस विरोधी विलय था। उसके बाद दूसरा परीक्षण 1988 में हुआ था। तब जनता दल का गठन हुआ था। उसका आधार भी कांग्रेस विरोध ही था। 1977 मंे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद वह संभव हो सका था, तो 1988 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व मंे वह एकता हुई थी। इस बार एक बड़ा अंतर यह है कि यह कांग्रेस नहीं, बल्कि भाजपा के खिलाफ हो रही है। 1977 में भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ जनता पार्टी का हिस्सा बन गई थी। 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल के साथ गठबंधन करके चुनाव लडा था, लेकिन इस बार भाजपा के विरोध में ही एक एकता हो रही है और कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा रहा है।
जनता परिवार में एक पूर्व प्रधानमंत्री (देवेगौड़ा), तीन पूर्व मुख्यमंत्री (मुलायम सिंह यादव, ओम प्रकाश चैटाला और लालू यादव) व दो वर्तमान मुख्यमंत्री( नीतीश कुमार और अखिलेश यादव) हैं। ये सभी 1977 की जनता पार्टी में भी थे और 1988-89 के जनता दल में भी। इस परिवार का दो राज्यों मंे शासन भी है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री हैं, तो बिहार में नीतीश कुमार। लोकसभा में इन दलों के पास कुल 15 सांसद हैं, तो राज्यसभा में कुल 30 सांसद।
कहा जाता है कि ये लोग बहुत दिनों तक एक साथ नहीं रह सकते और बहुत दिनो तक अलग भी नहीं रह सकते। ये स्वार्थवश एक होते हैं और स्वार्थवश ही लडते हुए बाहर हो जाते हैं। इस समय उनकी एकता का समय है, लेकिन उनका प्रभाव देश के कुछ सीमित क्षेत्रों में ही है। वे उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में ही ताकतवर हैं। कर्नाटक के देवेगौडा भी परिवार का हिस्सा हैं, लेकिन कर्नाटक में भी उनका जनाधार सिकुड़ गया है और केवल दक्षिण कर्नाटक में ही उनका कुछ प्रभाव है।
जनता परिवार की दो पार्टियां आज भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं। वे हैं- राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोकजनशक्ति पार्टी और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी। दो अन्य पार्टियां हैं अजित सिंह के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोकदल और नवीन पटनायक के नेतृत्व वाला बीजू जनता दल। ये दोनों दल परिवार की एकता में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। इसका कारण यह है कि उन्हें इनकी एकता के टिकाऊ होने में भरोसा नहीं है। यदि यह परीक्षण सफल होता है, तो उड़ीसा और परिश्चमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाले ये दोनों दल भी नवगठित दल में शामिल हो सकते हैं।
इन पार्टियों का विलय भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता नरेन्द्र मोदी की चुनौती का सामना करने के लिए हो रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हाथों इन पार्टियों की करारी हार हुई थी। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी चैटाला की पार्टी की भाजपा के हाथों करारी शिकस्त हुई थी। बिहार में नीतीश और लालू के दल और उत्तर प्रदेश में मुलायम की पार्टी केा गहरा झटका लगा था।
अब इन्हें महसूस हो रहा है कि अकेले दम वे भाजपा को नहीं पराजित कर सकते, इसलिए वे एक हो रहे हैं। नवगठित पार्टी की पहली परीक्षा बिहार विधानसभा के चुनाव होगी, जो कुछ महीने बाद होने वाला है। उसमें नीतीश कुमार और लालू के दल एक नाम और एक चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ेंगे।
पर समस्या अभी भी बनी हुई है। सबसे बड़ी समस्या नेतृत्व की है। लालू यादव ने राष्ट्रीय स्तर पर मुलायम सिंह को तो अपना नेता मान लिया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वे बिहार में नीतीश को अपना नेता मान सकेंगे? (संवाद)
भारत
जनता परिवार की एकता
क्या यह टिकाऊ हो पाएगी?
कल्याणी शंकर - 2015-04-10 16:32
जनता दल के टुकड़ों से बनी पार्टियां एक बार फिर एकीकरण की राह पर है। आने वाले कुछ दिनों में वे एक होकर एक नई पार्टी के रूप में वजूद प्राप्त करेंगी। समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव नई पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह की घोषणा करेंगे। उसके साथ 6 पार्टियां एक हो जाएंगी। वे छह पार्टियां हैं- मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी, लालू यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल, ओम प्रकाश चैटाला के नेतृत्व वाला इंडियन नेशनल लोकदल, कमल मुरारका के नेतृत्व वाली समाजवादी जनता पार्टी, देवे गौड़ा के नेतृत्व वाला जनता दल(एस) और नीतीश कुमार का जनता दल (यू)।